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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम के लिए नागपुर पहुंचे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

लखनऊ /नई दिल्लीः पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नागपुर पहुंच चुके है. शाम करीब पांच बजे पूर्व राष्ट्रपति नागपुर एयरपोर्ट पर उतरे. एयरपोर्ट पर संघ के कार्यकर्ताओं ने पूर्व राष्ट्रपति का स्वागत किया. गुरुवार को प्रणब मुखर्जी आरएसएस के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे. यहां प्रणब मुखर्जी संघ के शिक्षा वर्ग को संबोधित करेंगे. ऐसा बताया जा रहा है कि इस दौरान प्रणब दा करीब 800 कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे. बता दें कि इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आमंत्रण को प्रणब मुखर्जी द्वारा स्‍वीकार किए जाने के बाद सियासी गलियारे में भूचाल सा आ गया ह

कांग्रेस के कई नेताओं ने तो अपने इस पुराने दिग्‍गज नेता से फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह तक कर डाला. ‘सेक्‍युलर’ विचारधारा के कुछ लोगों ने यह तक कहा कि प्रणब मुखर्जी की इस यात्रा से आरएसएस के विचारों की एक तरह से ‘स्‍वीकार्यता’ बढ़ेगी.

कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा है, ‘प्रणब दा ने हमेशा आरएसएस के खिलाफ राजनीति की है. उनके जाने से आरएसएस की विश्वसनीयता बढ़ेगी. संघ प्रचारक  इंद्रेश कुमार ने कहा कि, ‘प्रणब मुखर्जी के आने से नफरतें दूर हो जाएंगी. उन्होंने कहा कि प्रणब मुखर्जी से कांग्रेस को शालीनता सीखनी चाहिए, वह भारतीय के नाते संघ के कार्यक्रम में आ रहे है. ‘  उधर कांग्रेस नेतासुशील कुमार सिंदे  ने कहा,  ‘मुझे लगता है कि प्रणब मुखर्जी संघ के कार्यक्रम में धर्मनिरपेक्षता का पक्ष ही रखेंगे.’ एनसीपी नेता माजिद मेमन ने कहा, ‘हो सकता है कि प्रणब दा संघ को कुछ समझाने की कोशिश करें कि आपके विचार देश के लिए सही नहीं है.’

हालांकि इस तस्‍वीर का एक दूसरा पहलू भी है. आरएसएस के किसी नुमांइदे, स्‍वयंसेवक या कार्यकर्ता ने अभी तक इसका खुलेतौर पर कोई विरोध नहीं किया है. वहां से भी तो यह आवाज उठ सकती थी कि दशकों तक कांग्रेस की सियासत करने वाले प्रणब मुखर्जी को संघ अपने किसी प्रोग्राम का चीफ गेस्‍ट क्‍यों बना रहा है? इसके उलट संघ के कई दिग्‍गजों ने इसका समर्थन करते हुए सार्वजनिक रूप से आलेख लिखे हैं. इसी कड़ी में संघ के सह-कार्यवाह (संयुक्‍त महासचिव) मनमोहन वैद्य ने में एक आर्टिकल लिखकर इसका जवाब देने का प्रयत्‍न किया है. उन्‍होंने लिखा कि भारतीय और अ-भारतीय(विदेशी) चिंतन के परिप्रेक्ष्‍य में विचारों के इस अंतर को समझने की जरूरत है.

उन्‍होंने अपने आर्टिकल में लिखा, ”प्रणब मुखर्जी दशकों तक सार्वजनिक जीवन में रहे हैं. इस कारण ही उनको आमंत्रित किया गया है ताकि सामाजिक और राष्‍ट्रीय महत्‍व के विषयों पर उनके विचारों को सुनने का मौका स्‍वयंसेवकों को मिल सके. उनको भी संघ सीधे तौर पर अनुभव मिलेगा. भारतीय चिंतन की धारा में इस तरह के विचारों और दृष्टिकोणों के आदान-प्रदान का समावेश मिलता है. लेकिन फिर भी विचारों के परस्‍पर विनिमय का अलोकतांत्रिक विरोध हो रहा है?”

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