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भारतीय राजनीति में अपनी सादगी और साहस से इतिहास रचने वाले छोटे कद के बड़े राजनेता : मलिकराम

सूर्योदय भारत, इंदौर : भारतीय लोकतंत्र की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यहां नेतृत्व की ऊंचाई कभी सेंटीमीटर या फीट में नहीं नापी जाती, बल्कि यह जनता के विश्वास की गहराई और दूरदर्शी फैसलों की स्पष्टता से तय होती है। आज सोशल मीडिया के दौर में जहां नेता की मंचीय उपस्थिति, बॉडी लैंग्वेज और शारीरिक हाइट को बहुत महत्व दिया जाता है, वहां छोटे कद वाले नेता अपनी अलग ही चमक बिखेरते हैं। जहां लंबे कद वाले नेता भीड़ में अलग दिखते हैं, वहीं छोटे कद वाले नेता दिलों में घर कर लेते हैं। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसे कई नाम हुए हैं जिन्होंने अपने छोटे कद को अपने विशाल व्यक्तित्व और दूरगामी दृष्टिकोण से कहीं ऊँचा बना दिया है। फिर बात पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हो या पी. वी. नरसिम्हा राव की, जिनके लिए छोटा कद कभी कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी ताकत बना।

सादगी को अपना जीवन मंत्र बनाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री एक तरफ स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए भी जाने जाते हैं और रेल मंत्री रहते हुए एक ट्रेन दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा देने का जिगर भी रखते हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद 1965 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने देश को एकजुट किया और जय जवान, जय किसान का अमर नारा दिया, जो सैनिकों और किसानों को सम्मान देने वाला था। खाद्यान्न संकट के समय उन्होंने खुद उपवास रखकर जनता को संदेश दिया। उन्होंने साबित किया कि सच्चा नेतृत्व साहस और ईमान से आता है, दिखावे से नहीं। वहीं बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में प्रख्यात हुए लालू प्रसाद यादव ने पिछड़े वर्गों, दलितों और अल्पसंख्यकों को राजनीतिक मुख्यधारा में लाकर सामाजिक क्रांति लाने का काम किया। रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने भारतीय रेल को घाटे से लाभ में बदला और गरीब रथ जैसी ट्रेनें शुरू कीं, जो आम जनता के लिए सुलभ बनीं हुईं हैं। लालू ने साबित किया कि जनता की भाषा को सही तरीके से समझ और मुद्दों को उठाकर बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।

गोरखपुर के गोरक्षपीठ के महंत के रूप में जीवन शुरू करने वाले योगी आदित्यनाथ हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना कर सांसद बने और फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पूरे देश पर छा गए। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने कानून-व्यवस्था को मजबूत किया, माफिया राज पर अंकुश लगाया और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स जैसे एक्सप्रेसवे, एयरपोर्ट और निवेश सम्मेलन शुरू किए। हिंदुत्व के साथ विकास का अनोखा मिश्रण उनकी राजनीति की विशेषता है। योगी आदित्यनाथ ने साबित किया कि आध्यात्मिक शक्ति और राजनीतिक दृढ़ता से बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा ही एक नाम एच. डी. देवेगौड़ा का भी है जो किसान परिवार से होते हुए पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने और फिर भारत के प्रधानमंत्री। गठबंधन सरकार चलाने की जटिल कला में माहिर देवेगौड़ा ने सिंचाई, ग्रामीण विकास और किसान हितों पर विशेष जोर दिया।

इस क्रम में एक नाम वी. पी. सिंह का भी है जिन्होंने बोफोर्स घोटाले के खिलाफ लड़ाई लड़कर राजनीति में नैतिकता की नई मिसाल कायम की। राजपरिवार छोड़कर जननेता बनने वाले वी. पी. प्रधानमंत्री बने और मंडल आयोग लागू कर पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया। यह सामाजिक न्याय की सबसे बड़ी क्रांति थी, जिसने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा बदल दी। ऐसे ही शांत लेकिन स्थिर नेतृत्व देने वाले ओडिशा के लंबे समय तक शासक रहे, नवीन पटनायक बीजू जनता दल के संस्थापक के रूप में ओडिशा को स्थिरता और विकास से जोड़ने का काम किया। पांच बार मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा करने वाले नवीन ने आपदा प्रबंधन, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य और शिक्षा योजनाओं पर फोकस कर राज्य को आगे ले जाने में अहम भूमिका निभाई।

ऐसे ही एक राजनेता हुए चौधरी चरण सिंह, जिन्होंने अपना पूरा जीवन किसानों और ग्रामीण भारत को समर्पित कर दिया। जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार कानून उनकी सबसे बड़ी देन समझी जाती हैं। लोक दल की स्थापना कर उन्होंने किसान हितों को राजनीतिक ताकत दी। प्रधानमंत्री रहते हुए भी किसानों को प्राथमिकता दी। उनका योगदान आज राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं आर्थिक क्रांति के मौन आर्किटेक्ट और बौद्धिक दिग्गज कहे जाने वाले पी. वी. नरसिम्हा राव बहुभाषी विद्वान नेता थे, जिन्होंने 1991 के आर्थिक संकट में देश को नई दिशा दी। डॉ. मनमोहन सिंह के साथ मिलकर उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नींव रखी, जिसने भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ा। उन्होंने दक्षिण भारत से पहला प्रधानमंत्री बनकर न केवल इतिहास रचा, बल्कि अपनी मौन कूटनीति और गहन समझ से भारत की तकदीर बदलने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आज जब राजनीति में दिखावा, मीडिया ग्लैमर और सोशल इमेज हावी है, ये नेता हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा नेतृत्व जनता की सेवा, ईमानदारी और संघर्ष से आता है।

: अतुल मलिकराम

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