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Dussehra 2019: बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य पर मनाया जाता है दशहरा, इन जगहों के करें दर्शन दुनियाभर में प्रसिद्ध है यहाँ की रौनक

नवरात्रि के समापन के बाद विजयादशमी के दिन दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। त्रेता युग में इस दिन भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण का सर्वनाश कर राक्षस कुल का नाश किया था। बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य पर इस दिन देशभर में रावण दहन और मेलों का आयोजन किया जाता है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी देशभर में 8 अक्टूबर को दशहरा बड़े ही धूम धाम से मनाया जाएगा। आज हम आपको देश की ऐसी पांच जगह के दर्शन करवाएंगे जहां के दशहरा की रौनक दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
मैसूर: 409 वर्ष पुराणी परंपरा आज भी चली आ रही है
दशहरा को कर्नाटक के प्रादेशिक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। कर्नाटक के मैसूर जिले का दशहरा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां का दशहरा देखने के लिए दुनियाभर से लोगों की भीड़ उमड़ती हैं। यहां पर दशहरा का मेला नवरात्रि के दिन से ही प्रारंभ हो जाता है। मैसूर में 1610 में दशहरा का सबसे पहला मेला आयोजित किया गया था। महिषासुर के नाम पर ही मैसूर का नाम भी रखा गया है । दश्हरा के पावन दिन मैसूर महल को एक नई नवेली दुल्हन की तरह से सजाया जाता है। यहां पर गायन वादन के साथ में शोभयात्रा निकालने की परंपरा भी सदियों से चली आ रही है।
कुल्लू: मूर्ति सर पर ले जाने की है परंपरा
हिमाचल प्रदेश में कुल्लू के ढालपुर मैदान में मनाए जाने वाला दशहरा पूरी दुनिया में सबसे अधिक लोकप्रिय माना जाता है। हिमाचल के कुल्लू में होने वाले दशहरा को अंतरराष्ट्रीय त्योहार भी घोषित किया गया है। यहां पर काफी संख्या में लोग आते हैं। यहां दशहरा का त्योहार 17वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है। यहां पर एक परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसमें लोग अलग-अलग भगवानों की मूर्ति को सिर पर रखकर भगवान राम से मिलने के लिए जाते हैं। यह महोत्सव यहां पर 7 दिन तक मनाया जाता है।मदिकेरी: भक्तों का लग जाता है ताता
कर्नाटक के मदिकेरी शहर में दशहरा का पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है और शहर के 4 बड़े अलग अलग मंदिरों में आयोजन किया जाता है। दशहरा पर्व की तैयारी यहां पर 3 माह पहले से ही शुरू कर दी जाती है। दशहरा के शुभ दिन यहां पर एक विशेष उत्सव जिसे मरियम्मा के नाम से जाना जाता है की शुरुआत होती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार इस शहर के लोगों को एक भयंकर बीमारी ने घेर रखा था, जिसे दूर करने के लिए मदिकेरी के राजा ने देवी मरियम्मा को प्रसन्न करने के लिए इस उत्सव की शुरुआत करवाई थी। तब से यह उत्सव हर वर्ष यहां पर बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है।
कोटा: 25 दिनों तक मनाया जाता है उत्सव
दशहरा का आयोजन राजस्थान के कोटा शहर में लगातार 25 दिनों तक किया जाता है। महाराव भीमसिंह द्वितीय ने इस मेले की शुरुआत 125 वर्ष पूर्व में की थी और तबसे यह परंपरा आज तक निभाई जा रही है। इस दिन यहां पर रावण, मेघनाद और कुंभकरण का पुतला दहन किया जाता है। साथ ही यहां पर भजन कीर्तन के साथ ही कई प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है, इसलिए यह मेला देश के प्रसिद्ध मेलों में से एक है।
बस्तर: 600 वर्ष पुरानी परंपरा
मान्यता अनुसार छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के दण्डकरण्य में भगवान राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के दौरान आएं थे। इसी स्थान के जगदलपुर में मां दंतेश्वरी मंदिर भी है, जहां पर हर वर्ष दशहरा पर वन क्षेत्र के हजारों आदिवासी आते हैं। बस्तर के लोग 600 साल से यह त्योहार मनाते आ रहे हैं। इस जगह पर रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। यहां के आदिवासियों और राजाओं के बीच अच्छा मेल जोल था। राजा पुरुषोत्तम ने यहां पर रथ चलाने की प्रथा की शुरआत की थी। इसी कारण से यहां पर रावण दहन नहीं बल्कि दशहरा के दिन रथ चलाने की परंपरा चली आ रही है।

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