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बीबीएयू ‘हिंदी पखवाड़ा उत्सव 2025’ : माता, मातृभाषा और मातृभूमि का कोई विकल्प नहीं : राज कुमार मित्तल

सूर्योदय भारत समाचार सेवा, लखनऊ : बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में मंगलवार 16 सितंबर को हिंदी प्रकोष्ठ की ओर से ‘हिंदी पखवाड़ा उत्सव 2025’ का उद्घाटन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर पूर्व बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उत्तर प्रदेश सरकार प्रो. सतीश चंद्र द्विवेदी उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त मंच पर अखिल भारतीय इतिहास संकलन के राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री श्री संजय जी, लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष एवं भारतीय हिंदी परिषद के सभापति प्रो. पवन अग्रवाल, बीबीएयू कुलसचिव डॉ. अश्विनी कुमार सिंह एवं कार्यक्रम संयोजक और सहायक निदेशक, राजभाषा बीबीएयू डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव मौजूद रहे। सर्वप्रथम डॉ. अश्विनी कुमार सिंह ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया। इसके पश्चात डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव ने सभी को इस 15 दिवसीय हिंदी पखवाड़ा उत्सव की रूपरेखा से अवगत कराया। मंच संचालन का कार्य डॉ. लता बाजपेयी सिंह द्वारा किया गया।

विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि आज के समय में हिंदी राजभाषा से राष्ट्रभाषा और अब विश्वभाषा की ओर अग्रसर है। यह हम सबका सौभाग्य है कि हिंदी आज आर्थिक विकास की भी भाषा बन चुकी है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी स्थानीय भाषाओं और हिंदी की महत्ता का उल्लेख करते हुए उनके संवर्धन एवं प्रोत्साहन पर बल दिया गया है, क्योंकि स्थानीय भाषाएँ ही संस्कार, विकास और विचारों के सृजन की मूल आधारशिला होती हैं। यही कारण है कि वे राष्ट्र निर्माण की एक सशक्त सूचक भी मानी जाती हैं।

पूर्व बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उत्तर प्रदेश सरकार प्रो. सतीश चंद्र द्विवेदी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हिंदी भाषा में सहजता, सरलता और सरसता है, यही कारण है कि यह जनसाधारण की सबसे अधिक सबोध भाषा है। साथ ही राजभाषा और राष्ट्रभाषा में व्यापक अंतर है और इसे समझना हम सबके लिए आवश्यक है। उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार आज़ादी के दौर में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए गए।

अखिल भारतीय इतिहास संकलन के राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री संजय ने चर्चा के दौरान कहा कि अपने देश को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न बनाने के लिए हिंदी भाषा में संवाद अत्यंत आवश्यक है। जब हम अपनी मातृभाषा में सपने देखते हैं और उसे आधार बनाकर कार्य करते हैं, तभी राष्ट्र वास्तविक अर्थों में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है।

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष एवं भारतीय हिंदी परिषद के सभापति प्रो. पवन अग्रवाल ने बताया कि हिंदी भाषा केवल संवाद का माध्यम ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता की सशक्त संवाहक भी है। भारत माता भले ही 22 अनुसूचित भाषाओं में अपनी वाणी प्रकट करती हो, किंतु उनका स्वर अंततः भारतवासियों के हृदय को ही स्पर्श करता है। आश्चर्य की बात यह है कि ये 22 भाषाएँ वास्तव में 1600 से भी अधिक मातृभाषाओं और बोलियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

इसके अतिरिक्त कुलपति कुलसचिव डॉ. अश्विनी कुमार सिंह ने भी हिंदी दिवस की महत्ता और दैनिक एवं कार्यालयीन संबंधी गतिविधियों में हिंदी भाषा के प्रयोग पर सभी का ध्यान केंद्रित किया।

इस अवसर पर कुलपति एवं अतिथियों द्वारा हिंदी पखवाड़ा उत्सव 2025 के दौरान होने वाले कार्यक्रमों की विवरणिका (पोस्टर) का विमोचन किया गया। इस हिंदी पखवाड़ा उत्सव 2025 के दौरान निबंध, सुलेख, कविता एवं टंकड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जायेगा। इसके अतिरिक्त दिनांक 18-24 सितंबर तक सप्त दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जायेगा। साथ ही आयोजन समिति की ओर से एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया जायेगा।

अंत में डॉ. शिव शंकर यादव ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समस्त कार्यक्रम के दौरान डीएसडब्ल्यू प्रो. नरेंद्र कुमार, आईक्यूएसी डायरेक्टर प्रो. शिल्पी वर्मा, अन्य शिक्षकगण, अधिकारीगण, कर्मचारी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।

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