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हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक बना गांव कादरबाड़ी

  • कांच की शीशी का निर्माण करते है मुस्लिम समुदाय के लोग
  • गंगा जल भरकर शिव रात्रि को जलाभिषेक करते है हिन्दू लोग
  • गरीब लोगों की और नहीं है शासन प्रशासन का कोई ध्यान

कासगंज। प्रदेश में एक ऐसी भी जगह है जहां हिन्दू मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग मिलकर व्यापार करते है, और पवित्र गंगा मैया के गंगाजल भरने में श्रद्धा रखते है।प्राचीन काल से ही मुस्लिम समुदाय के लोग कांच की शीशी बनाते चले आ रहे है और हिन्दू समाज के लोग उनसे खरीद कर श्रद्धालुओं को गंगा मैया के जल को भरकर ले जाने के लिए बेचते है।बताया जाता है कि पूरे देष में कांच की शीशी मात्र सोरों में मिलती है जिसमें गंगा जल भर कर कावड़ियें लेकर जाते है। पूरे देश में कांच की शीशी  बनाने का कारोबार मात्र जनपद में सोरों तीर्थ नगरी के गांव कादरबाड़ी में होता है।जिसे गंगा जली के नाम से जाता है।जहंा मुस्लिम समुदाय के लोग इस कारोबार को 150-200 वर्ष पूर्व से ही पीड़ी दर पीड़ी करते चले आ रहे है, और हिन्दू समुदाय के लोग उनसे खरीदकर बेचते है जिससे शिव भक्त काबड़िये गंगा मैया का जल भर कर अपने-अपने धाम ले जाते है। एक तरफ राजनैतिक पार्टिया भारत की एकता और अखण्डता को हिन्दू मुस्लिम में बांटते दिखाई देते है।वहीं सोरों के कादरबाड़ी गांव में हिन्दू मुस्लिम दोनों ही लोग मिलकर व्यापार करके एकता की मिषाल कायम करते दिखाई देते है।कांच की शीशी गंगाजली निर्माण करने वाले कारीगरों में दूल्हे, राशिद, आसिब, सत्तार, अरमान, हरफान, परवेज, शेरवानी, अफतर, गुलफान, गुड्डू, कासिम, शमशेर, असलम, भूरे, इसान, फारुख, छुट्टन, रफ्फन, सलीम, अबजल, मुन्ने खंा, गाजुद्दी, हनीफ, मुस्ताक, असफाक, फरमान, जुनैल जसे और भी कारीगर निर्माण करते है।

इस बारे में कारीगर गुड्डू से बात की गई तो उन्होने बताया कि इस कांच की शीषी के निर्माण से हिन्दू मुस्लिम एकता बनी हुई है और शिव रात्रि को लेकर हमारे हिन्दू भाई इसी कांच की शीशी में गंगा जल भरकर ले जाते है और शिव भगवान पर जलाभिषेक करते है।

कारीगर इरफान भाई से बात की गई तो उन्होने बताया कि हम सभी लोग गरीब तबके के लोग है हम शीशी निर्माण करके की अपने परिवार का गुजारा करते है। यह कार्य हमारे पूर्वजो ने भी किया था लगभग 5-6 पीड़ियों से हमारे गांव में यह कार्य होता चला आ रहा है। इस ओर शासन प्रशासन का कोई भी ध्यान नहीं है। हम लोग सरकार से मांग भी करते है कि हमारे जैसे लोगों के लिए यदि सरकार थोड़ी मदद करे तो हम गरीब लोगों की और भी इनकम होने लगेगी।

कारीगर शेरवानी ने बताया कि यह शीशी बनाने का कार्य केवल यही पर होता है और इसी जगह से कांच की शीशी गंगा जल भरने के लिए जाती है। जैसे रामघाट, सिंगीराम पुर, राजघाट, सोरों में भी जितने गंगा घाट है कछला, सोरों, लहरा तथा कभी-कभी हरिद्वार में भी शीशी गंगा जल भरे के लिए जाती है।

कारीगर राशिद भाई ने बताया कि उनके यहां शीशी बनाने का कार्य लगभग 200 वर्ष से होता चला आ रहा है। षिव रात्रि आने के लगभग छः माह पूर्व से ही शीशी निर्माण कार्य करना शुरू करते है, ज्यादा से ज्यादा माल का स्टाॅक करते है।यह शीषी हमे लगभग 1.5 रुपये में बनकर तैयार होती है, और 2 रुपये में बिक्री करते है और एक व्यक्ति पूरे दिन में 150 शीशी तैयार करता है।जिससे हमे कुछ ही रुपये मिल पाते है।बाजार में इस शीशी की कीमत लगभग 8-10 रुपये तक हो जाती है।

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