
सूर्योदय भारत समाचार सेवा, नई दिल्ली : भारतीय न्यायपालिका में इतिहास रचते हुए जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने एक नया मुकाम हासिल कर लिया है। वह सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम में शामिल होने वाली पहली महिला जज बन गई हैं। 25 मई 2025 को उन्होंने कोलेजियम में जगह बनाई, जो कि शीर्ष अदालत के पांच सबसे वरिष्ठ जजों का समूह होता है। यह बदलाव जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका के 23 मई को सेवानिवृत्त होने के बाद हुआ।
देश को 2027 में मिलने जा रही पहली महिला मुख्य न्यायाधीश
भारत के न्यायिक इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब कोई महिला देश की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी तक पहुंचेगी। वरिष्ठता के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति होती है। इसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए, जस्टिस नागरत्ना 11 सितंबर 2027 को भारत की 50वीं और पहली महिला सीजेआई (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) बनेंगी हालांकि उनका कार्यकाल लगभग एक माह का होगा क्योंकि 29 अक्टूबर 2027 को वे सेवानिवृत्त होंगी।
भारत के न्यायिक इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब कोई महिला देश की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी तक पहुंचेगी। वरिष्ठता के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति होती है। इसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए, जस्टिस नागरत्ना 11 सितंबर 2027 को भारत की 50वीं और पहली महिला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनेंगी हालांकि उनका कार्यकाल लगभग एक माह का होगा क्योंकि 29 अक्टूबर 2027 को वे सेवानिवृत्त जाएंगी।
न्याय का संस्कार घर से मिला
जस्टिस नागरत्ना का जन्म 30 अक्टूबर 1962 को बेंगलुरु में हुआ था। वे पूर्व मुख्य न्यायाधीश ई. एस. वेंकट रमैय्या की पुत्री हैं, जो 1989 में देश के 19वें सीजेआई बने थे। इस पृष्ठभूमि ने उन्हें कानून की दुनिया में कदम रखने की प्रेरणा दी। दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कड़ा परिश्रम और न्यायप्रिय दृष्टिकोण अपनाकर खुद को स्थापित किया।
न्यायिक साहित्य में योगदान
जस्टिस नागरत्ना का योगदान केवल अदालती फैसलों तक सीमित नहीं रहा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रकाशित “कोर्ट्स ऑफ इंडिया” नामक पुस्तक में उन्होंने योगदान दिया और ‘कोर्ट्स ऑफ कर्नाटका’ खंड को समृद्ध किया। इसके अलावा, वे इस किताब के कन्नड़ अनुवाद समिति की अध्यक्ष भी रहीं।
निर्णय जो छाप छोड़ गए
करीब 17 वर्षों की न्यायिक सेवा में जस्टिस नागरत्ना ने कई ऐतिहासिक और जनहितकारी फैसले दिए, जिनमें मानवीय दृष्टिकोण और संवैधानिक विवेक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है ! शैक्षिक वतावारण में विधार्थियों का सम्पूर्ण विकास समय समय पर प्रतियोगी परीक्षाये और बच्चो की इग्लिश स्पीकिग पर विशेष ध्यान देने प्रत्येक अभिवावक एवं शिक्षक गोष्ठी में बच्चों के आने जाने के लिए वाहन की सुरक्षा पर्सनालिटी डेवलपमेन्ट की अतिरिक्त कक्षाओ की सुविधा दिलाई।
सुप्रीम कोर्ट में दिए गए प्रमुख फैसले
बिलकिस बानो केस: 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े इस मामले में उन्होंने जस्टिस उज्जल भुइयां के साथ मिलकर गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को दी गई रिहाई को अवैध ठहराया। यह निर्णय इस आधार पर लिया गया कि सजा महाराष्ट्र की विशेष बदालत द्वारा सुनाई गई थी, अतः रिहाई का अधिकार भी महाराष्ट्र सरकार के पास था।
मंत्रियों के बयानों पर केंद्र की जिम्मेदारीः एक संविधान पीठ में उन्होंने यह माना कि सरकार अपने मंत्रियों के निजी बयानों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराई जा सकती, हालांकि ऐसे बयानों से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता।
नोटबंदी पर अलग रायः 2016 की नोटबंदी को लेकर पांच जजों की पीठ में से जहां चार ने उसे वैध ठहराया, वहीं जस्टिस नागरत्ना ने इससे असहमति जताई। उन्होंने कहा कि ऐसा निर्णय संसद द्वारा होना चाहिए था, कार्यपालिका के एकतरफा आदेश से नहीं।
कर्नाटक हाईकोर्ट में दिए गए महत्वपूर्ण फैसले
अवैध माने गए बच्चों को अधिकारः एक सुनवाई में उन्होंने यह ऐतिहासिक टिप्पणी की कि अवैध विवाह से जन्मे बच्चों को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, माता-पिता के संबंध अवैध हो सकते हैं, परंतु कोई बच्चा अवैध नहीं होता।
कोविड काल में छात्रों की शिक्षा और पोषण सुरक्षाः कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिए कि मिड-डे मील योजना को रोका न जाए और डिजिटल शिक्षा की निरंतरता सुनिश्चित की जाए, ताकि गरीब और वंचित तबके के बच्चों की शिक्षा और पोषण बाधित न हों।