सूर्योदय भारत समाचार सेवा, नई दिल्ली : केरल सरकार ने बीते शुक्रवार (9 फरवरी) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत के कुल ऋण या बकाया देनदारियों का लगभग 60 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार का है. शीर्ष अदालत में दिया गया बयान केंद्र के इस आरोप का जवाब था कि केरल ‘आर्थिक रूप से सबसे कमजोर राज्यों में से एक है.’ केरल ने कहा कि देश के कुल कर्ज का बाकी 40 फीसदी हिस्सा सभी राज्यों का है. राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए वकील सीके शशि ने कहा, ‘वास्तव में 2019-2023 की अवधि के लिए केंद्र और राज्यों के कुल कर्ज में केरल का योगदान बेहद मामूली 1.70-1.75 प्रतिशत है.’
रिपोर्ट के मुताबिक, आरोपों का यह आदान-प्रदान केरल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान हुआ. केरल सरकार ने अपनी याचिका में राज्य की विधायी और कार्यकारी शक्ति में केंद्र के अनुचित हस्तक्षेप की आलोचना की थी.
एक स्पष्ट हमले में केरल ने केंद्र पर राज्यों को गरीबी में धकेलने वाली नीतियां बनाने और कानून में संशोधन करने का आरोप लगाया है.
भारत के अटॉर्नी जनरल द्वारा सौंपे गए एक नोट में कहा गया है कि केरल जैसे राज्यों द्वारा ली गई ‘लापरवाह उधारी’ देश की क्रेडिट रेटिंग को प्रभावित करती है.
जवाब में केरल ने केंद्र के ‘अपने स्वयं के ऋण पर लगाम लगाने के निराशाजनक रिकॉर्ड’ की ओर इशारा किया.
राज्य ने अदालत से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)-2023 डेटा मैपर का अध्ययन करने का आग्रह किया, जो पिछले दशक में अपने स्वयं के वित्त के प्रबंधन में केंद्र सरकार के खराब प्रदर्शन को उजागर करता है.
इसमें कहा गया है कि आईएमएफ कंट्री रिपोर्ट-2023 ने चेतावनी दी थी कि ‘मध्यम अवधि में भारत का कर्ज सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 100% से अधिक हो सकता’ है.
केरल ने प्रकाश डालते हुए कहा, ‘यह भारत को उन देशों के समूह में रखता है, जहां कर्ज उसकी जीडीपी से अधिक है. यह भारत को आर्थिक रूप से जोखिम भरा और व्यापक आर्थिक अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बनाता है. दुनिया की उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में भारत का कर्ज अपने समकक्ष समूह में सबसे ज्यादा है.’
‘लापरवाह तरीके से कर्ज लेने’ के मुद्दे पर केरल ने कहा कि केंद्र, वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप काम नहीं कर रहा है और इस वर्ष 2023-24 को 11.80 लाख करोड़ रुपये के कर्ज के साथ समाप्त करने की उम्मीद है. राज्य ने कहा कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुपालन की स्थिति में केंद्र को जितना कर्ज लेना चाहिए था, यह राशि उससे कहीं अधिक है.
इसके अलावा, राज्य ने उल्लेख किया कि कैसे केंद्र ने 2018 में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम में एक खंड जोड़ा था, जिससे इसे कानून में निर्धारित राजकोषीय सीमाओं का उल्लंघन करने की अनुमति मिल गई.
राज्य ने कहा कि ‘लापरवाह कर्ज’ का खतरा किसी भी राज्य की तुलना में केंद्र से अधिक है, क्योंकि वह भारतीय रिजर्व बैंक और प्रमुख सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों को ‘नियंत्रित’ करता है.
केंद्र के इस आरोप पर कि राज्य अनुत्पादक व्यय या खराब तरीके से सब्सिडी देने में शामिल है, केरल ने पलटवार करते हुए कहा कि नवीनतम केंद्रीय बजट के आंकड़े बताते हैं कि केंद्र ने अकेले ही चालू वित्त वर्ष में सब्सिडी पर 3.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया है.
राज्य ने कहा कि केंद्र की टिप्पणी अधूरी और भ्रामक तस्वीर पेश करके केरल के वित्तीय प्रबंधन को बहुत ही अदूरदर्शी तरीके से अपमानित करने का एक प्रयास है.