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बीबीएयू में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और हिन्दी साहित्य’ विषय पर हुआ राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

सूर्योदय भारत समाचार सेवा, लखनऊ : बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में गुरुवार 25 सितंबर को हिन्दी प्रकोष्ठ की ओर से आयोजित ‘हिन्दी पखवाड़ा उत्सव 2025’ के अंतर्गत ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और हिन्दी साहित्य’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुशील चन्द्र त्रिवेदी उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त मंच पर विशिष्ट अतिथि, राष्ट्रधर्म के प्रबंधक एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संयुक्त महामंत्री डॉ. पवनपुत्र बादल, मुख्य वक्ता, लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह, बीबीएयू कुलसचिव डॉ. अश्विनी कुमार सिंह एवं सहायक निदेशक राजभाषा एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव मौजूद रहे। मंच संचालन का कार्य डॉ. शिव शंकर यादव द्वारा किया गया।

विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा ही व्यवस्थित जीवन का प्रमुख आधार है और इसके माध्यम से व्यक्ति का समग्र विकास संभव है। साथ ही उन्होंने ‘वोकल फॉर लोकल’ के महत्व पर बल देते हुए नवाचार, स्टार्टअप्स और उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया। साथ ही उन्होंने युवाओं को पंचकोश – अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश के महत्व से अवगत कराया।

मुख्य अतिथि डॉ. सुशील चन्द्र त्रिवेदी ने सनातन विचारधारा की आवश्यकता पर भी बल दिया और सभी को संदेश दिया कि हमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मूल्यों को अपने जीवन और व्यवहार में क्रियान्वित करना चाहिए, क्योंकि यही नीति ज्ञान, नवाचार और संस्कृति का संतुलित समन्वय करती है।

विशिष्ट अतिथि डॉ. पवनपुत्र बादल ने चर्चा के दौरान कहा कि हमें अंत्योदय के भाव को समझने की आवश्यकता है, क्योंकि जब तक समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान नहीं होता, तब तक वास्तविक प्रगति संभव नहीं है।

मुख्य वक्ता प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि हमारे समस्त ज्ञान का स्रोत वेद, उपनिषद, वेदान्त, उपन्यास आदि हैं, अतः प्राचीन भारतीय ज्ञान को समझने के लिए हमें पुनः इन साहित्यिक स्रोतों की ओर लौटना होगा।

समापन सत्र की अध्यक्षता बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. बाबूराम ने की। इसके अतिरिक्त मंच पर मुख्य अतिथि के तौर पर राज्य ललित अकादमी, उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष डॉ. गिरीश चन्द्र मिश्र, मुख्य वक्ता एवं जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ. सौरभ मालवीय और भाषा एवं साहित्य विद्यापीठ, बीबीएयू के संकायाध्यक्ष प्रो. रामपाल गंगवार उपस्थित रहे।

सत्र के मुख्य वक्ता सौरभ मालवीय ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारत में महापुरुषों ने अपने जीवन को विभिन्न प्रकार से समाज और राष्ट्रहित में समर्पित किया है और उनकी ही परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य नई पीढ़ियाँ निरंतर करती आ रही हैं।

डॉ. गिरीश चन्द्र मिश्र ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि एक समय था जब हम बाहरी देशों और संस्कृतियों के ज्ञान तथा विचारों को देखकर अपने स्वयं के ज्ञान, संस्कृति और आदर्शों को भूलने लगे थे।

प्रो. बाबूराम ने चर्चा के दौरान कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में तीन महत्त्वपूर्ण शब्द निहित हैं, जिनके अलग-अलग पर्याय और गहन अर्थ हैं। इनमें देशप्रेम, ज्ञान को कौशल में रूपांतरित करने की क्षमता तथा आत्मबोध की भावना सम्मिलित है।

प्रो. रामपाल गंगवार ने बताया कि भक्ति काल के कवियों ने स्पष्ट रूप से सिद्ध किया है कि किसी भी संस्कृति या समाज के लिए भाषा का कोई विकल्प नहीं होता। इसी संदर्भ में उन्होंने हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न आंदोलनों और उनकी सामाजिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक प्रासंगिकताओं पर विस्तार से चर्चा की।

इस अवसर पर विद्यार्थियों के लिए अकादमिक सत्र का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता डी.एस.के. कॉलेज, मऊ के प्राचार्य प्रो. शर्वेश पाण्डेय ने की। इसके अतिरिक्त वक्ता के तौर पर बीबीएयू के संस्कृत विभाग के डॉ. विपिन झा एवं प्रसिद्ध लेखिका एवं समाजसेविका डॉ. शिवानी कटारा उपस्थित रहीं।

अंत में डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समस्त कार्यक्रम के दौरान विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, अधिकारीगण, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।

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