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बस नज़रिया ही तो बदलना है : अतुल मलिकराम

सूर्योदय भारत समाचार सेवा : जीवन का हर पल एक सफर है और इस सफर में हमें अनेक बातें सीखने को मिलती हैं, कुछ अच्छी, तो कुछ खराब। जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह एक बात के भी कई रूप हो सकते हैं.. एक ही बात किसी को अच्छी लग सकती है, तो किसी को बुरी।
यह प्रकृति की एक विशेषता है, जो हमारे जीवन में विभिन्न प्रकार की रुचियों, दृष्टियों और मूल्यों को प्रकट करती है। हम जैसे व्यक्ति इस बात के आधार पर अपने विचार और धारणाओं को तय करते हैं। एक व्यक्ति को जो बात अच्छी और सही लगती है, वही दूसरे को बुरी और गलत नज़र आ सकती है। यह सच है कि हर व्यक्ति अपने अनुभवों और संदर्भों के आधार पर अपने विचार बनाता है, और ये विचार हमारी प्रतिष्ठा और मान्यता का संकेत हो सकते हैं। लेकिन क्या इसका मतलब है कि सब कुछ सच होता है, जो हमारे मन में है?
बिना मौसम की बारिश किसी को रोमांचित कर देती है, तो यह उसके लिए अच्छी है। वहीं यदि आप एक किसान से पूछेंगे, तो वह अपनी व्यथा बताते हुए यही कहेगा कि बारिश की वजह से सिवाय उसकी फसल को सड़न के अलावा कुछ नहीं मिला। इसका अर्थ हुआ कि वही बारिश उसके लिए कतई अच्छी नहीं है।
हर बात के दो पहलू न केवल व्यक्तिगत स्तर पर होते हैं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी ये असर डालते हैं। एक ही बात के अलग-अलग रूप देखकर लोग अपने दोषों और गुणों को प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिए, स्कूल के एक टीचर ने फलां मैडम की तारीफ कर दी, जो मैडम को अच्छी नहीं लगी, जबकि टीचर का इरादा बिलकुल भी बुरा नहीं था। मैडम ने अपने अनुभवों के आधार पर उन्हें गलत समझ लिया और उनका पहलू ही नहीं जाना। जबकि मैंने कहीं सुना था कि यदि आपको कोई बात या कोई इंसान अच्छा लगे, तो आप खुलकर उसकी तारीफ करिए, जब बुराई करने में हम हजारों शब्द इस्तेमाल करते हैं, तो तारीफ में कंजूसी क्यों?
कुछ लोग अपनी रुचियों और मान्यताओं के आधार पर विचार बनाते हैं, जबकि कुछ लोग बातों के आधार पर विचार बनाते हैं। यदि हम अपनी विवेक और बुद्धिमत्ता के आधार पर किसी भी बात के सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर निर्णय लें, तो यह हमारे और समाज के लिए हितकर होगा, क्योंकि सच्चाई और भ्रम के बीच खड़ा होने पर हम अपने विचारों की गहराई को समझते हैं और अपने साथी मनुष्यों के बारे में भी समझ पाते हैं। इससे हमें सामाजिक और नैतिक मानकों की पहचान होती है और हम सभ्य समाज का हिस्सा बनने योग्य होते हैं।
वह कहते हैं न-
नज़र को बदलो, तो नज़ारे बदल जाते हैं
सोच को बदलो, तो सितारे बदल जाते हैं
कश्तियाँ बदलने की जरूरत नहीं, ऐ दोस्त
दिशा को बदल लो, किनारे खुद-ब-खुद बदल जाते हैं।
अंत में, हम यही कह सकते हैं कि सच्चाई और भ्रम, हर बात के अभिन्न हिस्से हैं। हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करके सत्य की पहचान करना चाहिए और आपातकाल में भी सही राह चुनना की कला हमें आना चाहिए। यह ध्यान रखकर हम अपने जीवन में उजागरता, न्याय और सत्य को बनाए रख सकते हैं।

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