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कांग्रेस -AAP की मजबूरी है गठबंधन, अलग-अलग चुनाव लड़कर BJP से पार पाना संभव नहीं

दिल्ली : कांग्रेस-आप के बीच संभावित गठबंधन को लेकर कभी हां तो कभी ना का अंत होने का नाम नहीं ले रहा। एक नेता गठबंधन के लिए ना करता है तो अगले ही दिन दोनों पार्टियों का दूसरा नेता गठबंधन का रास्ता खुला होने का दावा कर पार्टी कार्यकर्ताओं को भ्रम में रखने में कामयाब हो रहा है। दरअसल दोनों ही पार्टियों की गठबंधन करने की अपनी-अपनी मजबूरियां है। दोनों के नेताओं को पता है कि अपने स्तर पर भाजपा से पार पाना संभव नहीं है। यही कारण है कि नामांकन के अंतिम दिन तक गठबंधन को लेकर कयास जारी रहे। आप नेता संजय सिंह व गोपाल राय ने बातचीत के रास्ते बंद किए तो उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया गठबंधन के रास्ते खुला रखने के बयान दे रहे हैं।

उधर प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित ना कहती है तो प्रदेश प्रभारी पीसी चाको की भी यही हालत है। अब स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी गठबंधन के रास्ते खुले रखने के संकेत दे दिए हैं। गठबंधन कांग्रेस व आप दोनों की मजबूरी है। एक मजबूरी यह कि भाजपा को एक बार फिर सातों सीटें आसानी से जीतने न देना है तो दूसरी मजबूरी आप की है। आप को पता है कि अगले साल विधानसभा चुनाव तय है। दिल्ली में आप बिना कांग्रेस से गठबंधन पाए भाजपा से पार पाने में असमर्थ है। ऐसे में माना जा रहा है कि दिल्ली में सातों सीटों पर हार हुई तो उसका असर दिल्ली विधानसभा चुनावों पर पड़ना तय है।

उधर, कांग्रेस के कई नेता चुनाव तो लड़ना चाहते है लेकिन उनको भी पता है कि वर्तमान परिस्थितियों में उनकी जीत सुनिश्चित नहीं है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल तो सरेआम कह चुके है कि गठबंधन होने की सूरत में ही वे चुनाव लड़ेंगे। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस ने फिलहाल चार सीटों पर नाम तय किए हैं इनमें से दो नेता तो चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं। उनका कहना है कि उनका नाम बिना उनकी राय लिए तय किया गया है। ऐसे में ये चुनाव लड़ने से पीछे हटते हैं तो भाजपा को बैठे-बिठाए कांग्रेस पर चुनाव से भागने का मुद्दा मिलेगा।

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