
सूर्योदय भारत समाचार सेवा : कविता विशेष……….
वहीं मंदिर मिलेंगे सब वहीं पर राम है सारे ।
जहां मां-बाप के पग हैं वहीं पर धाम हैं सारे।।
न मथुरा में मिलेंगे वो न ही मक्का मदीने में ।
बसी है खून में माता पिताजी हैं पसीने में ।।
सिलायें पूजते क्यों फिर रहे हो दरबदर प्रहरी ।
कभी उर में भी देखो झांक कर पाओगे सीने में।
सभी गृन्थों पुराणों में उन्हीं के नाम है सारे।।
दुआ देती है जो मां वो कभी खाली नहीं जाती ।
सहज मां-बाप की हर बात यूं टाली नहीं जाती ।।
धुला बर्तन कहीं झाड़ू लगाकर पालती बच्चे।।
बुढ़ापे में उन्हीं बच्चों से मां पाली नहीं जाती।
किराएदार जैसे अब फकत अंजाम है सारे ।।
कभी मत भूलना पीड़ा पृसव की ना निवाले तुम।
बिवांयीं पांव की मत भूलना हाथों के छाले तुम।।
वो मैली बाप की पगड़ी बदन पर वो फटा कुर्ता।
कभी मत भूलना मां बाप ने अरमां जो पाले तुम।
बुलंदी ये उन्हीं से है सफल परिणाम हैं सारे।।
: कवि लाल सिंह “प्रहरी“
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