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विपक्ष की सरकार से मांग, आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाने का विधेयक लाये

अशाेक यादव, लखनऊ। विपक्ष ने अन्य पिछड़े वर्ग जातियों की सूची बनाने का अधिकार राज्यों को देने संबंधित संविधान के 127वें संशोधन विधेयक का स्वागत करते हुए आज आरोप लगाया कि जनता के दबाव में उसे दो साल पहले की गयी गलती को सुधारने के लिए मजबूरीवश इस संशोधन को लाना पड़ा है। विपक्ष ने यह मांग भी की कि सरकार आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने के लिए भी विधेयक लाये।

मध्याह्न 12 बजे सदन की कार्यवाही शुरू होने पर अध्यक्ष ओम बिरला ने आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाने के बाद संविधान (127 वां संशोधन) विधेयक 2021 पर चर्चा आरंभ करने की घोषणा की। जिसके बाद सदन के बीचोंबीच हंगामा एवं नारेबाजी कर रहे विपक्षी दलों के सदस्य अपने अपने स्थानों पर आ गये ताकि वे चर्चा में भाग लें सकें। हालांकि चर्चा में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने पेगासस मामले पर चर्चा कराने का प्रस्ताव किया लेकिन आसन ने इसे स्वीकार नहीं किया।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेन्द्र कुमार ने विधेयक को सदन में चर्चा के लिए पेश करते हुए कहा कि इस विधेयक के माध्यम से यह स्पष्ट करना है कि ओबीसी जातियों की सूची राज्यों की सामाजिक आवश्यकता के अनुसार तय करने का अधिकार मिल जायेगा। इससे राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों की नौकरियों एवं शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश प्रक्रियाओं में स्थानीय सूचियों में वर्णित ओबीसी जातियों को लाभ मिलेगा। इस संशोधन में राज्य ओबीसी आयोग से परामर्श की शर्त को भी समाप्त कर दिया गया है। इससे ओबीसी समुदायों के लोगों के राेजगार एवं शिक्षा की स्थिति में सुधार आयेगा।

चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के अधीररंजन चौधरी ने कहा कि यह कहना सरासर गलत है कि हम आदिवासियों, दलितों और ओबीसी के पक्ष में नहीं है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता राजीव गांधी ने नगर पालिका कानून और पंचायत कानून में अनुसूचित जातियों जनजातियों को आरक्षण दिया। चौधरी ने कहा कि कांग्रेस इस विधेयक का समर्थन करती है। लेकिन सरकार को सोचना चाहिए कि यह विधेयक क्यों लाना पड़ा। ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि 2018 में संविधान के 102वें संशोधन के समय विपक्ष ने चेताया था कि उसमें ओबीसी जातियों के चयन के राज्यों के अधिकार का हनन किया जा रहा है लेकिन सरकार ने हमारी बात पर ध्यान नहीं दिया। अगर हमारी बात सुनी गयी होती तो इस विधेयक को लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

उन्होंने कहा कि सरकार को अपने बहुमत पर गुमान है और वह किसी की भी परवाह नहीं करती है। लेकिन जनता की बोली के आगे झुकना पड़ता है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में चुनाव आने वाले हैं तो सरकार जनता को तोहफा देकर खुश करना चाहती है। उन्होंने कहा कि सरकार के पास सारे उपाय समाप्त हो चुके हैं। हम इस विधेयक का समर्थन करते हैं लेकिन सरकार को इसके बाद 1992 के इंदिरा साहनी केस में आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने के लिए भी एक विधेयक लाना चाहिए। जिस प्रकार से तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण है, उसी प्रकार से देश भर में होना चाहिए।

कांग्रेस नेता ने कहा कि देश में आरक्षण की व्यवस्था सदियों से चली आ रही है। लेकिन संविधान के 102वें संशोधन के बाद महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायालय ने जुलाई में कहा कि केवल केन्द्र सरकार को ही ओबीसी की सूची बनाने का अधिकार है। इससे 671 जातियां ओबीसी की श्रेणी से बाहर हो जातीं। इसलिए सरकार को 127 वां संशोधन लाना पड़ा है। उन्होंने कहा कि सरकार ने पहले स्वयं ही संविधान से छेड़छाड़ की और अब जब लगा कि ये तो गड़बड़ हो गयी तो सुधार रहे हैं। ये सरकार की मजबूरी है। उन्होंने कहा कि हम सहयोगी संघवाद में यकीन रखते हैं इसलिये इस विधेयक समर्थन कर रहे हैं।

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