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बीबीएयू में ‘भारतीय भाषाएं : राष्ट्रीय एकता-सांस्कृतिक अस्मिता का आधार’ पर‌ राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

अशोक यादव, लखनऊ : बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में ‘भारतीय भाषा दिवस’ के अवसर पर गुरुवार 11 दिसंबर को हिंदी प्रकोष्ठ, बीबीएयू एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद, अवध प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय भाषाएं: राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक अस्मिता का आधार’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का‌ आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. पवनपुत्र बादल उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु के कला संकाय के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. हरीश कुमार शर्मा, नवयुग कन्या महाविद्यालय के संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. रीता तिवारी एवं हिन्दी विभाग, बीबीएयू के विभागाध्यक्ष प्रो. रामपाल गंगवार एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव उपस्थित रहे। मंच संचालन का कार्य डॉ. रमेश चंद्र नैनवाल द्वारा किया गया।

विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि आज समय की माँग है कि हम भारतीय ज्ञान परम्परा को पुनः शिक्षा प्रणाली में समाहित करें, क्योंकि भारतीय संस्कृति और सभ्यता हमारे आदर्शों, मूल्यों, पर्यावरण-मित्र दृष्टिकोण तथा सामाजिक समरसता की धुरी रही है।

मुख्य अतिथि एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. पवनपुत्र बादल ने अपने विचार रखते हुए कहा कहा कि सनातन मात्र केवल एक संस्कृति का प्रतीक नहीं, बल्कि विश्व की सबसे प्राचीन और व्यापक विचारधारा है। भारत की महान परंपरा ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ इस बात को सिद्ध करती है।

नवयुग कन्या महाविद्यालय के संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. रीता तिवारी ने चर्चा के दौरान कहा कि संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी कहा गया है तथा संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा मानी जाती है।

सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु के कला संकाय के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. हरीश कुमार शर्मा ने भारतीय धरती की उस अनोखी विशेषता पर प्रकाश डाला, जहाँ कोस-कोस पर भाषा और वाणी बदलने के बावजूद देश में अद्भुत एकता और अखंडता देखने को मिलती है।

हिन्दी विभाग, बीबीएयू के विभागाध्यक्ष प्रो. रामपाल गंगवार ने कहा कि हमें प्रत्येक भाषा का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि भाषाएँ केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति और ज्ञान की संरक्षक भी होती हैं।

समस्त कार्यक्रम के दौरान डॉ. नमिता जैसल, अन्य शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।

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