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राज्यसभा में विपक्ष ने फिर उठाई कृषि कानून वापस लेने की मांग

अशाेक यादव, लखनऊ। राज्यसभा में शुक्रवार को विपक्ष ने एक बार फिर नए कृषि कानूनों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन के मुद्दे पर सरकार को घेरा और इन कानूनों को वापस लेने की मांग की। इसके साथ ही विभिन्न विपक्षी दलों के सदस्यों ने 26 जनवरी को लाल किले में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किए जाने की घटना की जांच कराए जाने पर भी बल दिया।

शिवसेना नेता संजय राउत ने आरोप लगाया कि किसानों के आंदोलन को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है और किसानों के लिए खालिस्तानी, आतंकवादी जैसे शब्दों का उपयोग किया जा रहा है। राष्ट्रपति अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर सदन में आगे हो रही चर्चा में भाग लेते हुए राउत ने आरोप लगाया कि सरकार अपने आलोचकों को बदनाम करने का प्रयास करती है और किसान आंदोलन के साथ भी ऐसा ही किया जा रहा है।

राउत ने 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल किले पर हुयी घटना और राष्ट्रीय ध्वज के अपमान का जिक्र करते कहा ‘‘ वह दुखद घटना है। लेकिन इस मामले में असली आरोपियों को नहीं पकड़ा गया है और निर्दोष किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया है।’’

बसपा के सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि सरकार किसानों के आंदोलन को रोकने के लिए खाई खोद रही है और पानी, खाना, शौचालय जैसी सुविधाएं बंद कर रही है जो मानवाधिकार हनन है। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों पर नए कृषि कानून नहीं थोप सकती।

मिश्र ने कहा कि सरकार नए कानूनों को डेढ़ साल के लिए स्थगित करने की बात कर रही है। ऐसे में उसे अपनी जिद छोड़कर इन कानूनों को वापस ले लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि नए कानूनों में कई खामियां हैं जिनसे किसानों को भय है कि उनकी जमीन चली जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ठेकेदारी के नाम पर जमींदारी व्यवस्था को वापस लाना चाहती है।

बसपा नेता ने 26 जनवरी को लाल किले की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि इस मामले में दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का जिक्र करते हुए कहा कि अगर सरकार की नीयत साफ है तो उसे कानून में शामिल किया जाना चाहिए।

चर्चा में हिस्सा लेते हुए भाजपा के डॉ. विनय पी सहस्रबुद्धे ने कहा कि किसानों के मुद्दे पर सरकार को अहंकार छोड़ने की बात कही जाती है लेकिन सरकार ने लगातार बातचीत की पेशकश की और तीनों नए कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक निलंबित करने का प्रस्ताव रखा। ‘‘हम अभी भी बात करने के लिए तैयार हैं। यह लचीलापन नहीं तो और क्या है।’’

उन्होंने कहा ‘‘अभी कुछ ही राज्यों के किसान धरने पर बैठे हैं। अगर मान लीजिये कि अलग अलग जगहों पर बड़ी संख्या में लोग धरने पर इसी तरह बैठ जाएं तो क्या इसका मतलब यह है कि हम गृह युद्ध चाहते हैं। सदन को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और ऐसी टिप्पणियां करने से बचना चाहिए। जिन लोगों ने पहले ऐसे कानूनों की मांग की थी, आज वे ही इनका विरोध कर रहे हैं।’’

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