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सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए प्लाज्मा तकनीक के क्लीनिकल ट्रायल को दी मंजूरी

अशोक यादव, लखनऊ। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा विकसित प्रोटोकॉल के अनुसार, कोविड-19 रोगियों का प्लाज्मा के जरिए इलाज करने वाले इच्छुक संस्थानों को क्लीनिकल ट्रायल करने की मंजूरी दे दी है।

बता दें कि देश के पांच आयुर्विज्ञान कॉलेज और अस्पतालों में इसका क्लीनिकल ट्रायल किया जाएगा। 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बताया कि तिरुवनंतपुरम स्थित चित्रा तिरुनाल आयुर्विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान को क्लीनिकल ट्रायल के तौर पर सीमित संख्या में इस तकनीक के इस्तेमाल की अनुमति मिली है।

चित्रा तिरुनाल आयुर्विज्ञान संस्थान की निदेशिका डॉ. आशा किशोर ने कहा कि कोरोना वायरस से संक्रमण के ठीक हो चुके मरीज के रक्त प्लाज्मा की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता के लिए उन्होंने रक्त दान की उम्र सीमा में रियायत देने की मांग की है।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद पहले ही रक्त प्लाज्मा से इस रोग के मरीजों के उपचार के ट्रायल की अनुमति दे दी है।

एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर नवल विक्रम ने बताया कि कोरोना से ठीक हो चुके एक व्यक्ति के खून से कोरोना पीड़ित चार लोगों का इलाज किया जा सकता है।  

इस तकनीक में ठीक हो चुके रोगी के शरीर से ऐस्पेरेसिस विधि से खून निकाला जाएगा। इस विधि में खून से सिर्फ प्लाज्मा या प्लेटलेट्स जैसे अवयवों को निकालकर बाकी खून को फिर से उस डोनर के शरीर में वापस डाल दिया जाता है।

प्रोफेसर नवल विक्रम के मुताबिक एक व्यक्ति के प्लाज्मा से चार नए मरीजों को ठीक करने में इसका इस्तेमाल हो सकता है। दरअसल एक व्यक्ति के खून से 800 मिलीलीटर प्लाज्मा लिया जा सकता है।

वहीं कोरोना से बीमार मरीज के शरीर में एंटीबॉडीज डालने के लिए लगभग 200 मिलीलीटर तक प्लाज्मा चढ़ाया जा सकता है। इस तरह एक ठीक हो चुके व्यक्ति का प्लाज्मा 4 लोगों के उपचार में मददगार हो सकता है।

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