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जानें कीमोथेरेपी इलाज की मदद से कैसे मिल सकता है फेफड़ों के कैंसर से आराम

लखनऊ : स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाला एक हार्मोन फेफड़ों के कैंसर के मरीजों के लिए कीमोथेरेपी इलाज को और अधिक प्रभावी बनाने में मदद कर सकता है और कैंसर उपचार के उस गंभीर दुष्प्रभाव को भी रोक सकता है जिसमें गुर्दे को नुकसान पहुंच सकता है. एक अध्ययन के अनुसार, फेफड़ों के कैंसर के लिए इम्यूनोथेरेपी होने के बावजूद अधिकांश रोगियों का अभी भी सिस्प्लाटिन नामक एक दवा पर आधारित कीमोथेरेपी के माध्यम से इलाज किया जाता है. हालांकि इन रोगियों में से एक तिहाई से भी कम लोगों में इसका फायदा दिखाई देगा और उनमें अक्सर गुर्दे को क्षति सहित गंभीर दुष्प्रभाव पैदा हो जाते हैं.

फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित रोगियों के इलाज में सामने आने वाले परिणामों में सुधार के प्रयास में , ऑस्ट्रेलिया में गार्वन इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल रिसर्च के शोधकर्ताओं और ऑस्ट्रेलिया में हडसन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च ने पाया कि कीमोथेरेपी प्रतिरोध तथा कीमोथेरेपी से गुर्दे को होने वाले नुकसान के लिए एक्टिवीन नामक एक प्रोटीन जिम्मेदार है.

इसका का खतरा महिलाओं में पुरुषों से 5 फीसदी ज्यादा है 
किडनी (गुर्दा) से संबंधित रोग, पूरे विश्व में स्वास्थ्य चिंता का विषय हैं, जिसका गंभीर परिणाम किडनी फेलियर और समयपूर्व मृत्यु के रूप में सामने आता है. वर्तमान में किडनी रोग महिलाओं में मृत्यु का आठवां सबसे प्रमुख कारण है. महिलाओं में क्रॉनिक किडनी डिसीज (सीकेडी) विकसित होने की आशंका पुरुषों से 5 फीसदी ज्यादा होती है. गुरुग्राम स्थित नारायणा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के नेफ्रोजिस्ट डॉ. सुदीप सिंह सचदेव कहते हैं कि सीकेडी को बांझपन और सामान्य गर्भावस्था व प्रसव के लिए भी रिस्क फैक्टर माना जाता है. इससे महिलाओं की प्रजनन क्षमता कम होती है और मां व बच्चे दोनों के लिए खतरा बढ़ जाता है, जिन महिलाओं में सीकेडी एडवांस स्तर पर पहुंच जाता है, उनमें हाइपर टेंसिव डिसआर्डर्स और समयपूर्व प्रसव होने की आशंका काफी अधिक हो जाती है.

कौन-कौन कारण :
किडनी रोग मुख्यत: डायबिटीज, उच्च रक्तदाब और धमनियों के कड़े होने से हो जाते हैं. हालांकि, इन रोगों में से कई किडनियों के सूजने के कारण भी हो सकते हैं. इस स्थिति को नेफ्राइटिस कहते हैं. मेटाबॉलिक डिसआर्डर के अलावा कुछ एनाटॉमिक डिसआर्डर के कारण भी किडनी संबंधी बीमारियां हो जाती हैं. ये बीमारियां माता-पिता दोनों से बच्चों को विरासत में भी मिलती हैं. किडनी रोगों के कारण अलग-अलग हो सकते हैं, उसी प्रकार से विभिन्न रोगियों में इसके लक्षणों में भिन्नता पाई जा सकती है. हालांकि, कुछ सामान्य लक्षणों में बहुत अधिक या बहुत कम पेशाब, पेशाब में रक्त आना या रसायनों की मात्रा आसामान्य हो जाना सम्मिलित हैं.

 कैसे होता है डायग्नोसिस?
वास्तविक समस्या तो इस रोग का डायग्नोसिस करने में है, क्योंकि जब तक किडनी में ट्यूमर या सूजन न हो, डॉक्टरों के लिए केवल किडनियों को छूकर चेक करना कठिन हो जाता है. वैसे कई टेस्ट हैं, जिनसे किडनी के ऊतकों की जांच की जा सकती है. पेशाब का नमूना लें और इसमें प्रोटीन, शूगर, रक्त और कीटोंस आदि की जांच कराएं.

कौन से उपचार है?
संक्रमण को एंटी बायोटिक्स से भी ठीक किया जा सकता है, अगर संक्रमण बैक्टीरिया के कारण हो. एक्यूट किडनी फेलियर के मामले में रोग के कारणों का पता लगाना सर्वश्रेष्ठ रहता है. इस प्रकार के मामलों में कारणों का उपचार करने से किडनी की सामान्य कार्यप्रणाली वापस प्राप्त करना संभव होता है, लेकिन किडनी फेलियर के अधिकतर मामलों में रक्तचाप को सामान्य स्तर पर लाया जाता है, ताकि रोग को और अधिक बढने से रोका जा सके. जब किडनी फेलियर अंतिम चरण पर पहुंच जाता है, तब उसे केवल डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है. डायलिसिस सप्ताह में एक बार किया जा सकता है या इससे अधिक बार भी, यह स्थितियों पर निर्भर करता है. प्रत्यारोपण में बीमार किडनी को स्वस्थ्य किडनी से बदल दिया जाता है.

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