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ऑडिट विभाग कर्मियों ने दी आमरण अनशन की चेतावनी, मांगों के समाधान के लिए दिया एक जून तक का समय

उत्तराखंडः ऑडिट विभाग के ढांचे का गठन और कार्मिकों की सेवा शर्तों का निर्धारण न होने की स्थिति में कर्मचारी आमरण अनशन करेंगे। उत्तराखंड लेखा परीक्षा सेवा संघ ने लंबित मांगों के समाधान के लिए शासन को एक जून तक वार्ता करने का समय दिया है। इसके बाद चौबीस घंटे के नोटिस पर कभी भी आमरण अनशन शुरू कर दिया जाएगा। रविवार को प्रेस क्लब में प्रेसवार्ता में उत्तराखंड लेखा परीक्षा सेवा संघ के प्रदेश अध्यक्ष एमके सिंह और महासचिव रमेश चंद्र पांडे ने कहा कि ऑडिट विभाग में वर्षों से पदोन्नति न मिलने के कारण कर्मचारियों में भारी आक्रोश है।

अब तक लेखा परीक्षा संवर्ग के 50 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुके हैं। शेष कर्मचारी भी कोर्ट जाने की तैयारी में हैं। राज्य गठन के 18 साल बाद भी ऑडिट विभाग के ढांचे का गठन नहीं हो पाया और न ही कार्मिकों की सेवा शर्तें निर्धारित की गईं। शासन स्तर पर बार-बार मांगें उठाने पर भी उचित कार्रवाई नहीं की जा रही है। संघ ने निर्णय लिया कि प्रमोशन और सेवा शर्तों के निर्धारण के लिए एक जून तक शासन स्तर पर वार्ता नहीं की जाती है तो कर्मचारी आमरण अनशन शुरू करेंगे। प्रदेश अध्यक्ष एमके सिंह ने कहा कि विभागीय अधिकारियों ने संघ को विश्वास में लिए बिना ही अप्रैल 2016 से स्वीकृत ढांचे को पलटते हुए अक्तूबर 2018 में नया ढांचा बना दिया।

अब सेवा शर्तों का निर्धारण गुपचुप तरीके से करने का प्रयास किया जा रहा है। इसका संघ कड़ा विरोध करेगा। महासचिव रमेश चंद्र पांडे ने कहा कि लंबित मांगों पर शासन स्तर पर संवाद न होने से कर्मचारियों को आंदोलन के लिए बाध्य किया जा रहा है। राज्य में पहली बार ऑनलाइन ऑडिट प्रबंधन प्रणाली अनिवार्य रूप से लागू करने के आदेश तो दे दिए गए हैं, लेकिन जिन्हें ऑनलाइन ऑडिट करना है उनके पक्ष को जानने व सुनने की जरूरत तक नहीं समझी जा रही है। इस मौके पर संघ के संरक्षक वीपी सिंह, संयुक्त मंत्री जगत सिंह तोमर, कोषाध्यक्ष संजय कुमार गुप्ता, देवेेंद्र चौहान, गणेश दत्त शर्मा, वीरेंद्र तोमर, मदन आर्य आदि उपस्थित थे।

संघ का कहना है कि जून 2015 में शासन ने विभाग का नवीनतम ढांचा कैबिनेट स्वीकृति के बाद पदोन्नति पर विचार करने की बात कही थी। इससे खफा होकर स्थानीय निधि के चार और सहकारी लेखा परीक्षा के नौ अधिकारियों ने जिला लेखा परीक्षा अधिकारी के पद पर पदोन्नति के लिए याचिका दायर की। कोर्ट ने बारह सप्ताह के भीतर विधमान नियम के आधार पर पदोन्नति करने के आदेश दिए। इसका पालन करने के बजाय विभाग ने अपील दायर की।

आखिरकार उच्च न्यायालय ने अक्तूबर 2018 में आदेश जारी किए कि तीन माह के भीतर वर्षवार रिक्तियों का आगणन कर पदोन्नति की जाए। कोर्ट के आदेशों का पालन न करने पर अवमानना याचिका दायर होने के बाद मार्च 2019 में विभाग की डीपीसी की गई। जिसमें छह को जिला लेखा परीक्षा अधिकारी के पद पर पदोन्नत किया गया। पदोन्नति आदेश पर विवाद के कारण की वजह यह रही कि चयन के लिए केवल वर्ष 2012-13 से 2014-15 के समय की रिक्तियों को ही शामिल किया गया। जबकि मार्च 2019 में डीपीसी हुई थी तो नियमानुसार जून 2019 तक की रिक्तियों को शामिल किया जाना था।

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