
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी टी रवि कुमार की खंडपीठ ने ग्रेटर मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन तथा अन्य की याचिकाओं पर यह फैसला दिया। याचिकाओं में एनजीटी के स्वत: संज्ञान लेने के अधिकार को चुनौती दी गई है।
पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर NGT संज्ञान लेकर कार्यवाही शुरू कर सकता है। तीन जजों की बेंच ने इस पर फैसला सुनाया। अदालत के अनुसार पत्रों, ज्ञापन और मीडिया रिपोर्टों के आधार पर पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर कार्यवाही शुरू कर सकता है। इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी देते हुए बताया था कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के पास स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियां नहीं है हालांकि वह पर्यावरण संबंधी चिंताओं को उठाते हुए पत्र या संचार पर कार्रवाई कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र के एक मामले से जुड़ी याचिकाओं पर यह तय करने के लिए सुनवाई कर रहा था कि क्या NGT किसी मामले पर खुद से संज्ञान ले सकता है। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने केंद्र के इस पक्ष पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी से पूछा था कि अगर कोई पत्र या हलफनामा एनजीटी के पास आए तो भी क्या वह उस पर संज्ञान नहीं ले सकता।
इस पर भाटी ने कहा कि पत्र या हलफनामा मिलने के बाद मामले पर संज्ञान लेना व उस पर सुनवाई करना NGT के प्रक्रियात्मक अधिकार हैं। इन पर सुनवाई कर उल्लंघन के कारणों का पता लगाने और मामले में शामिल पार्टियों को नियमों का पालन करने के लिए उचित व्यवस्था देने का पूरा अधिकार रखता है।
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