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लगातार तेज बुखार, सिरदर्द, और ठंड के लक्षणों को न करें नजरअंदाज

लखनऊ। रिसर्च से पता चलता है कि एक्यूट फेब्राइल इलनेस (एएफआई) भारत में विकृति और मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में से एक है। ज्यादातर मामलों में, सिर्फ क्लिनिकल प्रस्तुति के आधार पर एएफआई का पता लगाना संभव नहीं हो पाता है। प्रायः जब तक जांच के परिणाम उपलब्ध न हों, तब तक चिकित्सक एंटीपाइरेटिक्स के साथ कम से कम प्रतिरोध वाले सुरक्षित एम्पेरिकल एंटीबायोटिक्स का उपयोग करते हैं। हालांकि, अध्ययनों से पता चला है कि डाॅक्सीसाइक्लिन नामक एक सदाबहार एंटीबायोटिक का इस्तेमाल अधिकांश ऐसे संक्रमणों में लाभदायक साबित हुआ है, जो स्क्रब टायफस सहित एएफआई का कारण बन सकते हैं। इसके बारे में बात करते हुए हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष, डॉ. के के अग्रवाल ने कहा, ‘जैसा कि भारत जैसे ट्राॅपिकल देशों में आम बात है, मानसून की शुरुआत के साथ एएफआई की घटनाएं बढ़ती हैं और सर्दियों के महीनों में जारी रहती हैं।

 

इस स्थिति के कुछ लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, ठंड या मांसपेशियों और जोड़ों में तीव्र दर्द होना शामिल है। एएफआई का सबसे आम कारण वेक्टर जनित बीमारियां हैं। खून पीने वाले मच्छर, टिक्स और फ्लीज ऐसे वेक्टर या रोगजनकों के वाहक हैं, जो इस कंडीशन का कारण बन सकते हैं। डाॅक्सीसाइक्लिन में एंटीइनफ्लेमेटरी और इम्युनोमोडुलेटरी गुण है और डेंगू बुखार में यह एक एंटी-वायरल भूमिका निभाता है। इस प्रकार चिकित्सक एएफआई के लिए इसे एक सुरक्षित और प्रभावी उपचार विकल्प मान सकते हैं। स्क्रब टाइफस और लेप्टोस्पायरोसिस जैसे घातक बुखारों की जांच महंगी साबित हो सकती है और इसका खर्च सैकड़ों या हजारों में जा सकता है। इसलिए एम्पिरिकल एंटीबायोटिक दवाएं लिखने में समझदारी है, जिसकी लागत सौ रुपये से भी कम हो सकती है। डॉ. अग्रवाल ने आगे कहा, ‘साइटोकिन्स के उन्नत स्तर विभिन्न जीवाणुओं और वायरल संक्रमणों की पहचान हैं। ऐसे एजेंट्स जो साइटोकिन्स के उत्पादन और गतिविधि को कम करते हैं, संभावित चिकित्सकीय विकल्प हैं।

 

एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग एंटी-साइटोकिन थेरेपी के रूप में करना तर्कसंगत साबित हुआ है और यह दिखाया गया है कि वे साइटोकिन उत्पादन को सुधार सकते हैं। डॉक्सिसाइक्लिन एक व्यापक स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक है, जो इस प्रकार के तीव्र बुखार में एक उपयुक्त एंटीबायोटिक हो सकता है। यह एंटीबायोटिक बैक्टीरियोस्टेटिक है और यह सूजन को खत्म करता है, जिससे यह हरपिस सिम्प्लेक्स वायरस, रोटा वायरस और डेंगू वायरस के खिलाफ काम करता है। हालांकि सरकार इन कैरियर्स या वाहकों का विकास रोकने के लिए कुछ उपाय करती है, लेकिन यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि इन वैक्टरों के संपर्क में आने से बचने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर कुछ सावधानीपूर्ण कदम उठाए जाएं। पर्यावरण संरक्षण एजेंसी में रजिस्टर्ड कीटनाषकों का उपयोग करके मच्छर-जनित रोगों से निपटने में मदद मिल सकती है।

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