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अनुच्छेद 35ए- सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के विरोध में अलगाववादियों ने घाटी में 30 और 31 अगस्त को बंद किया

पढ़े— अनुच्छेद 35ए—– जम्मू-कश्मीर सरकार को मूल निवासियों की परिभाषा तय करने का विशेषाधिकार प्राप्त है। इसे 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के आदेश पर जोड़ा गया था। इसके तहत दूसरे राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर में मकान या जमीन नहीं खरीद सकते।

लखनऊ : अनुच्छेद 35ए की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के विरोध में अलगाववादियों ने घाटी में गुरुवार से दो दिन (30 और 31 अगस्त) बंद का आह्वान किया है। इसका असर लोगों की जिंदगी और उनके कामों पर भी पड़ रहा है। कई लोगों ने 29 अगस्त से दो सितंबर तक होने वाली शादी की दावतें टाल दी हैं। वे अपने रिश्तदारों, दोस्तों और करीबियों को अखबारों में विज्ञापन देकर इसकी जानकारी दे रहे हैं। लोगों ने शादी की रस्में सादगी से करने का फैसला किया है। अनुच्छेद 35ए की वैधता मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी।

अखबारों में लगभग 30 विज्ञापन देकर लोगो शादी की दावत टालने को जानकारी दी : श्रीनगर के वजीर बाग के एक परिवार ने बताया कि उनकी बेटी की शादी 30 अगस्त को है। घाटी में तनाव को देखते हुए हमने शादी की दावत टाल दी है। हमने विज्ञापन देकर अपने सभी रिश्तेदारों को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि निकाह सादगी से किया जाएगा। बुधवार को घाटी के स्थानीय अखबारों ( ऊर्दू और अंग्रेजी) में दावतें रद्द करने से जुड़े 30 से ज्यादा विज्ञापन छपे। कुछ लोगों ने बताया कि उन्होंने 30 और 31 अगस्त को भी अखबारों में विज्ञापन देने का फैसला किया है। इनमें से कुछ का कहना है कि 31 अगस्त के बाद हालात सामान्य होने की उम्मीद है। इसके बाद भी कई लोगों ने दो सितंबर तक अपने कार्यक्रम टाल दिए हैं।

सुख चैन से शादी का फैसला करेंगे : हजरतबल में रहने वाले एक परिवार ने बताया कि उनके एक बेटे का निकाह 2 सितंबर को होना है। इसके लिए 31 अगस्त से रस्में शुरू हो जाएंगी। अलगाववादियों के बंद के दौरान हालात बिगड़ सकते हैं। ऐसे में सब कुछ मैनेज करना मुश्किल है। इसलिए हमने रस्मों को सादगी से करने का फैसला किया है। कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों को फोन पर इसकी जानकारी दे दी है। इसके अलावा जिन रिश्तेदारों से संपर्क नहीं हो सका, उनके लिए अखबारों में विज्ञापन दिया।
पहले भी ऐसे हालात से जूझ चुकी है घाटी: रंगपोरा निवासी बशीर अहमद शाह ने बताया कि 2010 में भी घाटी में तनाव के बाद लोगों ने शादियों के साथ दूसरे कार्यक्रम टाल दिए थे। ऐसे ही हालात 2014 में बादल फटने की घटना और 2016 में हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद बने थे।

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