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बीबीएयू में संत कबीरदास जयंती पर ‘कबीर : अकथ कहानी प्रेम की’ विषय पर हुआ कार्यक्रम का आयोजन 

अशोक यादव, सूर्योदय भारत समाचार सेवा, लखनऊ : बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय ( केन्द्रीय विश्वविद्यालय ), लखनऊ में बुधवार 11 जून को हिन्दी विभाग की ओर से संत कबीरदास जयंती के अवसर पर ‘कबीर : अकथ कहानी प्रेम की’ विषय पर चर्चा एवं विमर्श कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल द्वारा की गयी। मुख्य वक्ता के तौर पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त मंच पर विशिष्ट वक्ता एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. पूरन‌ चंद टण्डन, डीएसडब्ल्यू प्रो. नरेंद्र कुमार, कार्यक्रम संयोजक और भाषा एवं साहित्य विद्यापीठ के संकायाध्यक्ष प्रो. राम पाल गंगवार, प्रो. सर्वेश कुमार सिंह एवं डॉ. बुद्धि‌ सागर गुप्ता मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं बाबासाहेब एवं संत कबीरदास के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुई। इस अवसर पर संत कबीर के जीवन-दर्शन, काव्य और समकालीन समाज में उनकी प्रासंगिकता पर सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए गए।

विवि कुलपति प्रोफेसर राज कुमार मित्तल ने कबीर के अपरिहार्य व्यक्तित्व की व्याख्या करते हुए कहा कि कबीर केवल संत या समाज-सुधारक नहीं, अपितु भारत की बौद्धिक विरासत के ऐसे युगपुरुष हैं जिन्होंने अनुभवजन्य ज्ञान के माध्यम से जाति, धर्म और पाखंड के विरुद्ध आवाज़ बुलंद की। बाबा साहब अम्बेडकर के चिंतन पर कबीर का गहरा प्रभाव था, जिन्होंने समावेशी समाज की अवधारणा को आकार दिया।

मुख्य वक्ता एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कबीर की कविताओं में प्रेम की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा‌ कि जिस प्रकार तथागत बुद्ध ने करुणा को धर्म का स्तंभ बनाया, उसी तरह कबीर ने प्रेम और सदगुरु को आत्मिक विमर्श का विषय बनाते हुए समाज को जोड़ने की भूमिका निभाई।

 विशिष्ट वक्ता एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. पूरन‌ चंद टण्डन ने कबीर को एक क्रांतिकारी कवि बताया और कहा कि उनका अनुभव मूलक ज्ञान ही उनकी भक्ति की विशेषता है। कबीर की वाणी समाज में व्याप्त भेदभाव, छुआछूत और अंधविश्वास के विरुद्ध चेतना का संचार करती है।

कार्यक्रम संयोजक और भाषा एवं साहित्य विद्यापीठ के संकायाध्यक्ष प्रो. राम पाल गंगवार ने कबीर की काव्य-संवेदना की व्याख्या करते हुए कहा‌ कि कबीर की मूल संवेदना प्रेम है। जब समाज में प्रेम पर आघात होता है, तो वे अपनी कविताओं के माध्यम से समाज को झकझोरते हैं और सच्चे मानवीय मूल्यों की पुनः स्थापना करते हैं।

समारोह के द्वितीय सत्र में शोधार्थियों ने कबीर के काव्य और दर्शन पर अपने विचार व्यक्त किए। इस सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर विपिन झा ने की। उन्होंने कबीर के विचारों को वर्तमान सामाजिक ढांचे के लिए अनुकरणीय बताया और युवाओं को उनसे प्रेरणा लेने की सलाह दी। इसके साथ ही विभाग के शोधर्थियों- शिवानी राठी, श्रुतिकीर्ति अग्निहोत्री, शशि प्रकाश पाठक, आनंद कुमार देव, राजीव कुमार ने भी अपने विचार साझा किये। इस अवसर ने कबीर के जीवन-दर्शन को पुनः स्मरण कराते हुए सामाजिक समरसता, प्रेम और मानवीय मूल्यों के प्रति नई चेतना का संचार किया।

कार्यक्रम में विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।

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