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सरकारी डॉक्टर ही लगा रहे है प्रधानमंत्री जन-औषधि योजना को पलीता, दवाओं को बता रहे है कूड़ा

लखनऊ। गरीबों को कम कीमत में प्रभावी और असरदार दवायें उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मोदी सरकार पार्ट-1 ने सन् 2014 में ब्यूरो ऑफ फार्मा पब्लिक सेक्टर, भारत सरकार ने फार्मास्यूटिकल विभाग, भारत सरकार के तहत् प्रधानमंत्री भारतीय जन-औषधि योजना केन्द्र की पूरे देश में शुरूआत की। जन औषधि केन्द्रों के माध्यम से आमजन को बहुत ही कम दामों पर दवायें मिलने लगी। इन केन्द्रों से जहाॅ लोगों को रोजगार मिला वही लोगों को कम कीमत पर दवायें मिलने लगी। यहाॅ छः सौ से अधिक दवाओं के साथ सर्जिकल सामान भी सस्ती दरों पर उपलब्ध होते है। केवल लखनऊ में ही विभिन्न स्थानों पर 53 जन औषधि केन्द्र है। इन केन्द्रों से मेडिकल स्टोर वालों की कमाई पर काफी प्रभाव पड़ा है। राजाजीपुरम क्षेत्र में सी-ब्लॉक में दो, बी-ब्लाक में एक और रानी लक्ष्मीबाई संयुक्त चिकित्सालय में एक जन औषधि केन्द्र है।

जो आम आदमी को बहुत कम दामों पर अच्छी दवायें उपलब्ध करा रहे है। राजाजीपुरम् क्षेत्र के इकलौते सरकारी चिकित्सालय रानी लक्ष्मीबाई संयुक्त चिकित्सालय के डाक्टर प्रदीप कुमार ने मरीज दिलीप को इन दवाओं को कूड़ा बताते हुये अस्पताल के बाहर ही विशेष मेडिकल स्टोर से दवा लाने को और दवा लेकर पुनः उनकों दिखाने को कहा। यह हाल केवल रानी लक्ष्मीबाई का ही नहीं है सभी निजी और सरकारी डाक्टरों का है। केजीएमयू के डाक्टरों को तो बाहर से मंहगी दवाओं को लिखना आदत में शामिल है खासतौर पर वे दवायें जो प्रधानमंत्री जन औषधि में नहीं मिलती है। यही हाल सभी अस्पतालों का है। चाहे बलरामपुर हो सिविल हो झलकारी बाई हो लोहिया हो या निजी अस्पताल हो सभी जगह मरीजों को मंहगी दवायें ही बाहर से लिखी जाती है कोई भी मरीजों को यह नहीं कहता है कि जन औषधि केन्द्र पर सस्ती और प्रभावशाली दवायें उपलब्ध है।

राजाजीपुरम् में मीना बेकरी स्थित जन औषधि केन्द्र के गणेश शंकर गुप्ता के अनुसार सारा खेल कमीशन का है जितनी ज्यादा बाहर की दवा मरीज खरीदता है उसी के हिसाब से इनका कमीशन बनता है। इसीलिये ये गरीब भोले भाले लोगों को कहते है कि जन औषधि केन्द्र की दवायें बेकार होती है। छोटे से लेकर बड़े डाक्टर, हो या निजी से लेकर सरकारी सब अपने फायदे के लिये लोगों को गुमराह कर रहे है। इन्होनें दावा किया कि क्यों नही डाक्टर अपने पर्चे पर लिख कर देता है कि जन औषधि की दवायें बेकार हे। दवायें अगर बेकार है तो मैं दस हजार रूपये नकद देने को तैयार हॅू। ऐसे ही लोग प्रधानमंत्री की इस महत्वपूर्ण लाभकारी योजना का भठ््ठा बैठा रहे है और गरीबों को इसका लाभ लेने से रोक रहे है।

राजाजीपुरम् के ही बी-ब्लाक स्थित जन औषधि केन्द्र के विके्रता नवीन कुमार ने बताया कि जन औषधि केन्द्रों पर बिकने वाली अधिकतर दवायें विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यू0 एच0 आ0े के मानकों को पूरा करती है और प्रमाणित है। ये उतनी ही प्रभावी और असरदार है जितनी कि नामचीन कम्पनियों की होती है। रानी लक्ष्मीबाई अस्पताल स्थित जन औषधि विक्रेता हेम चन्द के अनुसार बहुत सी दवायें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की होती है। ये कम्पनियां नहीं चाहती है कि सस्ती दवायें गरीबों को मिले। इनके प्रतिनिधि डाॅक्टरों पर अपनी दवायें मरीजों को जबरन लिखने का दबाब बनाते है मंहगी दवाओं के बदले में मंहगे उपहार, विदेशों मेे घूमने के पैकेज आदि देते है। इसलिये ये जेनरिक और जन औषधि केन्द्रों की दवाओं को बेकार बताते है।

यही वजह है कि जन औषधि केन्द्रों के बजाय दूसरे मेडिकल स्टारों पर मरीजों की भीड़ रहती है। जन औषधि केन्द्रों पर छः सौ से अधिक दवायें ओर सर्जिकल उपकरण मिलते है जिनकी कीमत बाजार में मिलने वाली दवाओं से बहुत कम होती है। उदाहरण के लिये ब्लड शुगर नापने की मशीन डा0 मोरपाॅन की बाजार में एक हजार दो सौ रूपये है तो जन औषधि केन्द्र में मात्र चार सौ पचास की ही मिलती है। 500 मि0ग्रा0 की सिप्लाॅक्सिन की दस टैबलेट की कीमत मात्र 25 रूपये है तो बाजार में 125 रूपये है, 100 मि0ग्रा0 की डायक्लोफेनेक की दस गोली की कीमत 4 रूपये बीस पैसे है तो बाजार में 61 रूपये होती है। सस्ती होने के साथ जन औषधि की सभी दवायें क्वालिटी चेक से गुजरती है। सामान्य वर्ग डाक्टरों के बहकावे में आकर दूसरों के बीच इनके खराब होने की अफवाह फैलाते है और प्रधानमंत्री की इस कल्याणकारी योजना पर पानी फेर रहे है।

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