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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, CBI जांच के लिए राज्यों की सहमति लेना जरूरी

अशाेक यादव, लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार की सहमति उसके अधिकार क्षेत्र में सीबीआई जांच के लिए अनिवार्य है और इसके बिना एजेंसी जांच नहीं कर सकती। न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की एक पीठ ने कहा कि प्रावधान संविधान के संघीय चरित्र के अनुरूप हैं, जिसे इसकी बुनियादी संरचनाओं में से एक माना गया है।

शीर्ष अदालत ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपी) अधिनियम की धारा पांच और छह का हवाला दिया, जो अन्य क्षेत्रों के लिए विशेष पुलिस प्रतिष्ठान की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र के विस्तार और राज्य सरकार की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र के लिए सहमति प्रदान करते हैं।

पीठ ने कहा, ‘इसे, इस तरह देखा जा सकता है, जैसे धारा पांच केन्द्र सरकार को राज्य के लिए केन्द्र शासित प्रदेशों से परे डीएसपीई के सदस्यों की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने में सक्षम बनाती है, वैसे ही जब तक कोई राज्य डीएसपीई अधिनियम की धारा छह के तहत संबंधित क्षेत्र में इस तरह के विस्तार के लिए अपनी सहमति नहीं देता तब तक यह स्वीकार्य नहीं है।’

शीर्ष अदालत ने कुछ आरोपियों, निजी और लोकसेवकों की ओर से दायर उन अपील पर यह बात कही, जिसमें उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई जांच की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि जांच के लिए राज्य सरकार से पूर्व सहमति नहीं ली गई।

सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम द्वारा शासित की जाती है। यह अधिनियम उसे किसी भी राज्य में जांच के लिए एक राज्य सरकार की सहमति को अनिवार्य करता है।

इसका सीधा मतलब है कि सीबीआई बिना केस स्पेसिफिक सहमति मिले इन राज्यों में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई नया मामला नहीं दर्ज कर पाएगी। सामान्य सहमति को वापस लेने का मतलब है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना इन राज्यों में प्रवेश करते ही किसी भी सीबीआई अफसर के पुलिस अधिकारी के रूप में मिले सभी अधिकार खत्म हो जाते हैं।

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