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मध्यप्रदेश में कांग्रेस पर भारी पड़ी शिवराज-सिंधिया की जोड़ी, कांग्रेस में हो सकता है बदलाव

अशाेक यादव, लखनऊ। मध्य प्रदेश के विधानसभा उपचुनावों ने भाजपा की शिवराज सिंह सरकार को बरकरार रखने के साथ और और ज्यादा मजबूती दे दी है। इन नतीजों ने एक बार फिर कांग्रेस को करारा झटका दिया है और भाजपा अपनी रणनीति में सफल साबित हुई है।

कांग्रेस से अपने समर्थकों के साथ बगावत कर भाजपा का दामन थामने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का दांव भी सफल रहा है और वे उपचुनावों में अपने अधिकांश समर्थकों को जिताने में सफल रहे हैं। इस जीत से भाजपा में शिवराज व सिंधिया दोनों का कद बढ़ा है। 

दो साल पहले मध्य प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को बहुमत देकर सत्ता सौंपी थी, लेकिन डेढ़ साल में ही वह अपने अंतर्विरोधों के कारण सत्ता से बाहर हो गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी कांग्रेस को भारी पड़ी।

सिंधिया के साथ इस साल मार्च में कांग्रेस के 19 विधायकों ने पार्टी व विधायक पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिरा दिया था और भाजपा को सत्ता में वापसी का मौका दिया था।

सदन की संख्या घटने से 107 विधायकों के साथ भाजपा ने फिर से सरकार बना ली थी। बाद में कांग्रेस के कुछ और विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया। कुछ सीटें विधायकों के निधन से रिक्त हुई थी।

ऐसी स्थिति में 28 सीटों के उपचुनाव पर शिवराज सरकार का भविष्य टिका था। 230 सदस्यीय पूर्ण सदन में भाजपा को मात्र नौ सीटें बहुमत के लिए चाहिए थी, लेकिन भाजपा 20 सीटों को जीतने के करीब है।

एक सीट अभी रिक्त है। ऐसे में 229 सदस्यीय सदन में भाजपा के पास116 के बहुमत के आंकड़े से ग्यारह सीटें ज्यादा हासिल होगी। इस सफलता से कांग्रेस को करारा झटका लगा है। उसने इस बार पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में उप चुनाव लड़े, लेकिन असफल रही।

हालांकि चुनाव प्रचार में कमलनाथ की भाषा भी मुद्दा बनी और उसका भी विपरीत असर कांग्रेस पर हुआ। कांग्रेस को ग्वालियर चंबल संभाग के साथ मालवा क्षेत्र में भी झटका लगा है। 

इन नतीजों से मध्य प्रदेश की सरकार में स्थिरता आएगी। हालांकि कांग्रेस को भविष्य के लिए अब नया नेतृत्व खड़ा करना होगा। दिग्विजय सिंह के बाद कमलनाथ को पार्टी ने आगे किया था, लेकिन अब वह भी प्रदेश की जनता पर पकड़ बनाने में सफल नहीं हुए हैं।

अगले विधानसभा चुनाव अभी तीन साल दूर हैं, लेकिन नया नेतृत्व खड़ा करने के लिए उसे अभी से पहल करनी पड़ सकती है। विधानसभा में विपक्ष के नेता अभी कमलनाथ हैं, लेकिन अब उसमें भी बदलाव होने की संभावना बनेगी।

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