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बीबीएयू में ‘नदी पुनरुद्धार और भारतीय ज्ञान प्रणाली : विज्ञान, समाज और सततता’ राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन

सूर्योदय भारत समाचार सेवा, लखनऊ : बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में गुरुवार 13 नवंबर को पर्यावरण विज्ञान विभाग की ओर से ‘नदी पुनरुद्धार और भारतीय ज्ञान प्रणाली: विज्ञान, समाज और सततता’ विषय पर आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ। यह संगोष्ठी विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल के मार्गदर्शन में एवं बीबीएयू के पर्यावरण विज्ञान विभाग, स्टेट मिशन फॉर क्लीन गंगा, उत्तर प्रदेश एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गयी। समापन सत्र के दौरान मुख्य तौर पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के पर्यावरणीय शिक्षा से जुड़े एवं राष्ट्रीय समन्वयक संजय स्वामी एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष सुरेश गुप्ता एवं बीबीएयू के पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वेंकटेश दत्ता उपस्थित रहे। सर्वप्रथम प्रो. वेंकटेश दत्ता ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया। मंच संचालन का कार्य डॉ. सूफिया अहमद एवं डॉ. लीना शरद शिम्पी द्वारा किया गया।

 शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के पर्यावरणीय शिक्षा से जुड़े एवं राष्ट्रीय समन्वयक संजय स्वामी ने बताया कि आज नदियों के पुनरुद्धार की अत्यंत आवश्यकता है, क्योंकि नदियाँ हमारे जीवन का आधार हैं। नदियाँ न केवल हमें जल प्रदान करती हैं, बल्कि कृषि, उद्योग, पर्यावरण और जैव विविधता का संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यदि नदियाँ प्रदूषित होती जाएँगी, तो इसका सीधा प्रभाव हमारे स्वास्थ्य, जीवन और भविष्य पर पड़ेगा। इसलिए नदियों को स्वच्छ और सुरक्षित रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।

सुरेश कुमार गुप्ता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गंगा नदी का जल सदियों से पवित्र माना जाता रहा है, क्योंकि इसमें ऐसे विशेष प्रकार के बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो प्राकृतिक रूप से जल को स्वच्छ, जीवंत और रोगाणुरहित बनाए रखते हैं। यही कारण है कि गंगा का जल लंबे समय तक खराब नहीं होता और इसे धार्मिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

विभागाध्यक्ष प्रो. वेंकटेश दत्ता ने बताया कि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय विभिन्न संस्थानों और संगठनों के साथ मिलकर नदियों के संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। उन्होंने बताया कि इससे पहले विश्वविद्यालय ने गोमती नदी के तट पर सफाई अभियान और योग श्रंखला जैसे कई जन-जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया था, जिनके माध्यम से लोगों को नदियों की स्वच्छता और संरक्षण के प्रति जागरूक किया गया।

इस अवसर पर प्रो. वैंकटेश दत्ता ने सभी के समक्ष इस द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की रिपोर्ट एवं संगोष्ठी के उपरांत तैयार किये गये सिद्धांतों को प्रस्तुत किया । समापन सत्र के दौरान विशेषज्ञ वक्ताओं द्वारा विभिन्न विषयों पर विचार रखे गये। इस दौरान भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, पुणे के डॉ. बिजॉय थॉमस ने ‘प्रभावी जल प्रबंधन के लिए ज्ञान और व्यवहार का समन्वय विषय पर एवं नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के  प्रो. फिलिप कुललेट ने ‘अधिकारों के माध्यम से पुनर्जीवन: नदी अधिकार विमर्श की संभावनाएँ और सीमाएँ ‘ विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम के दूसरे दिन प्रतिभागियों के लिए तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। प्रथम तकनीकी सत्र आईआईटी बीएचयू के प्रो. प्रभात कुमार सिंह की अध्यक्षता में ‘नदी पुनर्जीवन के मॉडल और प्रकरण अध्ययन विषय पर आयोजित किया गया। प्रथम तकनीकी सत्र के अंतर्गत पृथ्वी अनुसंधान और पर्यावरण प्रबंधन केंद्र, बैंगलोर के डॉ. जयाश्री वैद्यनाथन ने ‘निला नदी: एक जीवंत विरासत — परंपरा, रूपांतरण और केरल की भारथपुझा (निला) नदी का पुनरुत्थान” विषय पर‌ एवं बड़ौदा काउंसिल, गुजरात की डॉ. नेहा ने ‘क्षणिक नदी तंत्रों का संरक्षण: भारत के वडोदरा स्थित विश्वामित्री नदी के उदाहरण से प्राप्त शिक्षाएँ विषय पर अपने विचार व्यक्त किये। साथ ही नमामि गंगे प्रोग्राम, मध्य प्रदेश के नोडल अधिकारी डॉ. टैगोर सीताराम ने ‘शहरी नदी पुनर्जीवन हेतु समेकित पारिस्थितिक-जलवैज्ञानिक रूपरेखा: भारत के इंदौर स्थित गंगा बेसिन की सहायक नदी — कान्ह नदी का एक अध्ययन विषय पर तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के डॉ. नवीन कुमार सिंह ने ‘गंगा नदी में प्रदूषण का पौध-आधारित प्रबंधन विषय पर अपने विचार रखे।

द्वितीय तकनीकी सत्र इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के प्रो. टी. सेकर, बैंकर इंस्टीट्यूट ऑफ रुरल डेवलपमेंट, नाबार्ड की सुश्री रजनी पांडेय और पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष, बीबीएयू के प्रो. वेंकटेश दत्ता एवं मिथलेश मिश्रा की अध्यक्षता में ‘प्रकृति-आधारित समाधान (NbS) के माध्यम से नदी पुनर्स्थापन – एक व्यवहारिक दृष्टिकोण विषय पर आयोजित किया गया। तीसरा तकनीकी सत्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रो. फिलिप कुललेट की अध्यक्षता में ‘ज्ञान और व्यवहार का संबंध जोड़ना अंतर्गत ग्राउंड वाटर एक्शन ग्रुप के रवीन्द्र स्वरूप सिन्हा ने ‘नदी पुनर्जीवन में भूजल संसाधनों की महत्वपूर्ण भूमिका पर पोस्टर प्रस्तुत किये गये।

समापन सत्र के दौरान पोस्टर प्रस्तुतिकरण के विजेताओं को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। अंत में आयोजन समिति की ओर से अतिथियों को स्मृति चिन्ह एवं शॉल भेंट करके उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया। साथ ही प्रो. वेंकटेश दत्ता ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

समस्त कार्यक्रम के दौरान विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, गैर शिक्षण कर्मचारी, विभिन्न जिलों से आये‌ अधिकारी,‌‌ प्रतिभागी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे। 

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