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Christmas 2018: कुंवारी लड़की के गर्भ से जन्मे थे यीशु, जाने इनके जीवन की कुछ रहस्यमयी बातें

‘यीशु आया जमीं पर खुशी करते हैं सारे आसमां’ दिसंबर यानि ईसा मसीह की इबादत और गीतों का महीना। 25 दिसंबर को दुनिया भर में क्रिसमस मनाया जाता है। इसके साथ ही ईसा मसीह के संदेशों और क्षमा की भावना को प्रसारित किया जाता है। ईसा मसीह के बारे में यूं तो सर्वविदित है लेकिन क्या ईशु से जुड़ी जरूरी बातें जानते हैं आप? क्या जानते हैं वह मृत्यु के बाद पुन: जीवित हो उठे थे क्या आप तक पहुंचे हैं बाइबिल के सही संदेश…? तो नहीं तो आज हम आपको ईसा मसीह के जीवन की जरूरी और अनसुनी बातें बताएंगे…..
कुंवारी लड़की के गर्भ से यीशु का जन्म
ईसाई धर्म के अनुसार प्रभु यीशु का जन्म बेथलेहेम (जोर्डन) में हुआ था। कहा जाता है कि यीशु का जन्म एक कुंवारी लड़की के गर्भ से हुआ था। यीशु की मां मैरी मरियम थीं जो एक यहूदी बढ़ई की पत्नी थीं। उनके पिता का नाम युसुफ था। वह बढ़ई थे और स्वयं यीशु ने अपना पारिवारिक बढ़ई का कार्य किया था। बाइबल के मुताबिक यीशु के चार भाई थे जिनके नाम याकूब, यूसुफ, शिमौन और यहूदा थे। इतना ही नहीं यीशु की बहनों का भी जिक्र मिलता है लेकिन उनके नाम नहीं बताए गए साथ ही यीशु के कजिन या सौतेले भाई बहनों का जिक्र है। यीशु के सद्व्यवहार, क्षमा याचना के भाव और सभ्यता के कारण वह दुनिया भर में एक महान संत के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
विद्वान यूहन्ना से दीक्षा ली थी यीशु ने
ईसाइयों के पवित्र ग्रंथ बाइबिल में यीशु के 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई जिक्र नहीं है। परंतु मान्यता है कि यीशु 30 वर्ष की उम्र से अपने गुरू यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा लेने चले गए थे। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे। यूहन्ना जोर्डन नदी के तट पर रहते थे, यीशु ने सर्वप्रथम जोर्डन नदी का जल ग्रहण किया और फिर यूहन्ना से धर्म,कर्म और सदभावना की दीक्षा ली। सुधारवादी एवं क्रांतिकारी विचारों के कारण यूहन्ना को कैद कर दिया गया। इसके बाद ईसा मसीह ने उनको विचारों को प्रसारित किया। यीशु मृत सागर और जोर्डन नदी के आस-पास के क्षेत्रों में उपदेश देते थे और लोग उनके अनुयायी हो गए।
यीशु के संदेश
यीशु ने ईसाई धर्म की दीक्षा के साथ-साथ लोगों को क्षमा, शांति, दया, करूणा, परोपकार, अहिंसा, सद्व्यवहार एवं पवित्र आचरण के उपदेश दिए। सद्गुणों और ममता की मूर्ती यीशु को लोग शांति दूत, क्षमा मूर्ति और महात्मा कहते थे। यीशु के अनुयायी बढ़ते गए और लोग उनके विचारों को अपनाकर दया भाव से भर गए। यीशु की ख्याति बढ़ने से तत्कालीन राजसत्ता ने उन्हें प्रताड़ित और दंडित करने की योजनाएं बनाई और जनता को उनके खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया। यीशु के उपदेश और उनकी सदविचार चारो ओर फैलने लगे। अज्ञानी और सीधे-सादे लोगों को वो छोटी-छोटी कथाओं से प्रेम, दया, क्षमा और भाईचारे की दीक्षा देते थे। वह चाहते थे लोग आपस में न लड़े बल्कि प्रेम भाव से रहे और माफ करने के गुण को अपनाएं। उन्होंने लोगों से कहा तुम्हे केवल प्रेम करने का अधिकार है, स्वार्थ भावना का त्याग करना चाहिए।
यीशु के शिष्य
यीशु के कुल बारह शिष्य थे जिनके नाम हम आपको बताते हैं- 1. पीटर 2. एंड्रयू 3. जेम्स (जबेदी का बेटा) 4. जॉन 5. फिलिप 6. बर्थोलोमियू 7. मैथ्यू 8. थॉमस 9. जेम्स (अल्फाइयूज का बेटा), 10. संत जुदास 11. साइमन द जिलोट 12. मत्तिय्याह। इन्ही में से एक ने यीशु के साथ विश्वासघात किया था।
यीशु के शिष्य ने ही किया विश्वासघात
सन 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर यरुशलम पहुंचे। वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। यीशु के साथ एक भयावह घटना हुई इसका नाम अंतिम भोज था। तब भोजन के बाद यीशु अपने तीन शिष्यों पतरत, याकूब और सोहन के साथ जैतन पहाड़ के गेथ रोमनी बाग में गए। मन की बेचैनी को दूर करने के लिए वह एकांत में जाकर प्रार्थना करने लगे। उन्होंने ईश्वर से कहा दु:ख उठाना और मरना मनुष्य के लिए दुखदायी है किंतु यही तेरी इच्छा है तो ऐसा ही हो। तब उन्होंने अपने शिष्यों से कहा एक समय में कोई विश्वासघाती मुझे शत्रुओं के हाथों सौंप देगा। उनके शिष्य जुदास ने उनके साथ विश्‍वासघात किया था। उसने यीशु को गिरफ्तार कर लिया और उन पर ईश निंदा के आरोप लगाकर मृत्यु दंड देने की मांग की।
सूली पर लटकाए गए यीशु
यीशु के विश्वासघाती शिष्य ने पश्चाताप में आत्महत्या कर ली थी। यीशु को अंतिम निर्णय के लिए न्यायालय भेजा गया तो बाहर शत्रुओं ने भीड़ को गुमराह करके यीशु को ईश निंदक घोषित कर दिया। सभी लोग यीशु को प्राणदंड देने की मांग करने लगे लेकिन न्यायधीश ने लोगों से पूछा इसने क्या अपराध किया है? मुझे तो इसमें कोई दोष नहीं दिखता। किंतु गुमराह हुए लोगों ने यीशु को खुद सूली पर लटका दिया।
इतना ही नहीं यीशु को कीलों से ठोक दिया गया। हाथ व पैरों में ठुकी कीले आग की तरह जल रही थीं। खुद को सूली पर लटकाए जाने पर भी यीशु टस से मस नहीं हुए और अपने शत्रुओं को माफ कर दिया। ईसा मसीह ने परमेश्वर से कहा हे! मेरे ईश्वर तूने मुझे क्यों अकेला छोड़ दिया? इन्हें माफ करना क्योंकि ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं।
मृत्यु के बाद पुनर्जीवित हो गए थे यीशु
सूली पर लटकाए जाने के तीन दिन बाद यीशु जीवित हो उठे। कुछ घंटों उनका दिव्य शरीर क्रूस पर झूलता रहा अंत में उनका सिर नीचे की ओर लटक गया और इस तरह आत्मा ने शरीर से विदा ले ली। मृत्यु के तीसरे दिन एक दैवीय चमत्कार हुआ और यीशु पुन: जीवित हो उठे।
क्रिसमस का अर्थ
क्रिसमस होता है क्राइस्ट्स मास जो ईसा मसीह के जन्म का महीना है। 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिन के उपलक्ष्य में क्रिसमस डे मनाया जाता है। यह ईसाइयों का महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन लोग क्रिसमस ट्री लगाते हैं, सांता क्लॉज बच्चों के लिए गिफ्ट लाता है और लोग मिठाई बांटते हैं केक काटते हैं। इस दिन लोग चर्च जाते हैं ईसा मसीह दे संदेशों को प्रसारित करते हैं।
बाइबिल क्या है
बाइबिल का अर्थ एक पवित्र किताब माना जाता है। यह ईसाइयों का पवित्र धर्मग्रंथ है। इसमें ओल्ड टेस्टामेंट अर्थात पुराने सिद्धांत या नियमों को भी शामिल किया गया है। इसमें यहूदी धर्म और यहूदी पौराणिक कहानियों, नियमों आदि बातों का वर्णन है। नए नियम के अंतर्गत ईसा के जीवन और दर्शन के बारे में उल्लेख है। इसमें खास तौर पर चार शुभ संदेश हैं जो ईसा के चार अनुयायियों मत्ती, लूका, युहन्ना और मरकुस द्वारा वर्णित हैं।

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