
सूर्योदय भारत समाचार सेवा : इलाके़ की मुश्किलों और भारत के अंदर ही कुछ परियोजनाओं को लेकर विरोध जैसी चुनौतियों के कारण इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण तेज़ी से नहीं हो पाएगा.
2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में हुए चरमपंथी हमले के बाद भारतीय जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया था कि वे सिंधु बेसिन में कई बांधों और वाटर स्टोरेज परियोजनाओं के निर्माण में तेज़ी लाएंगे.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर भारत मौजूदा ढांचे के साथ पानी के बहाव पर कंट्रोल करता है तो पाकिस्तान में गर्मी के मौसम के दौरान इसका असर देखने को मिल सकता है. गर्मी के मौसम में पानी की उपलब्धता में कमी भी होती है.
टफ्ट्स यूनिवर्सिटी में अर्बन एनवायरमेंटल पॉलिसी और एनवायरमेंटल स्टडी के असिस्टेंट प्रोफे़सर हसन एफ़ ख़ान ने डॉन न्यूज़पेपर में लिखा, “गर्मी के मौसम में क्या होगा वो चिंता का विषय है. उस वक्त पानी का बहाव कम होता है और स्टोरेज ज़्यादा अहमियत रखती है. टाइमिंग बेहद महत्वपूर्ण है.”
“उसी दौरान संधि संबंधी बाध्यताओं की अनुपस्थिति को ज़्यादा महसूस किया जाएगा.”
संधि के तहत भारत को पाकिस्तान के साथ हाइड्रोलॉजिकल डेटा शेयर करना ज़रूरी है. ये डेटा बाढ़ के पूर्वानुमान, सिंचाई, हाइड्रोपावर और पेयजल से जुड़ी योजना बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं.
इंडस वाटर ट्रीटी के पूर्व पाकिस्तान एडिशनल कमिश्नर सिहराज मेमन ने बीबीसी उर्दू से कहा, “इस घोषणा से पहले भी भारत महज़ 40 फीसदी डेटा ही शेयर कर रहा था.”
एक और मुद्दा जो हर बार तनाव बढ़ने के समय उठता है वो ये है कि क्या ऊपरी देश निचले देश के ख़िलाफ़ पानी को ‘हथियार’ बना सकता है.
इसे अक्सर ‘वॉटर बम’ कहा जाता है. जहां ऊपरी देश अस्थायी रूप से पानी को रोक सकता है और फिर बिना किसी चेतावनी के अचानक छोड़ सकता है. जिसकी वजह से निचले हिस्से में भारी नुकसान हो सकता है.
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