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कश्मीर चुनाव : कौन किसकी बी टीम है ?

श्रीनगर / पुलवामा : 90 सीटों वाले राज्य जम्मू और कश्मीर के विधानसभा चुनावों में कौन-किसका ‘प्रॉक्सी’ है, यह बहस रोज़ रोचक मोड़ लेती दिख रही है. सबसे मज़ेदार यह कि इस बहस को सबसे पहले छेड़ने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ही इसमें घिर गए हैं. 20 सितंबर की शाम, बड़गाम सीट से ‘अपनी पार्टी’ के उम्मीदवार मुंतज़िर मोहिउद्दीन ने उमर अब्दुल्ला के खिलाफ अपना नामांकन वापस ले लिया. 

‘कश्मीर को एक सशक्त नेतृत्व की जरूरत है इस वक्त. मुझे लगता है कि उमर अब्दुल्ला ही वह नेतृत्व कर सकते हैं. इसीलिए अपने शुभचिंतकों से सलाह-मशविरा करने के बाद मैंने बड़गाम सीट से अपना नामंकन वापस लेने का फैसला किया है,’ मुंतज़िर ने बताया.

मुंतज़िर से जब पूछा कि यह ‘विचार’ उन्हें दूसरे चरण की वोटिंग से चार दिन पहले आया है, क्या इसे किसी तरह का राजनीतिक दबाव समझा जाए? मुंतज़िर का जवाब था, ‘यह मेरी राजनीतिक परिपक्वता है.’ 

पीडीपी के बड़गाम उम्मीदवार मुंतज़िर मेहदी ने कहा, ‘अपनी पार्टी भाजपा की बी टीम रही है. उनके उम्मीदवार ने नेशनल कॉनफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला के खिलाफ चुनाव लड़ने से मना कर दिया है. इस ‘रिश्ते’ को क्या समझा जाए?’

गौरतलब कि अपनी पार्टी का गठन अल्ताफ बुखारी ने वर्ष 2020 में, जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद किया. उस दौर में पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत मुख्यधारा के कई नेताओं को सरकार ने नज़रबंद रखा था. तभी अपनी पार्टी का भाजपा की प्रॉक्सी होने का दावा किया गया था. अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ़ बुखारी की प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के साथ करीबियों के कारण भी इन दावों को बल मिलता रहा है.         

दरअसल, बड़गाम उमर अब्दुल्ला के नामांकन के बाद से ही सुर्खियों में रहा है. यह दूसरी सीट है जहां से उमर अब्दुल्ला चुनाव लड़ रहे हैं. उनकी पहली सीट गांदरबल है. उनके दो सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर कई धारणाओं के बीच एक आम धारणा है कि लोकसभा चुनावों में अवामी इत्तेहाद पार्टी के इंजीनियर राशिद से चुनाव हारने के बाद से उनका आत्मविश्वास हिल गया है.

उधर, नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकर्ताओं का कहना है, ‘उमर अब्दुल्ला को हराने की तरह-तरह की साजिश रची जा रही है. जानबूझकर ज्यादा से ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवारों को उनके खिलाफ उतारा जा रहा है जिससे वोट बंटे. लड़ाई कड़ी हो जाए.’

कार्यकर्ता अपने तर्क को वजन देने के लिए अलगाववादी नेता सरजन बरकती के गांदरबल से नामंकन का जिक्र करते हैं. ‘दक्षिण कश्मीर के सरजन बरकती उत्तरी कश्मीर से और वह भी उमर अब्दुल्ला के खिलाफ चुनाव क्यों लड़ना चाहते हैं,’ नेशनल कॉन्फ्रेंस के बड़गाम जिला यूनिट से जुड़े जावेद मीर पूछते हैं. 

 ‘एक-एक सीट पर पंद्रह-पंद्रह निर्दलीय उम्मीदवार खड़े हैं. कहीं तो कुछ साजिश है कि उमर अब्दुल्ला के खिलाफ वोट बंटे.’

‘बी-टीम’ और ‘प्रॉक्सी’ की बहस वोटरों के लिए नई चुनौती बन गई है. अकेले बड़गाम सीट से चौदह उम्मीदवारों ने नामांकन दायर किया था. जिसमें से 21 सितंबर की शाम तक चार उम्मीदवारों ने अपने नामांकन वापस ले लिए हैं. इनमें से तीन निर्दलीय और एक अपनी पार्टी के उम्मीदवार थे. दो नामांकन चुनाव आयोग ने रद्द कर दिए. बचे सिर्फ़ आठ उम्मीदवार.    

‘नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस कश्मीर में मजबूत है लेकिन उमर अब्दुल्ला बहुत डरे हुए हैं. चाहे उनका लोगों से वोट की भीख मांगना हो या दूसरे उम्मीदवारों को प्रॉक्सी बताना-  यह उनका डर ही है. सच कहूं तो नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के खिलाफ लोगों में बहुत गुस्सा है. इन्होंने हमारे (कश्मीरियों) के लिए कुछ भी ठोस नहीं किया. आज नेशनल कॉन्फ्रेंस हमें भाजपा का डर दिखाकर वोट लेगी लेकिन क्या मालूम कल को ये उनके साथ गठबंधन में सरकार बना ले,’ सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर में राजनीति विज्ञान के छात्र शाह तौक़ीर ने इस रिपोर्टर्स से कहा. तौक़ीर इन चुनावों में पहली बार वोट करेंगे. 

उनके साथी इमरान अली भी पहली बार मत देंगे, पर उनके भीतर उत्साह नहीं दिखता. ‘किसको वोट दें? क्यों दें? कहते ये (राजनीतिक दल) एक-दूसरे को प्रॉक्सी हैं लेकिन जम्मू और कश्मीर में कौन प्रॉक्सी नहीं है,’ वह तंज़ भरी मुस्कुान लिए कहते हैं.  

‘सब (सारे राजनीतिक दल) दिल्ली के प्रॉक्सी हैं. दिल्ली भी छोड़िए, सब भाजपा के प्रॉक्सी हैं. क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए के साथ मलाई नहीं काटी ? पीडीपी ने भाजपा के साथ सरकार चलाई. अपनी पार्टी के संस्थापक अल्ताफ बुखारी को गृह मंत्री अमित शाह से मिलने के कई मौके मिलते हैं. पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद लोन प्रधानमंत्री मोदी के मुरीद रहे हैं. हमारी नई-नवेली क्रांतिकारी नेता शेहला राशिद प्रधानमंत्री और भाजपा की सबसे बड़ी प्रशंसक हो चुकी हैं. हमारे यहां के आईएएस टॉपर जो एक रोल मॉडल थे, उन्होंने कश्मीरियों को न्याय दिलाने के लिए पार्टी बनाई, जेल गए और जब कुछ महीने ही जेल रहकर लौटे तो उनके सुर बदल गए. आज वापस आईएएस की नौकरी कर रहे हैं. तो कौन नहीं है प्रॉक्सी दिल्ली का?’

आईएएस टॉपर से उनका इशारा शाह फैसल की तरफ है, ‘शाह फैसल जिस जेल में रखे गए थे अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद, वह जेल जैसा भी नहीं था. वह आलिशान शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कंवेन्शन सेंटर था,’ इमरान जोड़ते हैं.

‘प्रॉक्सियों’ की बहस की सबसे बड़ी गाज़ प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी पर गिरी. जब ख़बर आई कि 37 वर्षों बाद जमात वापस चुनावी राजनीति का रुख करने वाला है, उनके फैसले पर तरह-तरह के कयास लगाए जाते रहे. ‘जमात को एजेंसियां चुनाव लड़वा रही हैं.’ ‘चुनावों के जरिये जमात-ए-इस्लामी अपनी राजनीतिक ज़मीन तलाश रहा है.’ ‘अगर चुनाव लड़ना ही था तो पहले क्यों नहीं लड़े, उग्रवाद को बढ़ावा क्यों दिया.’ 

इस तरह के कई सवालों और कयासों के बावजूद जमात-ए-इस्लामी ने दस सीटों पर स्वतंत्र उम्मीदवारों को अपना समर्थन दिया और इंजीनियर राशिद की आवामी इत्तेहाद पार्टी के साथ गठबंधन का ऐलान किया. 

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