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पुलिस महकमे में खाली पदों को लेकर पटना हाईकोर्ट की नीतीश सरकार को फटकार, कहा- लगता है सरकार को नागरिकों की सुरक्षा का ख्याल नहीं

पटना: बिहार में भले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 14 वर्षों से सत्ता में हैं, लेकिन हर हफ्ते पटना उच्च न्यायालय से उनकी सरकार को दो से तीन विषयों पर फटकार जरूर लगती है. उच्च न्यायालय ने अब राज्य के पुलिस महकमे में रिक्त पदों को लेकर नीतीश सरकार को फटकारा है. पटना उच्च न्यायालय ने करीब 30,000 रिक्त पदों को भरने में हो रही देरी पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि लगता है सरकार को आम नागरिकों के जान-माल की सुरक्षा की परवाह नहीं रही. बता दें कि राज्य के पुलिस महकमे के मुखिया खुद नीतीश कुमार हैं. मामले की सुनवाई शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश ए .पी .साही और न्यायाधीश अंजाना मिश्रा की खंडपीठ में हो रही थी. कोर्ट द्वारा यह पूछे जाने पर कि आखिर इन पदों को क्यों नहीं भरा जा रहा है.

इस पर राज्य सरकार की तरफ से आश्वासन दिया गया कि अगले चार वर्षों में इन पदों पर नियुक्तियां कर दी जाएगी. राज्य सरकार के इस आश्वासन पर कोर्ट ने आपत्ति जताई और पूछा कि आखिर अगले एस साल के अंदर ये सारे पद क्यों नहीं भरे जा सकते. हालांकि, कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव और गृह सचिव को इस मामले में 13 अगस्त को उपस्थित होकर बताने का निर्देश दिया है कि आखिर इन रिक्त पदों को भरने में कम से कम कितना समय लगेगा.दरअसल, यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था जहां एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वो अपने पुलिस विभाग के खाली पदों को चरणबद्ध तरीके से भरें.

यह आदेश अप्रैल 2017 में पारित किया गया था और 2020 में अगस्त तक सभी रिक्त पदों पर नियुक्तियां की जानी थी. इसी आदेश में हर राज्य के उच्च न्यायालय को इस मामले की मॉनिटरिंग करने का भी आदेश दिया गया था. इस आदेश के बाद सर्वोच्च न्यायालय में बिहार सरकार ने आश्वासन दिया था कि वो सारे खाली पद 2020 तक भर लेगी. लेकिन अब राज्य सरकार का कहना है कि इसमें तीन साल का और समय लगेगा. इस पर कोर्ट का कहना था कि आम नागरिकों की जान माल की सुरक्षा किसी भी राज्य सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. लेकिन लगता है कि सरकार को जनता की सुरक्षा का ख्याल नहीं है. इससे पहले उच्च न्यायालय ने पटना सहित अन्य शहरों में गंदगी और अतिक्रमण पर भी राज्य सरकार को जमकर फटकार लगायी थी और दिशा निर्देश जारी किए थे. इस मामले की भी मॉनिटरिंग अब उच्च न्यायालय कर रहा है.

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