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पूर्व सचिव शर्मा के अनुसार, आईएएस अफ़सरों को ‘रथ प्रभारी’ बनाना न केवल अनैतिक, बल्कि ग़ैर-क़ानूनी भी है

सूर्योदय भारत समाचार सेवा, नई दिल्ली : भारत सरकार के पूर्व सचिव ईएएस शर्मा ने वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को नरेंद्र मोदी सरकार की तथाकथित ‘उपलब्धियों’ के बारे में जानकारी का प्रचार करने के अभियान में बतौर रथ प्रभारी तैनात करने की केंद्र सरकार की योजना पर निर्वाचन आयोग को फिर लिखा है. शर्मा ने पहली बार 21 अक्टूबर को निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर कहा था कि आयोग को हस्तक्षेप करना चाहिए और इस सरकारी आदेश को रोकना चाहिए. उन्होंने तर्क दिया था कि ये निर्देश पांच चुनावी राज्यों में लागू आदर्श आचार संहिता के खिलाफ हैं.

सोमवार (23 अक्टूबर) को भेजे गए अपने दूसरे पत्र में उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आयोग ने उनकी शिकायत पर संज्ञान लिया होगा.

ऐसे समय में जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और आम चुनाव भी कुछ ही महीनों बाद होने हैं, ऐसे सरकारी निर्देशों को निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के लिए खतरा माना जा रहा है. इन मसलों को लेकर ‘द वायर’ से ईएएस शर्मा से हुई बातचीत का संक्षिप्त अंश.

मोदी सरकार द्वारा सरकारी अधिकारियों को ‘रथ प्रभारी’ के बतौर तैनात करने को लेकर मूल आपत्ति क्या है ?

मेरी आपत्ति इस बात पर है कि सरकार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अपने अधिकारियों से पिछले नौ सालों की उपलब्धियां दिखाने के लिए कह रही है. ये निर्देश आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद आए, इसलिए यह संहिता का उल्लंघन है.

आपने पहले कहा था कि यह अनैतिक है लेकिन क्या यह अवैध भी है? क्या अधिकारी सरकारी आदेश को न कह सकते हैं? क्या चुनाव आयोग को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए ?

यह गैर-क़ानूनी है क्योंकि यह आदर्श संहिता का उल्लंघन है. चुनाव के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करने वाली गतिविधियों में लोक सेवकों को तैनात करना चुनावी कानून का उल्लंघन है. साथ ही, सिविल सेवा आचरण नियम नौकरशाहों को ऐसा कुछ भी करने से रोकते हैं जिससे मतदाताओं पर गलत प्रभाव पड़ने की संभावना हो. कोई भी ईमानदार सिविल सवाल इस बात को उठा सकता है और ऐसा करने से इंकार कर सकता है.

चार केंद्रीय मंत्री विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. यह अजीब है कि आचार संहिता लागू होने पर उनके अधिकारी उन निर्वाचन क्षेत्रों में, जहां से वो चुनाव लड़ रहे हैं, उनकी ही सरकार की उपलब्धियों का प्रदर्शन कर रहे हैं.  मेरी समझ में तो जब आचार संहिता लागू है, तो ऐसे उम्मीदवारों को उनके अधिकारियों और सरकारी संसाधनों के इस्तेमाल के लिए अयोग्य ठहराया जाना चाहिए.

चुनाव आयोग को आम लोगों और राजनीतिक दलों द्वारा इस ओर इशारा किए जाने का इंतजार करने के बजाय तुरंत इस पर कार्रवाई करनी चाहिए थी.

क्या आपको अतीत में हुई ऐसी कोई घटना याद है ? 

नहीं, मुझे ऐसा कुछ याद नहीं.

अगर निर्वाचन आयोग कोई कार्रवाई न करे, तो नागरिकों के लिए क्या विकल्प है ?

अगर आयोग कुछ नहीं करता है तो बस अदालतें ही रास्ता हैं.

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