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देश में कोरोना का सर्वाधिक असर गरीबों पर, केंद्र ने उठाए कई कदम: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश में कोरोना महामारी के प्रकोप पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए शुक्रवार को कहा कि इसका सबसे कठोर प्रहार गरीबों पर हुआ है। उन्होंने कहा सरकार ने इसके प्रभाव से उबारने के लिए कई कल्याणकारी कदम उठाये हैं, जिसने अस्त-व्यस्त जीवन का कष्ट कम किया है।

रामनाथ कोविंद ने 74वें स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर ‘राष्ट्र के नाम सम्बोधन’ में कहा कि कोरोना का प्रभाव गरीबों और राेजाना आजीविका कमाने वालों पर सबसे अधिक हुआ है। संकट के इस दौर में, उन्हें सहारा देने के लिए, वायरस की रोकथाम के प्रयासों के साथ-साथ, अनेक जन-कल्याणकारी कदम उठाए गए हैं। ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ की शुरूआत करके सरकार ने करोड़ों लोगों को आजीविका दी है, ताकि महामारी के कारण नौकरी गंवाने, एक जगह से दूसरी जगह जाने तथा जीवन के अस्त-व्यस्त होने के कष्ट को कम किया जा सके।

राष्ट्रपति ने कहा, “किसी भी परिवार को भूखा न रहना पड़े, इसके लिए जरूरतमन्द लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने के, दुनिया के सबसे बड़े इस अभियान को इस साल नवंबर तक बढ़ा दिया गया है। इस अभियान से हर महीने, लगभग 80 करोड़ लोगों को राशन मिलना सुनिश्चित किया गया है। राशन कार्ड धारक पूरे देश में कहीं भी राशन ले सकें, इसके लिए सभी राज्यों को ‘वन नेशन – वन राशन कार्ड’ योजना के तहत लाया जा रहा है।”

रामनाथ कोविंद ने कहा कि दुनिया में कहीं पर भी मुसीबत में फंसे भारतीयों की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध, सरकार द्वारा ‘वंदे भारत मिशन’ के तहत, 10 लाख से अधिक लोगों को स्वदेश वापस लाया गया है। भारतीय रेल द्वारा इस चुनौती-पूर्ण समय में ट्रेन सेवाएं चलाकर, वस्तुओं तथा लोगों के आवागमन को संभव किया गया है।

उन्होंने कहा, “अपने सामर्थ्य में विश्वास के बल पर, हमने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में अन्य देशों की ओर भी मदद का हाथ बढ़ाया है। अन्य देशों के अनुरोध पर, दवाओं की आपूर्ति करके, हमने एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि भारत संकट की घड़ी में विश्व समुदाय के साथ खड़ा रहता है। क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर महामारी का सामना करने के लिए प्रभावी रणनीतियों को विकसित करने में हमारी अग्रणी भूमिका रही है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता के लिए, हाल ही में सम्पन्न चुनावों में मिला भारी समर्थन, भारत के प्रति व्यापक अंतरराष्ट्रीय सद्भावना का प्रमाण है।”

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की यह परंपरा रही है कि यहां के लोग केवल अपने लिए नहीं जीते हैं, बल्कि पूरे विश्व के कल्याण की भावना के साथ कार्य करते हैं। भारत की आत्मनिर्भरता का अर्थ स्वयं सक्षम होना है, दुनिया से अलगाव या दूरी बनाना नहीं। इसका अर्थ यह भी है कि भारत वैश्विक बाज़ार व्यवस्था में शामिल भी रहेगा और अपनी विशेष पहचान भी कायम रखेगा।

राष्ट्रपति ने स्वास्थ्य-सेवा को और मजबूत करने को तीसरा सबक करार देते हुए कहा कि सार्वजनिक अस्पतालों और प्रयोगशालाओं ने कोविड-19 का सामना करने में अग्रणी भूमिका निभाई है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के कारण गरीबों के लिए इस महामारी का सामना करना संभव हो पाया है। इसलिए, इन सार्वजनिक स्वास्थ्य-सुविधाओं को और अधिक विस्तृत एवं सुदृढ़ बनाना होगा।”

उन्होंने कहा, “चौथा सबक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित है। इस वैश्विक महामारी के कारण विज्ञान और प्रौद्योगिकी को तेजी से विकसित करने की आवश्यकता पर और अधिक ध्यान गया है। लॉकडाउन और उसके बाद क्रमशः अनलॉक की प्रक्रिया के दौरान शासन, शिक्षा, व्यवसाय, कार्यालय के कामकाज और सामाजिक संपर्क के प्रभावी माध्यम के रूप में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को अपनाया गया है। इस माध्यम की सहायता से सभी भारतीयों का जीवन बचाने और कामकाज को फिर से शुरू करने के उद्देश्यों को, एक साथ हासिल करने में मदद मिली है।”

रामनाथ कोविंद ने कहा कि केंद्र एवं राज्य सरकारों के कार्यालय, अपने कार्यों के निर्वहन के लिए, बड़े पैमाने पर वर्चुअल इंटरफ़ेस का इस्तेमाल कर रहे हैं। न्याय प्रदान करने के लिए न्यायपालिका ने वर्चुअल सुनवाई को अपनाया है। वर्चुअल कॉन्फ्रेंस आयोजित करने तथा अन्य अनेक गतिविधियों को सम्पन्न करने के लिए राष्ट्रपति भवन में भी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है। आईटी और संचार उपकरणों की सहायता से डिस्टेन्स एजुकेशन तथा ई-लर्निंग को बढ़ावा मिला है।

कोरोना के कारण घर से काम करने के प्रचलन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों में अब घर से काम करने का ही प्रचलन हो गया है। प्रौद्योगिकी की सहायता से सरकारी और निजी क्षेत्रों के अनेक प्रतिष्ठानों द्वारा सामान्य स्तर से कहीं अधिक कामकाज करके अर्थव्यवस्था को गति प्रदान की गई है। उन्होंने कहा, “इस प्रकार हमने यह सबक सीखा है कि प्रकृति से सामंजस्य रखते हुए विज्ञान और प्रौद्योगिकी को अपनाने से हमारे अस्तित्व और विकास की निरंतरता को बनाए रखने में सहायता मिलेगी।”

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