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महिला मुक्ति का मार्ग महिलाओं के हाथ में

डॉ० रेखा यादव। 8 मार्च को अर्न्तराष्ट्रीय महिला दिवस है और इस दिन कई संस्थाओं के द्वारा महिलाओं का सम्मान किया जाता है परन्तु प्रश्न यह है कि महिलाओं के प्रति यह सम्मान मात्र एक दिन ही क्यों? यदि समाज वास्तव में महिलाओं का सम्मान करता है तो उन्हे बराबरी का अधिकार दे पर शायद ऐसी बाते सिर्फ महिला दिवस के भाषण पर सुनाई देती है धरातल पर कुछ और ही है महिला दिवस पर जहाँ एक ओर महिला सम्मान पर चर्चा होती है वही दूसरा पहलू यह भी है कि क्या उस दिन किसी बहन, बेटी के साथ अपराध नही होता है इसलिए इस एक दिन के सम्मान से क्या होगा जबकि यह दिन किसी भी देश की महिलाओं की स्थिति बदलने में मददगार साबित नही हुआ, और सामाजिक स्तर पर महिलाओ की स्थिति में कोई परिवर्तन नही हुआ। यदि महिलाओं के हित में सचमुच ही कुछ करना है, तो पूरा साल पड़ा है लेकिन इस एक दिन में ही महिलाओं के प्रति बड़ी-बड़ी बाते की जाती है। परन्तु सत्य तो यही है कि महिलाओं को उनके अधिकार आज तक नही मिल पाए है, जो इस पुरुष प्रधान समाज में सम्भव नहीं। अधिकार से मेरा तात्पर्य ऐसी स्वतन्त्रता से है जो व्यक्तिगत बेहतरी के लिए तथा सम्पूर्ण समुदाय की भलाई के लिए अति आवश्यक है और शायद यही कारण है कि अपने अधिकारों के प्रति लड़ाई लड़ रही उन तमाम महिलाओं को लड़ाई लड़ने का अवसर तक भी नही मिला। पर कहते है जहाँ निराशा होती है वहाँ आशा भी होती है इसी उम्मीद से हम आगे बढ रहे है और महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचार के खिलाफ लोग आज सड़को पर उतर रहे और महिला हिंसा यौन अपराध ये सब बन्द हो जाए। ऐसा प्रयत्न कर रहे है परन्तु परिवर्तन पूर्ण रुप से हुआ है ये कह पाना सम्भव नही क्योंकि जब तक महिलाओं की सुरक्षा और उनके प्रति हो रहे अपराध के खिलाफ पुरुष आगे नहीं आयेगे तब तक महिलाओं के लिए किसी भी प्रकार के परिवर्तन की उम्मीद नहीं की जा सकती। घर की छोटी सी सीमा में बंधी हुई महिलाएं आज अपना अधिकार तथा समाज के प्रति कर्त्तव्य तक भूल चुकी है। उनके साथ होने वाले पाशविक अत्याचार जिनका प्रतिकार नहीं होता। सृष्टि की उत्कृष्ट रचाना है महिला, महिला ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है, अनादिकल से ही समाज में उसकी महत्तपूर्ण भूमिका रही है। मानव जगत निर्वाण में उसकी अनिवार्यता साभौमिक है।

महिला के बिना संसार सागर की कल्पना ही असम्भव है, समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उसने अपनी प्रतिभा, गुण एवं ज्ञान से महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है और समाज का मार्गदर्शन एवम् उसको सही दिशा प्रदान करने का कार्य किया है। उसकी सूरत और सीरत की पराकाष्ठा और गहनता को मापना दुष्कर ही नही अपितु नामुमकिन है। सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक जगत में नारी के विविध स्वरुपों ने समाज में अतुलनीय योगदान दिया है, महिला सोंधी मिट्टी की वह महक है जो जीवन का बगीचा महकाती है आदिकाल से लेकर आधुनिककाल तक की कला में महिला विषय वस्तु के रुप में विद्यमान है। महिला के रुप से आकर्षित व प्रभावित होकर कलाकार उसकी छवि को काल्पनिक व प्रत्याक्षिता के साथ बनता और घटता है। किसी भी महिला के बिना कला संस्कृति और संस्कारों की कल्पना करना सही नही प्रत्येक युग में महिला कला का केन्द्र रही है। ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों तक नारी ने समाजवाद, राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। स्पष्ट है कि हमारा समाज और राष्ट्र इन दोनों की प्रगति महिलाओं की प्रगति पर निर्भर करती है इनके लिए पुरुषों को बढ़-चढ़ कर महिलाओ का सहयोग करने की आवश्यकता है। इससे बड़ा सम्मान महिलाओं के लिए और कुछ नहीं, महिलाओं को अधिकार न सही कम से कम साथ चलने और काम को मिले वही बहुत है। जिस प्रकार तार के बिना वीणा, धुरी के बिना पहिया बेकार होता है इसी प्रकार महिला के बिना मानव का सामाजिक जीवन। बिना महिला दुनिया की हर रचना बेकार है हर कला रंगतहीन है इसके अभाव में मानवता के विकास की कल्पना असम्भव है।

अतः हम यह कह सकते है कि महिला समाज का एक अनिवार्य एवं सशक्त आधार स्तम्भ है।

असिस्टेंट प्रोफेसर

शिक्षाशास्त्र विभाग

भारतीय महिला दार्शनिक परिषद (कार्यकारिणी सदस्य)

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