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सरकारी नीति बदलने को बैंकिंग बंद , प्रदेश में 4 हजार करोड़ रुपए का कारोबार ठप्प

लखनऊ। मंगलवार को देश भर में बैंकों की डेढ़ लाख शाखाओं में कामकाज ठप्प रहा और 10 लाख अधिकारी और कर्मचारी हड़ताल पर रहे। हड़ताल की वजह से बैंक जाकर पैसा जमा कराना, ड्रॉफ्ट बनवाना जैसे काम नहीं हो पाए, लेकिन बैंक प्रबंधन ने एटीएम के लिए पर्याप्त पैसा मुहैया कराने का इंतजाम किया गया था। दूसरी ओर ऑनलाइन बैंकिंग पर भी कोई असर नहीं पड़ा। प्रमुख निजी बैंक आईसीआईसीआई बैंक और एचडीएफसी बैंक इस हड़ताल में शामिल नहीं रहे।

बैंकिंग बंद

गोमती नगर स्थित बैंक आफ बड़ौदा की मुख्य शाखा पर धरना प्रदर्शन करते हुए उत्तर प्रदेश के ज़ोनल सेकेट्री संदीप सिंह ने कहा कि केन्द्र सरकार श्रम कानूनों में व्यापक फेरबदल करते हुए कर्मचारी हितों की अनदेखी बंद करे और निजीकरण के नाम पर कर्मचारियों का शोषण बंद किया जाए। उन्होंने बताया कि एक दिवसीय सांकेतिक हड़ताल से पूरे प्रदेश में लगभग 4 हजार करोड़ रुपए के कारोबार को नुकसान पहुंचा है।

अपनी-अपनी शाखाओं पर प्रदर्शन करने के बाद सभी हड़ताली कर्मचारी हजरतगंज स्थित इलाहाबाद बैंक की मुख्य शाखा पर एकत्रित हो कर प्रदर्शन कर रहे हैं।

हड़ताल का आह्वान अधिकारियों और कर्मचारियों की नौ यूनियनों ने युनाइडेट फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) के झंडे तले किया था।  यूएफबीयू ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने उनकी मांगे नहीं मानी तो वो अक्टूबर-नवबंर में दो दिनों की हड़ताल करेंगे और इसके पहले 15 सितम्बर को दिल्ली में बड़ी रैली निकाली जाएगी।

बैक यूनियनों की 17 मांगों हैं जिनको लेकर कर्मचारी आंदोलित हो रहे हैं उनमें सरकारी बैंकों का निजीकरण बंद किया जाए, बैंकों के विलय पर रोक लगे, कंपनियों के फंसे कर्ज को बट्टे खाते में नहीं डाला जाए, जानबुझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों को अपराधी करार दिया जाए, फंसे कर्ज की वसूली पर संसदीय समिति की सिफारिशों पर अमल किया जाए, फंसे कर्ज के लिए बैकों में शीर्ष पर बैठे लोगों की जवाबदेही तय की जाए, बैंक बोर्ड ब्यूरो रद्द किया जाए, जीएसटी के नाम पर सर्विस चार्ज नहीं बढ़ाया जाए, नोटबंदी की लागत की भरपाई की जाए तथा सभी स्तर पर पर्याप्त संख्या में नई नियुक्ति की जाए जैसी मांगे प्रमुख रूप से शामिल है।

 

 

 

 

यूनियन पदाधिकारिय़ों का कहना है कि बैंकिंग उद्योग की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं पर सरकार नियम बदलने को तैयार नहीं है। इनका आरोप है कि खतरनाक स्तर पर जा पहुंच कर फंसे कर्ज से निबटने के लिए उचित कदम के बजाए सरकार अलग-अलग कानूनी रास्ते अपनाने में जुटी है जिससे बैकों का बैलेंस शीट साफ तो हो जाएगा, लेकिन इसका बोझ खुद बैंकों की उठाना पड़ेगा और दूसरी ओऱ बैंकों को पर्याप्त पूंजी मुहैया नहीं करायी जा रही।

यूनियनों का आरोप है कि बड़ी कंपनियों के फंसे कर्ज का बोझ आम लोगों पर विभिन्न सेवाओं पर बढ़े हुए सर्विस चार्ज और बचत खाते पर ब्याज में कमी के तौर पर डाला जा रहा है। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के संयोजक एस के संगतानी के नेतृत्व में इलाहाबाद बैंक पर धरना प्रदर्शन चल रहा है और पीएम मोदी तथा वित्तमंत्री अरुण जेटली हाय हाय के नारे लगाए जा रहे हैं

 

 

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