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सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बाद समीक्षा करेगी मोदी सरकार, मोबाइल व बैंकिंग सहित कई जगहों पर जरूरत पर किया जायेगा विचार

लखनऊ : मोबाइल कंपनियों, बैंकों व स्कूल आदि में आधार की अनिवार्यता समाप्त करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार इन क्षेत्रों में उत्पन्न अनिश्चितता पर सभी पक्षों के साथ विचार-विमर्श के बाद कदम उठाएगी। अलबत्ता सरकार ने इस बात के संकेत दिये हैं कि जहां कानून की अनिवार्यता की जरूरत होगी, वहां आधार की सेवाओं के इस्तेमाल के लिए कानूनी समर्थन उपलब्ध कराया जा सकता है।

असर की व्यापकता की जांच के लिए अंतरमंत्रालयी समीक्षा

सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के फैसले के बाद आधार के जरिए सत्यापन करने वाली कंपनियों के लिए अगर कोई रास्ता नहीं खुलता तो उन्हें फिर से सत्यापन के पुराने ढर्रे पर लौटना होगा। इसमें इस्तेमाल होने वाली कागजी कार्रवाई के पक्ष में भी सरकार नहीं है। इसलिए सरकार चाहती है कि इसका रास्ता जल्द निकले।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रकाश में सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि लोग चाहें तो मोबाइल कंपनियों के साथ लिंक हुए आधार को वापस ले सकते हैं, लेकिन इसका रास्ता दूरसंचार मंत्रालय को निकालना होगा।

अदालत ने आधार अधिनियम की धारा 57 को निरस्त कर मोबाइल और बैंक खातों के साथ आधार लिंक करने की अनिवार्यता समाप्त की है। यह धारा कहती है कि दो पार्टियों के बीच हुए कांट्रैक्ट के जरिए आधार को इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। उसके लिए पर्याप्त कानून होना आवश्यक है।

केंद्रीय इलेक्ट्रानिक, सूचना प्रौद्योगिकी और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘सरकार इस फैसले के असर का व्यापक अध्ययन करेगी और अंतर मंत्रालयी विचार-विमर्श के बाद ही कोई निर्णय लेगी।’ सरकार देखना चाहती है कि मौजूदा कानून के दायरे में क्या कदम उठाये जाने संभव हैं।

ख़बरों के मुताबिक सरकार मानती है कि आधार के जरिए होने वाले सत्यापन ने काफी सुविधा प्रदान की है। इससे कागजी कार्रवाई और लोगों के सत्यापन में लगने वाले समय में काफी कमी आई है। सरकार में इस बात पर भी चर्चा है कि जिस तेजी से लोगों ने आधार को बैंक खातों और मोबाइल कंपनियों के साथ लिंक कराया है, उससे स्पष्ट है कि लोग अब इसे स्वीकार कर रहे हैं। अब तक 61.36 करोड़ आधार से, 97 करोड़ बैंक खातों को लिंक किया जा चुका है। जबकि 31 मई 2014 की अवधि तक आधार के साथ लिंक होने वाले खातों की संख्या मात्र 6.7 करोड़ थी।

जानकार भी मानते हैं कि देर-सबेर सरकार को यह व्यवस्था करनी ही होगी क्योंकि पिछले तीन वर्षो में सिर्फ दूरसंचार और बैंकिंग सेवाओं में ही नहीं बल्कि तमाम दूसरी वित्तीय सेवाओं से जुड़ी कंपनियां ई-केवाइसी के लिए आधार का इस्तेमाल कर रही हैं।

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