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घुमन्तु समाज के नए जीवन का आधार बनेगा राष्ट्रीय स्तर का कॉमन आइडेंटिटी कार्ड : डॉ अतुल मलिकराम

सूर्योदय भारत समाचार सेवा : भारत में घुमंतू, अर्ध-घुमंतू और विमुक्त जातियों की संख्या देश की कुल आबादी की लगभग 10% है, जो अपनी खानाबदोश जीवनशैली के कारण अक्सर सरकारी योजनाओं और सामाजिक सुविधाओं से वंचित रहते हैं। हाल ही में राजस्थान सरकार ने इन समुदायों के बच्चों के लिए घुमंतू जाति पहचान पत्र जारी किया है, जिससे वे बिना स्थायी दस्तावेजों के भी स्कूलों में प्रवेश पा सकें।

इसके अलावा, उत्तर प्रदेश में घुमंन्तु जातियों के लिए विशेष बोर्ड का गठन करने की घोषणा हुई है, ताकि उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके। यह दर्शाता है कि देश में घुमंतू समाज की स्थिति आजादी के लगभग 80 साल बाद भी अस्थिर बनी हुई है और उन्हें स्थायी पहचान व सुविधाओं की सख्त आवश्यकता है। इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ाते हुए एक राष्ट्रीय स्तर का कॉमन आइडेंटिटी कार्ड, उनके जीवन में एक गेम चेंजर की भूमिका निभा सकता है !

घुमंतू समाज के लिए इस कॉमन आइडेंटिटी कार्ड के कई मायने होंगे और वे विभिन्न स्तरों पर लाभान्वित हो सकेंगे। सबसे पहले, यह कार्ड उन्हें सरकारी योजनाओं जैसे कि राशन, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और रोजगार तक सीधी पहुंच प्रदान करेगा। यह सुविधा उनका आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण सुनिश्चित करेगी। दूसरा, इस कार्ड के जरिये उन्हें कहीं से भी मतदान करने की शक्ति मिलेगी, जो उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को मजबूत करेगा, जिससे उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ेगी।

तीसरा, शिक्षा के क्षेत्र में यह कार्ड बच्चों को स्कूलों में प्रवेश दिलाने में मदद करेगा, जैसा कि राजस्थान के हालिया उदाहरण में देखा गया है। इससे बच्चों का भविष्य सुरक्षित होगा और वे मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बन सकेंगे। चौथा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में यह कार्ड उन्हें अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाने और रोजगार के अवसरों को अपनाने में सक्षम बनाएगा।

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