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अगर बार-बार गर्भधारण में हो रही है परेशानी , तो इसे ना करें इग्नोर , वरना जा सकती है आपकी जान

नई दिल्ली : किसी भी महिला के लिए गर्भधारण सबसे बड़ी खुशी होती है, लेकिन इस दौरान बहुत सतर्क रहने की जरूरत होती है। कई बार गर्भ सामान्य तौर पर विकसित नहीं होता है, ऐसा मोलर प्रेग्नेंसी का संकेत भी हो सकता है। यह कंडीशन खतरनाक हो सकती है। ऐसे में लक्षणों को पहचानकर तुरंत उपचार कराने की जरूरत होती है। मोलर प्रेग्नेंसी में भ्रूण के बजाय प्लेसेंटा के टिश्यूज मोल में बदलते हैं। इसका समय पर इलाज न किए जाने पर और बाद में ध्यान न रखे जाने पर यह मोल, कैंसर का कारण भी बन सकता है। ऐसे में जरूरी है कि कंसीव करने के बाद अलर्ट रहा जाए और मोलर प्रेग्नेंसी का पता चलने पर तुरंत उपचार करवाया जाए। इसे मेडिकल भाषा में इसे गेस्टेशनल ट्रॉफोब्लॉस्टिक डिजीज (जीटीडी) भी कहा जाता है।क्या होती है मोलर प्रेग्नेंसी  (What Is Molar Pregnancy)
गर्भावस्था का एक जटिल और असफल रूप है-मोलर प्रेग्नेंसी। गर्भधारण के समय ओवम के फर्टिलाइजेशन में होने वाले आनुवांशिक दोष, कमी या जैविक गलती की वजह से यह कंडीशन उत्पन्न होती है। इसमें भी दो स्थितियां देखने को मिलती हैं-पहली कंप्लीट मोलर प्रेग्नेंसी। इसमें भ्रूण बनता ही नहीं, सिर्फ एब्नॉर्मल टिश्यूज डेवलप होते हैं। दूसरी कंडीशन पार्शियल यानी आंशिक मोलर प्रेग्नेंसी कहलाती है, जिसमें भ्रूण बनता तो है, लेकिन इसके साथ एब्नॉर्मल टिश्यूज भी होते हैं। जिससे भ्रूण पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता। दोनों स्थितियों में गर्भवती महिला की जान को खतरा रहता है। इसके लिए डॉक्टर्स को प्रेग्नेंसी रिमूव करनी पड़ती है।
मोलर प्रेग्नेंसी के कारण (Molar Pregnancy Causes)
सामान्य प्रेग्नेंसी में मां के ओवम के साथ पिता के स्पर्म फर्टिलाइज होने के बाद भ्रूण बनता है, जिसमें उनके 23-23 क्रोमोसोम मौजूद होते हैं। लेकिन मोलर प्रेग्नेंसी में ऐसा नहीं होता। कंप्लीट मोलर प्रेग्नेंसी में फर्टिलाइज अंडाणु में मां का कोई क्रोमोसोम नहीं होता, केवल पिता के 23 क्रोमोसोम होते हैं। जिससे इस प्रेग्नेंसी में यूटेरस में कोई भ्रूण तो नहीं होता, केवल एक सिस्ट या गांठ-सी होती है, जो गर्भनाल या प्लेसेंटा के टिश्यूज के साथ बहुत तेजी से बढ़ती है। ये एब्नॉर्मल टिश्यूज अंगूर के गुच्छे की शेप में विकसित होते हैं, जिन्हें हाइडेटीडीफार्म मोल भी कहा जाता है।
कई बार फर्टिलाइज ओवम में मां के 23 क्रोमोसोम के साथ पिता के क्रोमोसोम 23 के बजाय दोगुने 46 क्रोमोसोम आ जाते हैं। इस तरह फर्टिलाइज अंडाणु में कुल 69 क्रोमोसोम हो जाते हैं। जिससे इस तरह की प्रेग्नेंसी में यूटरस में भ्रूण के साथ-साथ असामान्य रूप से गर्भनाल या प्लेसेंटा के एब्नॉर्मल टिश्यूज भी विकसित हो जाते हैं यानि यह मल्टीपल प्रेग्नेंसी होती है, लेकिन भ्रूण का विकास प्रेग्नेंसी की आखिरी स्टेज तक नहीं हो पाता, यह 4-5 महीने में खत्म हो जाता है। इस तरह की प्रेग्नेंसी पार्शियल मोलर प्रेग्नेंसी है।
मोलर प्रेग्नेंसी के लक्षण (Molar Pregnancy Symptoms)
नॉर्मल प्रेग्नेंसी की तरह मोलर प्रेग्नेंसी में भी गर्भवती महिला को शुरुआत में पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं। सुबह के समय जी मिचलाना, उल्टी आना जैसी परेशानियां बहुत ज्यादा होती हैं। दूसरे महीने तक आते-आते वैजाइनल ब्लीडिंग या ब्राउन डिस्चार्ज बहुत ज्यादा होने लगता है। यूटेरस का साइज दोगुना होता है यानी 2 महीने की प्रेग्नेंसी में यूटरस करीब 4 महीने जितना बड़ा हो जाता है। हाई ब्लड प्रेशर हो सकता है। दिल की धड़कन तेज रहती है, बहुत ज्यादा पसीना आता है, घबराहट और थकावट महसूस होती है। इसके साथ ही हाइपर-थायरॉइड के लक्षण भी मिलते हैं। पेल्विक एरिया में ऐंठन जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
किसे है ज्यादा खतरा (Molar Pregnancy Danger)
आंकड़ों के अनुसार प्रेग्नेंसी के 1,000 मामलों में से 1 मोलर प्रेग्नेंसी का होता है। इनमें भी मोलर प्रेग्नेंसी के 80 प्रतिशत मामलों में भ्रूण विकसित नहीं होता, केवल अंगूर के गुच्छों जैसी संरचना विकसित होती है। कंप्लीट मोलर प्रेग्नेंसी के मामले ज्यादा होते हैं। मोलर प्रेग्नेंसी, किसी भी महिला को हो सकती है, लेकिन कुछ स्थितियों में इसकी संभावना बढ़ जाती है। अगर महिला की उम्र 20 साल से कम या 35 वर्ष से अधिक हो, पहले भी मोलर प्रेग्नेंसी रही हो, दो या अधिक गर्भपात हुए हों, फोलिक एसिड या कैरोटिन युक्त विटामिन ए और प्रोटीन से भरपूर डाइट महिला न लेती हो।
रहें पूरी तरह अलर्ट (Molar Pregnancy Alert)
जैसे ही प्रेग्नेंसी टेस्ट पॉजिटिव आए, महिला को हमेशा सतर्क रहना चाहिए। गर्भावस्था के शुरुआती दौर में जब ब्लीडिंग या ब्राउन डिस्चार्ज हो, तभी बिना किसी देरी के स्त्री रोग विशेषज्ञ से कंसल्ट करना चाहिए। डॉक्टर प्रेग्नेंसी टेस्ट, पेल्विक अल्ट्रासाउंड और प्रेग्नेंसी हार्मोंस के लिए ब्लड टेस्ट करके भ्रूण की स्थिति का पता लगाते हैं।
मोलर प्रेग्नेंसी का पता चलने पर गर्भवती महिला की सुरक्षा के लिहाज से डॉक्टर यूटेरस में मौजूद भ्रूण और एब्नॉर्मल टिश्यूज को जल्द से जल्द खत्म करने की सलाह देते हैं।
मोलर प्रेग्नेंसी के उपचार (Molar Pregnancy Treatment)
मोलर प्रेग्नेंसी को 3 तरीकों से रिमूव किया जा सकता है। पहला सक्शन इवैल्यूएशन या वैक्यूम एस्पीरेशन, जिसमें महिला की योनि के माध्यम से गर्भ तक पतली ट्यूब डाली जाती है और सक्शन से एब्नॉर्मल टिश्यूज को बाहर निकाल दिया जाता है। दूसरा मेडिसिन के जरिए और तीसरा डायलेशन एंड क्यूरेटेज (डीएंडसी) सर्जरी के जरिए एब्नॉर्मल टिश्यूज को रिमूव कर दिया।
रखें ध्यान (Molar Pregnancy Tips)
मोलर प्रेग्नेंसी रिमूव करवाने के बाद भी महिलाओं को नियमित रूप से चेकअप के लिए बुलाया जाता है। पूरी तरह से ठीक होने में 6-12 महीने लग जाते हैं, लेकिन कई बार मोलर प्रेग्नेंसी के एब्नॉर्मल टिश्यूज यूटेरस में रह जाते हैं या शरीर के दूसरे अंगों में फैल जाते हैं।
जिससे उन्हें कैंसर होने की आशंका रहती है। रूटीन ब्लड टेस्ट से इसका पता लगाया जा सकता है। डॉक्टर्स कीमोथेरेपी, रेडिएशन टेक्नीक और मेडिसिन के जरिए इलाज करते हैं। साथ ही महिला को फिर कंसीव करने के लिए डॉक्टर कम से कम 1 साल इंतजार करने की सलाह देते हैं। उपचार के बाद 100 में से 1 महिला में दोबारा मोलर प्रेग्नेंसी होने के चांस रहते हैं। ऐसे में जरूरी है कि शुरू से ही रेग्युलर चेकअप कराया जाए और कुछ भी प्रॉब्लम होने पर डॉक्टर को बताया जाए, जिससे समय पर उपचार किया जा सके।

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