नई दिल्ली / लखनऊ : कल , शुक्रवार (20 अप्रैल) को रेप (आपराधिक मामले) से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज वकील पर बिफर पड़े और याचिकाकर्ता वकील से पूछ डाला कि क्या आपके किसी रिश्तेदार का रेप हुआ है ? याचिका में आरोप लगाया गया था कि पुलिस बलात्कार के ऐसे मामलों में प्राथमिकी दर्ज नहीं कर रही हैं जिनमें मंत्रियों, सांसदों या विधायकों जैसे ताकतवर लोगों की संलिप्तता होती है। इस पर जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने अधिवक्ता मनोहन लाल शर्मा से जनहित याचिका दायर करने के उसके औचित्य पर सवाल उठाते हुये अचरज व्यक्त किया कि आपराधिक मामलों में जनहित याचिका कैसे दायर हो सकती है।शीर्ष अदालत ने इस वकील से जानना चाहा कि उन्नाव बलात्कार कांड के संदर्भ में उसकी क्या हैसियत है ? न्यायालय यह भी जानना चाहता था कि उन्नाव कांड से वह किस तरह प्रभावित हैं और इससे उसका क्या संबंध है ? दो जजों की बेंच ने कहा, ‘‘ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पहले ही इस मामले में कुछ आदेश दिये हैं। शर्मा जी आप इस मामले में प्रभावित व्यक्ति नहीं है। आपराधिक मामले में जनहित याचिका दायर नहीं हो सकती है।
शर्मा ने याचिका में आरोप लगाया था कि पूर्व मंत्रियों और विधायकों जैसे ताकतवर लोगों की संलिप्तता वाले बलात्कार के अनेक मामलों में पुलिस प्राथमिकी दर्ज नहीं कर रही है। इस पर खंडपीठ ने सवाल किया, ‘‘इन बलात्कार के मामलों में आप कौन हैं? क्या बलात्कार पीड़िता का कोई रिश्तेदार राहत के लिये हमारे सामने है? क्या आपका ऐसा कोई रिश्तेदार है जिसके साथ बलात्कार हुआ है? पीठ की तल्ख टिप्पणी के बाद कोर्ट रूम में वकीलों के बीच एकदम सन्नाटा पसर गया।
जब सुप्रीमकोर्ट में अधिवक्ताओं से ऐसे प्रश्न पूछे जायेंगे तो भारत में अब सामान्य मदद करने वाले नागरिकों की क्या स्थिति होगी ? क्या अब कोई किसी पीड़ित की मदद करने के बारे में सोचेगा ? क्योंकि अब ऐसे प्रश्न न्यायपालिका और प्रशासन में पूछे जाने लगेंगे। सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति परीक्षाओं के माध्यम से क्यों नहीं होती है ?