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Ganga Saptami 2019: जानिए क्या है गंगा सप्तमी की तिथि, पूजन विधि, महत्व और कथा ?

हिंदू ग्रंथों में गंगा को मोक्ष दायनी, पाप नाशिनी नदी के नाम से जाना जाता हैं। इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है।अगर आप यह नहीं जानते की कब है गंगा सप्तमी की तिथि , पूजा विधि , महत्व और कथा तो इसके बारे में हम आज आपको बताएंगे। गंगा की उत्पत्ति इसी दिन से मानी जाती है। गंगा की उत्पत्ति को लेकर अलग- अलग मान्यतांए कुछ लोगों का मानना है कि गंगा की उत्पत्ति भगवान विष्णु के पैर के पसीने की बूंद से हुआ था । वहीं दूसरी और मान्यता है कि गंगा की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के कमंडल हुआ है। माना जाता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य के जीवन के सभी पाप कट जाते हैं। गंगा सप्तमी के एक महीने बाद ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इतना ही नहीं अगर कोई व्यक्ति रोगी है तो इस दिन गंगा में स्नान करने से उसका वह रोग ठीक हो जाता है। इस दिन दिया गया दान कई जन्मों का पुण्य फल प्रदान करता है। तो आइए जानते हैं इस दिन के बारे में…….

गंगा सप्तमी की तिथि
गंगा सप्तमी की तिथि -11 मई 2019

गंगा सप्तमी का महत्व
शास्त्रों के गंगा स्वर्ग लोक से शिव की जटाओं में पहुंची थी। इसलिए गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई । जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा पूजन और स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है। साथ ही समस्त सांसारिक पापों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से प्रभावित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है।

पुराणों के अनुसार गंगा विष्णु के अँगूठे से निकली हैं। जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के प्रयास से कपिल मुनि के शाप द्वारा भस्मीकृत हुए राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों का उद्धार करने के लिए हुआ था। तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार संभव हो सका था। इस कारण से ही गंगा का नाम का अन्य नाम दूसरा नाम भागीरथी पड़ा।

गंगा सप्तमी की पूजा विधि 
1.प्रात: काल सूर्योदय से पहले उठकर नित्य कर्म से निवृत हो जांए।
2.इसके बाद गंगा नदी के तट पर जाकर स्नान करें।
3.स्नान के बाद देवताओं तथा पितरों के निमित्त तर्पण करें।
4. उसके बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर नदी के तट पर हीं विधिपूर्वक गंगाजी तथा मधुसूदन भगवान की पूजा अर्चना करें।
5. पूजा करने के बाद किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मणको दान अवश्य दें।

गंगा सप्तमी की कथा 
गंगा जी का प्रादुर्भाव भगवान श्री विष्णु के चरणों से हुआ है। भागीरथ ने कठिन तपस्या करके गंगाजी को प्रसन्न किया और उन्हें धरती पर आने के लिये मना लिया। लेकिन गंगाजी का वेग इतना अधिक था कि यदि वे सीधे स्वर्ग से धरती पर आती तो अपने वेग के कारण पाताल में चली जाती। अत: इस वेग को कम करने के लिये सभी ने भगवान शिव से आराधना की और भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा जी को स्थान दिया ।

सप्तमी तिथि को ही गंगा जी स्वर्गलोक से निकल कर भगवान भोलेनाथ की जटाओं में आई थी। इसलिये इस तिथि को ही गंगा जी की उत्पति मानी जाती है। इस तिथि को गंगा-सप्तमी या गंगा जयंती भी कहते हैं। वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को ही क्रोध में आकर महर्षि जह्नु ने गंगा जी को पी लिया था । इसके बाद भागीरथ आदि राजाओं और अन्य के द्वारा प्रार्थना करने पर महर्षि जह्नु ने दाहिनी कान के छिद्र से उन्हें (गंगाजी) बाहर निकाला था; अत: जह्नु की कन्या होने की कारण ही गंगाजी को ‘जाह्नवी’ कहते हैं।

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