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आखिर कैसे पराजित हो गयी डिम्पल यादव, क्या दलित मतदाताओं ने मायावती की बात को नकारा ?

कन्नौज। बीबीआईपी का दर्जा पाने बाला कन्नौज जो कि समाजवादी पार्टी का दुर्ग किला माना जाता था। कन्नौज से मुलायम सिंह से लेकर सपा की कई पीढ़ियों का कब्जा बरकरार रहा। वही इस बार समाजवादी पार्टी द्वारा बसपा से गठबंधन के बाद प्रत्याशी बना कर चुनाव मैदान में उतारी गयी। डिम्पल यादव को पराजित का सामना करना पड़ा। इससे तो अनुमान लगाया जा सकता है। सपा द्वारा बसपा से गठबंधन के बाद देखा गया। दलित मतदाताओं का सपना आखिर साकार नही हो सका। जिससे डिम्पल यादव को पराजय का सामना करना पड़ा।

विवरण के अनुसार कन्नौज लोक सभा सीट पर सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह से लेकर उनके पुत्र उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लेकर डिम्पल यादव का बर्षो से कब्जा इस सीट पर बरकरार था। जिससे कन्नौज लोक सभा सीट सपा का दुर्ग किला माना जाता था। सपा के इस दुर्ग किले को ढाने के लिए कई बार बसपा सहित भाजपा हाईकमान द्वारा अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतार कर सपा के कन्नौज दुर्ग किले को ढाहने की कोशिश तो की गयी। परन्तु सपा और बसपा सपा के दुर्ग किले को ढाहने में सफल नही हो सके।

वही इस बार समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा बसपा सुप्रीमों मायावती से गठबंधन कर लिये जाने से सपा का दुर्ग किला कहने बाले कन्नौज से सपा कार्यकर्ताओं से लेकर सपा सुप्रीमों द्वारा एतिहासिक जीत होने की अटकले लगायी जा रही थी। परन्तु इस बार लोक सभा में कन्नौज सांसद व गठबंधन प्रत्याशी डिम्पल यादव की हैट्रिक लगवाने व उन्हे एतिहासिक मतों से जीत दिलवाये जाने के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लेकर बसपा सुप्रीमों बहन कुमारी मायावती द्वारा चुनावी जनसभाओं का आयोजन कर गठबंधन प्रत्याशी को इस बार एतिहासिक मतों से बिजय दिलवाये जाने की अपील की गयी थी।

वही इन दोनो नेताओं द्वारा की जाने बाली चुनावी जनसभाओं में उमड़ी भीड़ को देख कर गठबंधन के समर्थक कुछ ऐसे कयास लगा रहे थे कि इस बार कन्नौज सांसद व गठबंधन प्रत्याशी श्रीमती डिम्पल यादव अपनी हैट्रिक तो लगायेगी। साथ ही उनकी एतिहासिक मतों से जीत दर्ज होगी। परन्तु उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम व बसपा सुप्रीमों बहन कुमारी मायावती द्वारा गठबंधन प्रत्याशी को एतिहासिक मतों से जीत दिलवाये जाने के लिए मतदाताओं से की जाने बाली अपील भी काम न आयी। वही लोगों का कहना है कि इस लोक सभा चुनाव में बहन कुमारी मायावती द्वारा कन्नौज चुनावी जनसभा में दलित मतदाताओं से गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में की जाने वाली अपील को कन्नौज के दलित मतदाताओं ने नकार दिया। जिसका मुख्य कारण यह भी हो सकता है कि शायद कन्नौज के दलित मतदाताओं को गठबंधन प्रत्याशी न भाही हो।

वही सूत्रों का यह भी कहना है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव द्वारा बसपा से गठबंधन न कर केवल समाजवादी पार्टी से श्रीमती डिम्पल यादव को प्रत्याशी बना कर कन्नौज लोक सभा चुनाव में अगर उतारा गया होता तो शायद डिम्पल यादव को पराजय का सामना न करना पड़ता । इस बार हुये लोक सभा चुनाव में सपा बसपा गठबंधन कुछ कर भी नही पाया। चुनाव से पूर्व होने बाली गठबंधन की चुनावी रैलियों से यह दिखाई दे रहा था कि इस बार गठबंधन का बोल बाला है और फर्रूखाबाद सहित कन्नौज लोक सभा चुनाव में गठबंधन प्रत्याशियों की जीत होगी। परंतु गठबंधन होने से कन्नौज व फर्रुखाबाद की सीटों पर प्रत्याशियों को पराजय का सामना करना पड़ा।

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