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सन 1988 में पटियाला में रोड रेज केस में नवजोत सिंह सिद्घू को लगा झटका, कोर्ट करेगी फैसला कि सिद्धू को जेल की सजा दी जाए या नहीं.

लखनऊ : सन 1988 में पंजाब के पटियाला में रोड रेज केस में पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्घू को झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फिर से परीक्षण करने का फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि सिद्धू को जेल की सजा दी जाए या नहीं. शिकायककर्ता की पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सजा पर विचार करने को तैयार हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने सिद्घू को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

सुप्रीम कोर्ट सिद्धू के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई खुली अदालत में करेगा. नियमों के मुताबिक पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जज चेंबर में फैसला लेते हैं. कई मामलों में जरूरत होने पर वे खुली अदालत में सुनवाई करते हैं. इस मामले में सिद्धू को नोटिस जारी किया गया है. यानी सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर उनकी बात सुनना चाहता है.

सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 323 के तहत साधारण मारपीट की सजा सुनाई थी. इसमें अधिकतम एक साल की सजा या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों हैं. इस नए फैसले के तहत सिर्फ सजा पर ही विचार होगा, यानी एक साल की सजा पर ही. दोषी किस धारा में माना जाए, इस पर विचार नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने इस मामले में निर्देश जारी किया है.गत 15 मई को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जे चेलामेश्वर की बेंच ने सिद्धू को एक हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने कहा था कि गुरनाम सिंह की मौत के लिए सिद्धू को दोषी नहीं ठहरा सकते. मामला 30 साल पुराना 1988 का है. सिद्धू की गुरनाम से कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी. घटना में कोई हथियार इस्तेमाल नहीं हुआ. इस आधार पर हम मानते हैं कि एक हजार रुपये का जुर्माना न्याय देने के लिए ठीक होगा.

साल 1988 में पंजाब के पटियाला में रोड रेज के मामले में पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्घू पर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में फैसला सुनाया था. जस्टिस जे चेलामेश्वर और जस्टिस संजय किशन कौल को तय करना था कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व क्रिकेटर और पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू व उनके दोस्त रूपिंदर सिंह संधू को तीन साल की सजा के फैसले को बरकरार रखा जाए या नहीं. 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सुनवाई के दौरान सिद्धू की ओर से पेश वरिष्ठ वकील आरएस चीमा ने दोहराया था कि वे निर्दोष हैं और पुलिस ने उन्हें फंसाया है. यहां तक कि कोई भी गवाह खुद आगे नहीं आया बल्कि पुलिस ने गवाहों से बयान लिए. इस घटना के पीछे उनका कोई उद्देश्य नहीं था. वे यह नहीं जानते थे कि गुरनाम सिंह को दिल की बीमारी है. यह मामला किसी को बेरहमी से पीटकर मारने का नही है. इस मामले में कई अहम गवाहों के बयान पुलिस ने दर्ज नहीं किए. निचली अदालत का आरोपमुक्त करने का फैसला सही था. मेडिकल रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई है कि जिस व्यक्ति की मौत हुई उसे बेहद मामूली चोट आई थी. गुरनाम का दिल पहले से ही कमजोर था और यह बात पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सामने आई है. हाईकोर्ट का आदेश सही नहीं है. हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश पर ठीक से विश्लेषण नहीं किया और अपना नतीजा निकाला जो सही नहीं है.

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