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गुरु पूर्णिमा पर संस्कृत महाविद्यालय में हुआ “गुरु पूजन”

भीम प्रकाश शर्मा, श्रीगंगानगर : गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री धर्मसंघ संस्कृत महाविद्यालय, श्रीगंगानगर में सुसंस्कृत, आध्यात्मिक और भक्तिमय वातावरण में व्यास पूजन का भव्य आयोजन किया गया। यह पवित्र अनुष्ठान परम पूज्य ब्रह्मचारी कल्याण स्वरूप जी महाराज की पावन सन्निधि में सम्पन्न हुआ, जिसमें महाविद्यालय के विद्यार्थियों, आचार्यगणों और गणमान्य व्यक्तियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। इस अवसर पर गुरु-शिष्य परंपरा की महिमा को और अधिक उजागर करने वाला यह कार्यक्रम सभी के लिए प्रेरणादायी और अविस्मरणीय रहा।

आयोजन का भव्य स्वरूप
श्री धर्मसंघ संस्कृत महाविद्यालय, जो वर्षों से संस्कृत भाषा, वेद-वेदांग, आचार-संहिता और भारतीय जीवन मूल्यों के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित रहा है, में गुरुपूर्णिमा का यह आयोजन एक सुदृढ़ परंपरा के रूप में प्रतिष्ठित है। महाविद्यालय परिसर को इस अवसर पर सुंदर ढंग से सजाया गया था। दीप प्रज्ज्वलन, वैदिक मंत्रोच्चार और पुष्पांजलि के साथ व्यास पूजन का विधिपूर्वक आयोजन किया गया। इस पावन अनुष्ठान में भगवान वेदव्यास, जो गुरु परंपरा के प्रतीक हैं, की पूजा-अर्चना की गई, जिससे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ।


ब्रह्मचारी कल्याण स्वरूप जी महाराज का प्रेरक संबोधन
इस अवसर पर ब्रह्मचारी कल्याण स्वरूप जी महाराज ने उपस्थित विद्यार्थियों, आचार्यगणों और श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए गुरु-शिष्य परंपरा की महिमा पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने संबोधन में कहा, “गुरु वह दीपक हैं, जो अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट कर आत्मज्ञान का प्रकाश प्रदान करते हैं। गुरु केवल ज्ञान का स्रोत ही नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा प्रदान करने वाला मार्गदर्शक भी हैं। व्यास पूजन केवल एक परंपरा नहीं, अपितु श्रद्धा, कृतज्ञता और ज्ञान की पुनर्स्मृति का प्रतीक है।” उनके शब्दों ने उपस्थित सभी लोगों के मन में गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना को और सुदृढ़ किया। उन्होंने विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा के प्रति गर्व करने और इसे जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित किया।
प्राचार्य और आचार्यगण की भूमिका
महाविद्यालय के प्राचार्य मुकुंद त्रिपाठी जी ने विधिपूर्वक व्यास पूजन का संचालन किया। उन्होंने गुरु परंपरा को अविरल बनाए रखने के महत्व पर बल देते हुए विद्यार्थियों को इस पवित्र परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। उनके मार्गदर्शन में पूजन कार्य सुचारु और श्रद्धापूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। इसके अतिरिक्त, आचार्य कार्तिकेय जी की विशेष उपस्थिति इस आयोजन की शोभा को और बढ़ाने वाली रही। उनके प्रेरक वचनों ने विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कारों के प्रति उत्साह जागृत किया।
गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति
इस आयोजन में श्रीगंगानगर के विधायक जयदीप बिहानी सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया। विधायक ने अपने संबोधन में महाविद्यालय की संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना की। उन्होंने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के संदेश को पढ़कर सुनाया, जिसमें मुख्यमंत्री ने गुरुपूर्णिमा के अवसर पर अपनी शुभकामनाएं दीं और जन कल्याण के लिए ब्रह्मचारी कल्याण स्वरूप जी महाराज से आशीर्वाद मांगा। मुख्यमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि श्री धर्मसंघ संस्कृत महाविद्यालय वर्षों से एक सुदृढ़ परंपरा के रूप में संस्कृत भाषा, वेद-वेदांग और भारतीय जीवन मूल्यों के संरक्षण में समर्पित है, जो समाज के लिए गौरव का विषय है।
देवस्थान विभाग द्वारा सम्मान
गुरुपूर्णिमा के इस पावन अवसर पर देवस्थान विभाग ने भी ब्रह्मचारी कल्याण स्वरूप जी महाराज के कार्यों की सराहना की। विभाग ने उनके द्वारा संस्कृत भाषा के संरक्षण, प्रचार-प्रसार और विद्यार्थियों में वैदिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति गौरवबोध जागृत करने के लिए किए गए प्रयासों के लिए उन्हें प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया। विभाग ने उनके कार्यों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया और उनके प्रयासों को समाज के लिए प्रेरणादायी बताया।
कार्यक्रम का समापन
कार्यक्रम का समापन सामूहिक गुरु वंदना और प्रसाद वितरण के साथ हुआ। गुरु वंदना के दौरान उपस्थित सभी लोगों ने एक स्वर में गुरु की महिमा का गुणगान किया, जिससे वातावरण और अधिक भक्तिमय हो गया। प्रसाद वितरण के साथ ही सभी ने इस पवित्र अवसर पर अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। यह आयोजन न केवल गुरु-शिष्य परंपरा की महिमा को दर्शाने वाला था, बल्कि संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति लोगों में जागरूकता और गर्व की भावना को बढ़ाने वाला भी रहा। श्री धर्मसंघ संस्कृत महाविद्यालय, श्रीगंगानगर ने इस आयोजन के माध्यम से एक बार फिर अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रतिबद्धता को सिद्ध किया। यह पावन अनुष्ठान सभी के लिए ज्ञान, श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक बनकर उभरा !

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