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इंडिया गठबंधन और अखिलेश यादव के लिए घोसी जीत के मायने

मणेन्द्र मिश्रा ‘मशाल’ : घोसी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की जीत से यूपी के सियासी समीकरण तेजी से बदलने की संभावना है! वैसे तो इस उपचुनाव का प्रदेश सरकार के अंकगणित पर सीधा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा लेकिन उपचुनाव में जीत से विपक्ष को सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने का मौका मिल जाएगा। दारा सिंह चौहान पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से ही विधायक निर्वाचित हुए थे जिन्होंने हाल ही में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया इसी कारण यह उपचुनाव हुआ। भाजपा ने जहां दारा सिंह चौहान को प्रत्याशी बनाया वहीं समाजवादी पार्टी ने अपने पुराने नेता पूर्व विधायक सुधाकर सिंह पर दांव लगाया था जिसे उन्होंने जीत हासिल कर सदन में सपा की सदस्य संख्या को बरकरार रखा है।
बीते दो सप्ताह राष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से बेहद चर्चित रहे। एक तरफ वन नेशन वन इलेक्शन वहीं दूसरी ओर इंडिया और भारत की बहस तेज हो गई। इतना ही नहीं दक्षिण के तमिलनाडु राज्य में मंत्री स्टालिन के सनातन धर्म पर की गई टिप्पणी भी उपचुनाव के दौरान चर्चा के केंद्र में रही। इन मुद्दों को लेकर एनडीए और इंडिया गठबंधन मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए तर्क गढ़ते रहे। चुनावी फैसला आने के बाद इसके प्रभाव का विश्लेषण किया जा सकता है। जो भाजपा के लिए अनुकूल नहीं दिखा।

समाजवादी पार्टी की जीत में कई निर्णयों का सकारात्मक असर रहा। सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का चुनावी जनसभा, परिवार की एकता के रूप में प्रो. रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव द्वारा चुनावी प्रबंधन संभालने के साथ गांवों में चौपालों का सम्बोधन का उपचुनाव पर बड़ा असर पड़ा। प्रशासन द्वारा समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं पर दबाव और रेड कार्ड के मुद्दे पर मुखर विरोध करते हुए लखनऊ में निर्वाचन आयोग में राजेन्द्र चौधरी के नेतृत्व में सपा प्रतिनिधिमंडल एवं घोसी में स्थानीय स्तर पर इलेक्शन ऑब्जर्वर से शिवपाल यादव की अगुवाई में विधायकों के दल द्वारा मांग पत्र दिए जाने के प्रयासों से कार्यकर्ताओं का मनोबल मजबूत हुआ। जिससे सपा के आधार वोटर उत्साह से वोट दिए।

यूपी उपचुनावों में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव चुनावी जनसभा के स्थान पर पार्टी संगठन को ही सक्रिय किए रहते थे। लेकिन मैनपुरी चुनाव के बाद उन्होंने अपनी रणनीति बदली। घोसी में अखिलेश यादव के चुनाव प्रचार में शामिल होने से जहां एक ओर पार्टी कैडर का मनोबल बढ़ा वहीं सत्ताधारी भाजपा पर दबाव पड़ा। जिससे मुख्यमंत्री की चुनावी सभा के साथ दोनों उपमुख्यमंत्री सहित एक दर्जन से भी अधिक मंत्री चुनाव क्षेत्र में डटे रहे। बावजूद इसके भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा।

घोसी जीत को कई मुद्दों पर स्पष्टता के तौर पर भी देखा जा सकता है। सपा की विजय ने अखिलेश यादव के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) अभियान और जातीय जनगणना की मांग पर मुहर लगाया। साथ ही विपक्षी एकता को लेकर बने इंडिया गठबंधन को मनोवैज्ञानिक बढ़त दिला दिया। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष ने घोसी उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी की तरफ से समर्थन जारी किया उसका भी चुनावी परिणाम पर असर पड़ा। हालांकि बसपा की दलित समाज से की गई अपील का प्रभाव देखने को नहीं मिला। बल्कि विपक्ष की ओर से एक प्रत्याशी होने का लाभ सपा को मिला।

बाईस के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को पूर्वांचल से महत्वपूर्ण जीत मिली थी जिसका परिणाम सीटों की बढ़ोत्तरी के रूप में दिखाई दिया। जिसको लेकर सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर अपने समाज के वोटों को लेकर बड़ा दावा करते हैं। लेकिन इस जीत ने उनके दावों की हवा निकाल दिया। हाल ही में भाजपा के साथ गठबंधन की घोषणा के बाद चुनावी प्रचार में उन्होंने सपा प्रत्याशी के करारी हार की घोषणा किया था लेकिन यह बयान भी हकीकत में नहीं बदल पाया। घोसी और यहाँ के समीपवर्ती जिले राजभर बहुल आबादी के है। बीते कुछ वर्षों में राजभर वोटों की राजनीति के नाम पर अति पिछड़ी जातियों में अपने मुखर बयान के कारण ओम प्रकाश राजभर चर्चा में आए। राजभर वोटों पर सुभासपा की पकड़ को इस चुनाव परिणाम ने कमजोर साबित कर दिया। जिसका परिणाम सुभासपा के राजनैतिक भविष्य, भाजपा के साथ गठबंधन और मंत्रिमंडल में शामिल होने की अटकलों को प्रभावित करेगा।

भाजपा प्रत्याशी दारा चौहान की चुनावी हार ने सत्ता के साथ चिपके रहने वाले नेताओं के विषय में जनता की राय का संकेतक ही समझा जा सकता है। सभी दलों की सवारी करते हुए बिना विचारधारा, दल और जनता की चिंता करने वाले नेताओं के लिए भी यह परिणाम एक सबक की भांति है। इस हार ने अति पिछड़ीं जातियों के नेता जो जाति की चुनावी सौदेबाजी करते हुए सिर्फ अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सक्रिय रहते हैं।उन्हे निराश कर दिया। अति पिछड़ी जातियों के नेताओं के भविष्य की दृष्टि से भी यह चुनाव एक उदाहरण स्थापित करेगा। जिसका बड़ा स्वरूप लोकसभा चुनाव में बड़े दलों का अति पिछड़ी जाति के नेताओं से होने वाले गठबंधन पर पड़ेगा। या यूं कहे कि जाति के वोटों की सौदेबाजी करने वाले दलों की भूमिका कमजोर होगी।

घोसी उपचुनाव में भाजपा की हार में कई कारक उभरकर सामने आए हैं। मुख्यमंत्री के प्रभाव क्षेत्र पूर्वांचल में कई जातियों के कद्दावर मंत्रियों की सक्रियता का कोई ठोस प्रभाव नहीं पड़ना बीजेपी के लिए चिंताजनक है। पिछले विधानसभा चुनाव के पूर्व गुजरात काडर सिविल सेवा से राजनीति में आए यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री एके शर्मा अपने गृह जनपद में भूमिहार समाज के वोटों को भाजपा के पक्ष में कराने में असफल रहे। भाजपा द्वारा पार्टी के मूल नेताओं के स्थान पर सपा से आए विधायक को प्रत्याशी बनाने से भी घोसी उपचुनाव में रोष उभरकर सामने आया। केंद्र और राज्य में दूसरी बार सत्ता में आई भाजपा के लिए अपने असन्तुष्ट नेताओं और कार्यकर्ताओं को सहेजना कठिन होता जा रहा है।

यह चुनावी परिणाम भाजपा में शक्ति असंतुलन का संदेश देने की भी कोशिश है। जिससे भाजपा के मूल कैडर की उपेक्षा का समाधान निकाला जा सके। यह उपचुनाव महंगाई, बेरोजगारी को लेकर जनता के आक्रोश के रूप में भी देखा जा सकता है। जिसपर दो सौ रुपये घरेलू सिलेंडर का दाम कम करने का भी असर नहीं पड़ा। इन चुनौतियों का लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी दल के परिणाम और इंडिया गठबंधन के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा यह देखना रोचक होगा ?

लेखक : पूर्व अतिथि प्रवक्ता एंथ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
मो. 7905295722

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