
राहुल यादव, लखनऊ। एक तरफ सरकारों की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति है। तो वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचारियों ने भी भ्रष्टाचार करने की अपनी आदत को न छोड़ने की कसम खा रखी है।
मामला है उत्तर रेलवे डीआरएम ऑफिस में वर्दी भत्ता घोटाले का।
उत्तर रेलवे डीआरएम ऑफिस में हुआ फर्जी वर्दी भत्ता अधिकारियों के गले की फांस बनता जा रहा है। और मामला को जन प्रतिनिधियों ने काफी तूल भी दे दिया है। अब जहां एक तरफ भ्रष्टाचारी टीआई ओपी तिवारी को बचाने का कुचक्र रच रहे हैं। तो वहीं दूसरी तरफ सत्ता पक्ष के नेताओं ने मामले को आगे बढा दिया है।
नाम न बताने की शर्त पर विभाग के एक कर्मचारी ने बताया कि ओपी तिवारी, टीआई के पद पर दो दशक से मंडल कार्यालय में तैनात हैं। इनका भ्रष्टाचारियों का एक बड़ा गिरोह है जिसमें एक दर्जन से अधिक टीआई शामिल हैं।इस गिरोह ने घपला करके तीन वर्षों तक वर्दी भत्ता लिया। और जब मामला प्रकाश में आया तो टीआई ओपी तिवारी की संठ गांठ के चलते रेल प्रशासन ने मामले को रफा दफा करके रिकवरी करवाना शुरु कर दी।
बताते चलें कि ये मामला सीधे तौर पर फ्राड का है और इसमें सीधे बर्खास्त करने का नियम है। अगर इस मामले में लीपापोती होती है तो मामला सीधे मुख्यालय जायेगा।
टीआई ओपी तिवारी के रसूख व प्रशासनिक पहुंच के चलते कोई भी इस मामले में खुल कर बोलने को तैयार नहीं है। शिकायक कर्ता खुद बहुत डरा हुआ है। लेकिन पिछले दो दशकों की सच्चाई यही है। कई यातायात निरीक्षकों ने भी भ्रष्टाचार की चरम सीमा पार कर रखी है।
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