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ड्रैगन अब क्यों दे रहा शांति की दुहाई

सिक्किम क्षेत्र में डोकलाम को लेकर भारत के साथ जारी सैन्य गतिरोध पर चीन भले ही युद्ध की भाषा बोल रहा हो, लेकिन उसके दिल में युद्ध नहीं व्यापार बसा हुआ है. ड्रैगन युद्ध के बजाय अपने दिल से बिजनेस के बारे में सोच रहा है. ग्लोबल टाइम्स पर प्रकाशित एक लेख में चीन ने युद्ध के ऊपर व्यापार को तरजीह देने की बात कही है.

बता दें कि हैदराबाद में रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी या RCEP) के लिए 16 देशों के 100 से ज्यादा अधिकारी इकट्ठा होंगे. अगले सप्ताह होने वाली इस बैठक में भारत और चीन भी शामिल होंगे. इस बैठक में एशिया केंद्रित ट्रेड डील पर 16 देशों के बीच बातचीत होगी.

चीन और भारत के बीच इस ग्रुप के बड़े खिलाड़ियों में से हैं. हालांकि दोनों देशों के बीच सीमा तनाव को लेकर मुठ्ठियां भिंची हुई हैं. दोनों देशों के लिए यह चुनौती है कि सीमा विवाद व्यापार समझौते के बीच बाधा न बन जाए.

चीनी मीडिया का कहना है कि 2012 में चीन और जापान के बीच दियाओयू आइसलैंड को लेकर तनाव था, जापान ने इस द्वीप को नेशनलाइज करने की कोशिश की, जबकि चीन भी इसे अपना संप्रभु क्षेत्र बताता रहा है. दोनों देशों के बीच यह तनाव व्यापार में भी देखने को मिला और चीन-जापान-दक्षिण कोरिया फ्री ट्रेड एग्रीमेंट स्थगित हो गया. 2015 में चीन और दक्षिण कोरिया ने अलग से द्विपक्षीय फ्री ट्रेड एग्रीमेंट साइन किया.

माना जा रहा था कि अगर जापान-चीन-दक्षिण कोरिया के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट हो जाता, तो तीनों देशों की अर्थव्यवस्था को काफी फायदा मिलता. चीन का कहना है कि RCEP को इस तरह की स्थिति से बचना चाहिए. यानी स्पष्ट है कि चीन नहीं चाहता कि भारत के साथ व्यापार में सीमा विवाद कोई बाधा बने.

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि चीन अपने संप्रभु क्षेत्र पर अधिकार को लेकर कोई समझौता नहीं करेगा, लेकिन वह अपने पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद को बातचीत के जरिए हल करने के लिए पूरी तरह दृढ़ प्रतिज्ञ है. किसी भी विवाद को बढ़ावा देना दोनों देशों के लिए घातक होगा.
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