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केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिया जवाब, रविदास मंदिर के लिए उसी जगह देंगे जमीन

नई दिल्ली: दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित श्री गुरु रविदास मंदिर को गिराए जाने के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान केंद्र सरकार ने रविदास मंदिर के लिए जमीन देने का वादा किया। श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए केंद्र सरकार उसी जगह पर 200 वर्ग मीटर की जमीन दक्षिणी दिल्ली में उसी जगह देगी जहां मंदिर को तोड़ा गया था। सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि भक्तों की एक समिति को मंदिर निर्माण के लिए सरकार जमीन देगी। कोर्ट ने केंद्र के प्रस्ताव को रिकॉर्ड में लिया, अब इस मामले में अगली सुनवाई सोमवार को होगी। सुप्रीम कोर्ट के अतिक्रमण हटाने के आदेश पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डी.डी.ए.) ने पुलिस बल के साथ तुगलकाबाद के वन क्षेत्र में स्थित गुरु रविदास जी महाराज के मंदिर को तोड़ दिया था। डी.डी.ए. का दावा है कि मंदिर उसकी जमीन पर अवैध रूप से बनाया गया था जिसका मामला अदालत में सुना गया और अंत में इसे हटाने का आदेश हुआ। मंदिर तोड़े जाने की खबर से संत रविदास के अनुयायियों में रोष फैल गया।एडवोकेट सतपाल विरदी, एडवोकेट इंद्रजीत सिंह, नैशनल शैड्यूल्ड कास्ट अलायंस के अध्यक्ष परमजीत सिंह कैंथ, आदि धर्म मिशन खुरालगढ़ साहिब के संत सतविन्द्र सिंह हीरा के अनुसार तुगलकाबाद स्थित श्री गुरु रविदास मंदिर 600 वर्ष पुराना मंदिर है। इस मंदिर की जमीन दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोधी ने दी थी। सिकंदर लोधी हर हाल में श्री गुरु रविदास जी का धर्मांतरण कर उन्हें मुस्लिम बनाना चाहता था ।

लेकिन जब किसी भी तरह वह सफल नहीं हो पाया तो बादशाह के आदेश पर श्री गुरु रविदास महाराज को जेल में डाल दिया गया। इसके जवाब में चंबर वंश के क्षत्रियों ने दिल्ली को घेर लिया था। इससे भयभीत होकर सिकंदर लोधी ने गुरु महाराज को छोड़ दिया।यही नहीं, गुरु महाराज की शिक्षाओं से प्रभावित होकर स्वयं बादशाह सिकंदर लोधी ने 800 कनाल (लगभग 12 बीघा और 7 बिस्वा) जमीन उपहार स्वरूप दी थी, जिस पर गुरु महाराज के अनुयायियों ने 600 साल पहले मंदिर बनाकर सत्संग शुरू किया था। एडवोकेट विरदी ने बताया कि 1959 में स्वयं उपप्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम इस मंदिर में गए और मंदिर का पुनरुद्धार करवाया। यही नहीं, दिल्ली रैवेन्यू रिकार्ड में इस मंदिर का इंदराज दर्ज है। 1964 में इस मंदिर की जमीन को दिल्ली विकास प्राधिकरण ने अपने कब्जे में ले लिया और कोर्ट में केस चला गया।

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