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कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने जलियांवाला बाग विधेयक का किया विरोध, कहा- जब स्मारक बनाया गया तब से ही कांग्रेस अध्यक्ष को स्मारक का पदेन ट्रस्टी बनाया गया, बीजेपी ने दिया जवाब

नई दिल्ली: लोकसभा में सोमवार को कांग्रेस के विरोध के बीच जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019 पेश किया गया जिसमें न्यासी के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष को हटाकर उसके स्थान पर लोकसभा में मान्यता प्राप्त विरोधी दल का नेता या उस स्थिति में सदन में सबसे बड़े एकल विरोधी दल के नेता को न्यासी बनाने का प्रस्ताव किया गया है जब किसी मान्यता प्राप्त विरोधी दल का नेता नहीं हो. निचले सदन में संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019 पेश किया. विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस के शशि थरूर ने कहा कि जब स्मारक बनाया गया तब से ही कांग्रेस अध्यक्ष को स्मारक का पदेन ट्रस्टी बनाया गया.

सरकार इस व्यवस्था को बदलकर इस स्मारक के लिए स्वतंत्रता संग्राम के महत्व को नकार रही है. उन्होंने कहा कि इस विधेयक के जरिये सरकार को उससे इत्तेफाक नहीं रखने वाले ट्रस्टियों को हटाने का अधिकार मिल जाएगा. यह एकतरफा है. कांग्रेस ने इस ट्रस्ट के लिये पैसा जुटाया था. इस पर पटेल ने कहा कि विधेयक फरवरी में लोकसभा में पारित हो गया था लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो सका, इसलिए इसे फिर से निम्न सदन में लेकर सरकार आई है. उन्होंने कहा कि इतिहास की बात कर रहे कांग्रेस के सदस्य रिकार्ड पलट कर देख लें.

40-50 साल में कांग्रेस ने कुछ नहीं किया. पटेल ने यह भी कहा कि कांग्रेस सदस्य विधेयक पर चर्चा के दौरान अपने विषय उठा सकते हैं और चर्चा के बाद उनके सारे सवालों के उत्तर दिये जाएंगे. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम 1951 को जलियांवाला बाग, अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को मारे गए या घायल हुए व्यक्तियों की स्मृति को कायम रखने के लिये एक राष्ट्रीय स्मारक के निर्माण और प्रबंध का उपबंध करने के लिये अधिनियमित किया गया था. इसमें स्मारक के निर्माण और प्रबंध के लिये एक न्यास का उपबंध और कतिपय आजीवन न्यासियों सहित न्यास की संरचना का भी उपबंध है. आजीवन नियुक्त न्यासियों के कालांतर में निधन से स्थिति बदल गई और न्यास में सरकार का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं था.

वर्तमान में न्यास की संरचना में कतिपय असंगतियां देखी गई हैं. आगे कहा गया है कि इसमें एक दल विशेष का न्यासी बनने और लोकसभा में विरोधी दल के नेता को एक न्यासी बनाने का उपबंध है. लोकसभा में विरोधी दल के नेता के अभाव में और दल विशेष का न्यासी होने को ध्यान में रखते हुए इसे अराजनीतिक बनाने के लिये अधिनियम में संशोधन की जरूरत समझी गई.जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019 में न्यासी के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष को हटाकर उसके स्थान पर लोकसभा में मान्यता प्राप्त विरोधी दल का नेता या उस स्थिति में सदन में सबसे बड़े एकल विरोधी दल के नेता को न्यासी बनाने का प्रस्ताव किया गया है जब किसी मान्यता प्राप्त विरोधी दल का नेता नहीं हो. इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार को किसी नाम निर्देशित न्यासी की पदावधि को, उस पदावधि के खत्म होने से पहले ही समाप्त करने की शक्ति प्रदान की जाती है.

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