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खुर्जा-भाऊपुर फ्रेट कॉरिडोर, आत्मनिर्भर भारत की गूंज : नरेंद्र मोदी

राहुल यादव, लखनऊ/ प्रयागराज।Dedicated Freight Corridor, इनको अगर सामान्य बोलचाल की भाषा में कहें तो मालगाड़ियों के लिए बने विशेष ट्रैक हैं, विशेष व्यवस्थाएं है। इनकी ज़रूरत आखिर देश को क्यों पड़ी? हमारे खेत हों, उद्योग हों या फिर बाज़ार, ये सब माल ढुलाई पर निर्भर होते हैं। कहीं कोई फसल उगती है, उसको देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाना पड़ता है। एक्सपोर्ट के लिए बंदरगाहों तक पहुंचाना पड़ता है। इसी तरह उद्योगों के लिए कहीं से कच्चा माल समंदर के रास्ते आता है। उद्योग से बना माल बाज़ार तक पहुंचाना होता है या फिर एक्सपोर्ट के लिए उसको फिर बंदरगाहों तक पहुंचाना पड़ता है। इस काम में सबसे बड़ा माध्यम हमेशा से रेलवे रही है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, अर्थव्यवस्था बढ़ी, तो माल ढुलाई के इस नेटवर्क पर दबाव भी बढ़ता गया। समस्या ये थी, कि हमारे यहां यात्रियों की ट्रेनें और मालगाड़ियां दोनों एक ही पटरी पर चलती हैं। मालगाड़ी की गति धीमी होती है। ऐसे में मालगाड़ियों को रास्ता देने के लिए यात्री ट्रेनों को स्टेशनों पर रोका जाता है। इससे पैसेंजर ट्रेन भी समय पर नहीं पहुंच पाती है और मालगाड़ी भी लेट हो जाती है। मालगाड़ी की गति जब धीमी होगी, जगह-जगह रोक-टोक होगी तो जाहिर है transportation की लागत ज्यादा होगी। इसका सीधा असर हमारे खेती, खनिज उत्पाद और औद्योगिक उत्पादों की कीमत पर पड़ता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने मंगलवार को खुर्जा-भाऊपुर Freight Corridor का उद्घाटन करते हुए कहा कि आज का दिन भारतीय रेल के गौरवशाली अतीत को 21वीं सदी की नई पहचान देने वाला है, भारत और भारतीय रेल का सामर्थ्य बढ़ाने वाला है। आज आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा और आधुनिक रेल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट धरातल पर उतरते हम देख रहे हैं।आज जब खुर्जा-भाऊपुर Freight Corridor रूट पर जब पहली मालगाड़ी दौड़ी, तो उसमें नए भारत की, आत्मनिर्भर भारत की गूंज और गर्जना स्पष्ट सुनाई दी। प्रयागराज में Operation Control Centre भी नए भारत के नए सामर्थ्य का प्रतीक है। ये दुनिया के बेहतरीन और आधुनिक कंट्रोल सेंटर में से एक है। और ये सुनकर किसी को भी गर्व होगा कि इसमें मैनेजमेंट और डेटा से जुड़ी जो technology है, वो भारत में ही तैयार की गई है, भारतीयों ने ही उसको तैयार किया है।इंफ्रास्ट्रक्चर किसी भी राष्ट्र के सामर्थ्य का सबसे बड़ा स्रोत होता है। Infrastructure में भी connectivity राष्ट्र की नसें होती हैं, नाड़ियां होती हैं। जितनी बेहतर ये नसें होती हैं, उतना ही स्वस्थ और सामर्थ्यवान कोई राष्ट्र होता है। आज जब भारत दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकत बनने के रास्ते की तरफ तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, तब बेहतरीन connectivity देश की प्रथामिकता है। इसी सोच के साथ बीते 6 सालों से भारत में आधुनिक connectivity के हर पहलू पर focus के साथ काम किया जा रहा है। हाइवे हो, रेलवे हो, एयरवे हो, वॉटरवे हो या फिर आईवे- आर्थिक रफ्तार के लिए ज़रूरी इन पांचों पहियों को ताकत दी जा रही है, गति दी जा रही है। Eastern Dedicated Freight Corridor के एक बड़े सेक्शन का लोकार्पण भी इसी दिशा में बहुत बड़ा कदम है। इसी स्थिति को बदलने के लिए फ्रेट कॉरीडोर की योजना बनाई गई। शुरू में 2 Dedicated Freight Corridor तैयार करने की योजना है। पूर्वी Dedicated Freight Corridor पंजाब के औद्योगिक शहर लुधियाना को पश्चिम बंगाल के दानकुनी से जोड़ रहा है। सैकड़ों किलोमीटर लंबे इस रूट में कोयला खानें हैं, थर्मल पावर प्लांट हैं, औद्योगिक शहर हैं। इनके लिए फीडर मार्ग भी बनाए जा रहे हैं। वहीं पश्चिमी Dedicated Freight Corridor महाराष्ट्र में JNPT को उत्‍तर प्रदेश के दादरी से जोड़ता है। लगभग 1500 किलोमीटर के इस कॉरिडोर में गुजरात के मुंद्रा, कांडला, पिपावाव, दहेज और हजीरा के बड़े बंदरगाहों के लिए फीडर मार्ग होंगे। इन दोनों Freight Corridor के इर्द गिर्द दिल्ली-मुंबई Industrial Corridor और अमृतसर-कोलकाता Industrial Corridor भी विकसित किए जा रहे हैं। इसी तरह उत्तर को दक्षिण से और पूर्व को पश्चिम से जोड़ने वाले ऐसे विशेष रेल कॉरिडोर से जुड़ी ज़रूरी प्रक्रियाएं पूरी की जा रही हैं।मालगाड़ियों के लिए बनी इस प्रकार की विशेष सुविधाओं से एक तो भारत में यात्री ट्रेन की लेट-लतीफी की समस्या कम होगी। दूसरा ये कि इससे मालगाड़ी की स्पीड भी 3 गुणा से ज्यादा हो जाएगी और मालगाड़ियां पहले से दोगुना तक सामान की ढुलाई कर पाएंगी। क्योंकि इन ट्रैक पर डबल डैकर यानि डिब्बे के ऊपर डिब्बा, ऐसी मालगाड़ियां चलाई जा सकेंगी। मालगाड़ियां जब समय पर पहुंचेंगी तो हमारा Logistics Network सस्ता होगा। हमारा सामान पहुंचाने का जो खर्च है वो कम होने के कारण हमारा सामान सस्ता होगा, जिसका हमारे निर्यात को लाभ होगा। देश में रोज़गार के, स्वरोज़गार के अनेक नए अवसर भी तैयार होंगे।ये Freight Corridor आत्मनिर्भर भारत के बहुत बड़े माध्यम बनेंगे। उद्योग हो, व्यापार-कारोबार हो,किसान हो या फिर consumer, हर किसी को इनका लाभ मिलने वाला है। लुधियाना और वाराणसी का कपड़ा निर्माता हो, या फिरोजपुर का किसान, अलीगढ़ का ताला निर्माता हो, या राजस्थान का संगमरमर कारोबारी, मलिहाबाद का आम उत्पादक हो, या कानपुर और आगरा का लैदर उद्योग, भदोही का कालीन उद्योग हो, या फिर फरीदाबाद की कार इंडस्ट्री, हर किसी के लिए ये अवसर ही अवसर लेकर आया है। विशेषतौर पर औद्योगिक रूप से पीछे रह गए पूर्वी भारत को ये Freight Corridor नई ऊर्जा देने वाला है। इसका करीब-करीब 60 प्रतिशत हिस्सा यूपी में है, इसलिए यूपी के हर छोटे-बड़े उद्योग को इससे लाभ होगा। देश और विदेश के उद्योगों में जिस प्रकार यूपी के प्रति आकर्षण बीते सालों में पैदा हुआ है, वो और अधिक बढ़ेगा।कल ही देश में सौवीं किसान रेल की शुरुआत की गई है। किसान रेल से वैसे भी खेती से जुड़ी उपज को देशभर के बड़े बाज़ारों में सुरक्षित और कम कीमत पर पहुंचाना संभव हुआ है। अब नए फ्रेट कॉरिडोर में किसान रेल और भी तेज़ी से अपने गंतव्य पर पहुंचेगी। उत्तर प्रदेश के रेलवे स्टेशनों के पास भंडारण और cold storage की capacity भी बढ़ाई जा रही है। यूपी के 45 माल गोदामों को आधुनिक सुविधाओं से युक्त किया गया है। इसके अलावा राज्य में 8 नए Goods Shed भी बनाए गए हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में वाराणसी और गाज़ीपुर में दो बड़े Perishable Cargo Center पहले ही किसानों को सेवा दे रहे हैं। चुनावी मोड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजब इस प्रकार के infrastructure से देश को इतना फायदा हो रहा है तो, सवाल ये भी उठता है कि आखिर इसमें इतनी देरी क्यों हुई? ये प्रोजेक्ट 2014 से पहले जो सरकार थी, उसकी कार्य-संस्कृति का जीता-जागता प्रमाण है। साल 2006 में इस प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दी गई थी। उसके बाद ये सिर्फ कागज़ों और फाइलों में ही बनता रहा। केंद्र को राज्यों के साथ जिस गंभीरता से बातचीत करनी चाहिए थी, जिस Urgency से संवाद होना चाहिए था, वो किया ही नहीं गया। नतीजा ये हुआ कि काम अटक गया, लटक गया, भटक गया। स्थिति ये थी कि साल 2014 तक एक किलोमीटर track भी नहीं बिछ पाया। जो इसके लिए पैसा भी स्वीकृत हुआ था, वो सही तरीके से खर्च नहीं हो पाया।2014 में सरकार बनने के बाद इस प्रोजेक्ट के लिए फिर से फाइलों को खंगाला गया। अधिकारियों को नए सिरे से आगे बढ़ने के लिए कहा गया, तो बजट करीब 11 गुणा यानि 45 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक बढ़ गया। प्रगति की बैठकों में मैंने खुद इसकी monitoring की, इससे जुड़े stakeholders से संवाद किया, समीक्षा की। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से भी संपर्क बढ़ाया, उन्हें प्रेरित-प्रोत्साहित किया। हम नई technology भी लाए। इसी का परिणाम है कि करीब 1100 किलोमीटर का काम अगले कुछ महीनों में पूरा हो जाएगा। सोचिए, 8 साल में एक भी किलोमीटर नहीं, और 6-7 साल में 1100 किलोमीटर।इंफ्रास्ट्रक्चर पर राजनीतिक उदासीनता का नुकसान सिर्फ फ्रेट कॉरिडोर को ही नहीं उठाना पड़ा। पूरा रेलवे से जुड़ा सिस्टम ही इसका बहुत बड़ा भुक्तभोगी रहा है। पहले फोकस ट्रेनों की संख्या बढ़ाने पर रहता था, ताकि चुनाव में उसका लाभ मिल सके। लेकिन जिस पटरियों पर ट्रेन को चलना था, उन पर निवेश नहीं किया जाता था। रेल नेटवर्क के आधुनिकीकरण को लेकर वो गंभीरता ही नहीं थी। हमारी ट्रेनों की स्पीड बहुत कम थी और पूरा नेटवर्क जानलेवा मानवरहित फाटकों से भरा हुआ था।हमने 2014 के बाद इस कार्यशैली को बदला, इस सोच को बदला। अलग से रेल बजट की व्यवस्था को खत्म करते हुए, हमने ऐलान करके भूल जाने वाली राजनीति को बदला। हमने rail track पर निवेश किया। रेलवे नेटवर्क को हजारों मानवरहित फाटकों से मुक्त किया। railway track को तेज़ गति से चलने वाली ट्रेनों के लिए तैयार किया। रेल नेटवर्क के चौड़ीकरण और बिजलीकरण दोनों पर focus किया। आज वंदे भारत एक्सप्रेस जैसी, सेमी हाई-स्पीड ट्रेनें भी चल रही हैं और भारतीय रेल पहले से कहीं अधिक सुरक्षित भी हुई है।बीते सालों में रेलवे में हर स्तर पर रिफॉर्म्स किए गए हैं। रेलवे में स्वच्छता हो, बेहतर खाना-पीना हो या फिर दूसरी सुविधाएं, फर्क आज साफ नज़र आता है। इसी तरह, रेलवे से जुड़ी manufacturing में भारत ने आत्मनिर्भरता की बहुत बड़ी छलांग लगाई है। भारत आधुनिक ट्रेनों का निर्माण अब अपने लिए भी कर रहा है और निर्यात भी कर रहा है। यूपी की ही बात करें तो वाराणसी स्थित लोकोमोटिव वर्क्‍स, भारत में इलेक्ट्रिक इंजन बनाने वाला बड़ा सेंटर बन रहा है। रायबरेली की मॉडर्न कोच फैक्ट्री को भी बीते 6 सालों में डेंटिंग-पैंटिंग की भूमिका से हम बाहर निकालकर लाए हैं। यहां अब तक 5 हज़ार से ज्यादा नए रेल कोच बन चुके हैं। यहां बनने वाले रेल कोच अब विदेशों को भी निर्यात किए जा रहे हैं।हमारे अतीत के अनुभव बताते हैं कि देश के infrastructure के विकास को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। देश का infrastructure, किसी दल की विचारधारा का नहीं, देश के विकास का मार्ग होता है। ये 5 साल की पॉलिटिक्स का नहीं बल्कि आने वाली अनेकों पीढ़ियों को लाभ देने वाला मिशन है। राजनीतिक दलों को अगर स्पर्धा करनी ही है, तो infrastructure की क्वालिटी में स्पर्धा हो, स्पीड और स्केल को लेकर स्पर्धा हो। राष्ट्रीय संपत्ति को नुक़सान न पहुंचने की अपील भी की नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक और मानसिकता का भी ज़िक्र करना ज़रूरी समझता हूं, जो अक्सर हम प्रदर्शनों और आंदोलनों के दौरान देखते हैं। ये मानसिकता देश के infrastructure को, देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की है। हमें याद रखना चाहिए, कि ये infrastructure, ये संपत्ति किसी नेता की, किसी दल की, किसी सरकार की नहीं है। ये देश की संपत्ति है। इसमें हर गरीब का, हर करदाता का, मध्यम वर्ग का, समाज के हर वर्ग का पसीना लगा हुआ है। इसको लगने वाली हर चोट, देश के गरीब, देश के सामान्य जन को चोट है। इसलिए अपना लोकतांत्रिक अधिकार जताते हुए हमें अपने राष्ट्रीय दायित्व को कभी नहीं भूलना चाहिए।जिस रेलवे को अक्सर निशाना बनाया जाता है, वो किस सेवा-भाव से मुश्किल परिस्थितियों में भी देश के काम आती है, ये कोरोना काल में दिखा है। मुश्किल में फंसे श्रमिकों को अपने गांव तक पहुंचाना हो, दवा और राशन को देश के कोने-कोने तक ले जाना हो, या फिर चलते-फिरते कोरोना अस्पताल जैसी सुविधा देना हो, रेलवे के पूरे नेटवर्क का, सभी कर्मचारियों का ये सेवाभाव देश हमेशा याद रखेगा। यही नहीं, इस मुश्किल समय में रेलवे ने बाहर से गांव लौटे श्रमिक साथियों के लिए 1 लाख से ज्यादा दिनों का रोज़गार भी सृजित किया है। मुझे विश्वास है कि सेवा, सद्भाव और राष्ट्र की समृद्धि के लिए एकनिष्ठ प्रयासों का ये मिशन अनवरत चलता रहेगा।उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल, सांसद रीता बहुगुणा जोशी सांसद भोला सिंह, सांसद सत्यदेव पचौरी, सांसद केसरी देवी पटेल, सांसद कुवर रेवती रमण सिंह, सांसद देवेंद्र सिंह, सांसद महेश शर्मा तथा यूपी सरकार के मंत्रिगण कार्यक्रम से जुड़े रहे।

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