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कांग्रेस की दोहरी नीति पर सियासी टकराव : रायगढ़ की खदान में जनता की ज़रूरत या राजनीति का खेल ?

सूर्योदय भारत समाचार सेवा, रायगढ़ : महाराष्ट्र सरकार की महत्वाकांक्षी कोयला खदान परियोजना को लेकर कांग्रेस ने एक बार फिर भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश की है। रायगढ़ जिले में प्रस्तावित इस परियोजना को लेकर कांग्रेस ने जिस तरह से भ्रम की स्थिति उत्पन्न की है, उसने मीडिया का ध्यान आकर्षित किया है।

कोयला और कांग्रेस का पुराना संबंध रहा है। १९७० के दशक में इंदिरा गांधी सरकार ने कोल इंडिया लिमिटेड की स्थापना की थी, जो आज विश्व की सबसे बड़ी सरकारी खनन कंपनियों में से एक है। इसकी सबसे बड़ी सहायक कंपनी, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL), छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में फैले ९२ कोयला ब्लॉकों से खनन करती है। यह कंपनी छत्तीसगढ़ में अब तक सबसे अधिक वृक्षों की कटाई करने वाली संस्था रही है। वहीं, मनमोहन सिंह सरकार के दौरान हुए कोयला घोटाले को देश भूला नहीं है।

इस बार कांग्रेस ने महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी (महाजेनको) की कोयला खदान परियोजना को निशाना बनाया है। यह वही परियोजना है जिसे २०१६ में महाराष्ट्र सरकार को आवंटित किया गया था। कांग्रेस का विरोध इस समय इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि महाराष्ट्र को बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इस कोयले की सख्त जरूरत है। यदि यह परियोजना बाधित होती है, तो महाराष्ट्र की भाजपा सरकार को बिजली उत्पादन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, जिससे उपभोक्ताओं को महंगी बिजली मिल सकती है और राज्य की प्रगति प्रभावित हो सकती है।

दिलचस्प बात यह है कि महाजेनको को इस परियोजना के लिए आवश्यक पर्यावरणीय स्वीकृतियाँ कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही मिली थीं:
• सितंबर २०१९: भूपेश बघेल सरकार के दौरान जीपी II खदान के लिए जन सुनवाई आयोजित की गई।
• अक्टूबर २०१९: पर्यावरण मंत्रालय को परियोजना की सिफारिश भेजी गई।
• जुलाई २०२२: केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने परियोजना को पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान की।

इन तथ्यों से स्पष्ट है कि कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए परियोजना को आगे बढ़ाया और अब विपक्ष में आकर उसका विरोध कर रही है। इससे भाजपा सरकार के लिए जनमत और प्रशासनिक दबाव दोनों बढ़ सकते हैं।

अब सवाल यह है कि क्या भाजपा सरकार कांग्रेस के इस विरोध का जवाब तथ्यों के साथ देगी या केवल देखती रहेगी? महाजेनको की २.२ करोड़ टन क्षमता वाली यह खदान लाखों महाराष्ट्रवासियों और रायगढ़ के हजारों श्रमिकों व परिवहन कर्मियों के लिए रोजगार और ऊर्जा का स्रोत बन सकती है — बशर्ते कि इसका उत्पादन शीघ्र शुरू हो।

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