
सूर्योदय भारत समाचार सेवा, लखनऊ : बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में बुधवार 12 नवंबर को पर्यावरण विज्ञान विभाग की ओर से ‘नदी पुनरुद्धार और भारतीय ज्ञान प्रणाली: विज्ञान, समाज और सततता’ विषय पर आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया गया। यह संगोष्ठी बीबीएयू के पर्यावरण विज्ञान विभाग, स्टेट मिशन फॉर क्लीन गंगा, उत्तर प्रदेश एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल द्वारा की गयी। मुख्य अतिथि के तौर पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के नेशनल सेक्रेटरी डॉ. अतुल कोठारी उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त मंच पर मुख्य तौर पर स्टेट मिशन फॉर क्लीन गंगा, उत्तर प्रदेश के प्रोजेक्ट डायरेक्टर जोगिंदर सिंह, INTACH के मनु भटनागर, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के पर्यावरणीय शिक्षा से जुड़े एवं राष्ट्रीय समन्वयक संजय स्वामी एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग, बीबीएयू के विभागाध्यक्ष प्रो. वेंकटेश दत्ता उपस्थित रहे। सर्वप्रथम प्रो. वेंकटेश दत्ता ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया एवं सभी को कार्यक्रम के उद्देश्य एवं रुपरेखा से अवगत कराया। मंच संचालन का कार्य डॉ. सूफिया अहमद द्वारा किया गया।
विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि नदियों का पुनरुत्थान और जल संरक्षण आज के समय की अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं, इसलिए उनका संरक्षण और सदुपयोग अत्यावश्यक है। पश्चिमी विचारधारा जहाँ संसाधनों के दोहन और भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति पर बल देती है, वहीं भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा प्रकृति को माँ का स्वरूप मानकर उसकी रक्षा और सम्मान करने की शिक्षा देती है।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के नेशनल सेक्रेटरी डॉ. अतुल कोठारी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि शिक्षा का आधारभूत विषय पर्यावरण होना चाहिए, क्योंकि पर्यावरण ही जीवन का मूल है। कोठारी जी ने बताया कि हमारे प्राचीन भारतीय ज्ञान में भी पंचभूतों के माध्यम से पर्यावरण की महत्ता का उल्लेख मिलता है। कोठारी जी ने ‘आधा गिलास पानी दो’ अभियान का उल्लेख करते हुए बताया कि यह एक प्रेरणादायी पहल है, जिसके माध्यम से जल संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है।
स्टेट मिशन फॉर क्लीन गंगा, उत्तर प्रदेश के प्रोजेक्ट डायरेक्टर जोगिंदर जी ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी प्रतिभागियों को नदियों की संरचना, उनके प्रवाह मार्ग तथा उन्हें पोषित करने वाले जल स्रोतों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किसी नदी का प्राकृतिक स्वरूप तभी तक सुरक्षित रह सकता है, जब तक उसके प्रवाह और जलागम क्षेत्र में संतुलन बना रहे। इस अवसर पर उन्होंने उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले की रेवती नदी और नहाल नदी का उल्लेख करते हुए बताया कि वहाँ सरकार और स्थानीय प्रशासन के संयुक्त प्रयासों से नदियों के पुनर्जीवन के लिए सराहनीय कार्य किए गए हैं।
INTACH के मनु भटनागर ने कहा कि यदि हम नदियों के पुनरुद्धार की बात करें तो प्रदूषण से भी बड़ी समस्या नदियों के प्रवाह में आई रुकावट है। नदियों का स्वाभाविक प्रवाह ही उनका जीवन है, और जब यह बाधित होता है, तो नदी धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खोने लगती है। उन्होंने बताया कि गंगा नदी का बेसिन देश का सबसे बड़ा नदी बेसिन है, जो करोड़ों लोगों की जीवनरेखा है।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के पर्यावरणीय शिक्षा से जुड़े एवं राष्ट्रीय समन्वयक संजय स्वामी ने चर्चा के दौरान कहा कि नदियाँ हमारी संस्कृति और सभ्यता की संवाहक रही हैं। नदियां न केवल जीवनदायिनी हैं, बल्कि वे समाज, पर्यावरण और संस्कृति को जोड़ने का कार्य भी करती हैं। संजय स्वामी के अनुसार इस प्रकार के सम्मेलन और चर्चाएँ नदियों तथा पर्यावरण की रक्षा के लिए जनजागरण फैलाने और ठोस कार्यों की शुरुआत करने का सशक्त माध्यम बन सकते हैं।
कुलपति एवं अतिथियों द्वारा इस द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के सोवेनियर का विमोचन किया गया। कार्यक्रम के पहले दिन प्रतिभागियों के लिए 2 तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। प्रथम तकनीकी सत्र एकेटीयू के पूर्व कुलपति एवं आईआईटी बीएचयू के प्रो. पी.के. मिश्रा की अध्यक्षता में ’नदी प्रबंधन के रूपरेखाएँ और नदियों के अधिकार’ विषय पर आयोजित किया गया। प्रथम तकनीकी सत्र के दौरान सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार के इंजीनियर इन चीफ , इंजीनियर अशोक कुमार सिंह ने ‘बाढ़ क्षेत्र और नदी के अधिकारों का संरक्षण, सिम्बॉयसिस लॉ स्कूल की डॉ. अमरीषा पाण्डेय ने ‘अधिकारों से दायित्वों तक: भारत के गंगा बेसिन में संस्थागत ढाँचे के माध्यम से नदी व्यक्तित्व की पुनर्कल्पना एवं आईआईटी बीएचयू के प्रो. प्रभात कुमार सिंह ने ‘उत्तर प्रदेश में नदियों का पुनर्जीवन: दृष्टिकोण और संभावनाए विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किये। इसके अतिरिक्त दूसरा तकनीकी सत्र शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संजय स्वामी की अध्यक्षता में ‘जलवायु परिवर्तन और नदी की पुनर्स्थापन क्षमता’ विषय पर आयोजित किया गया।

द्वितीय तकनीकी सत्र के दौरान तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय की डॉ. रुचि श्री ने ‘लिंग और पर्यावरण: भागलपुर (बिहार) में बार-बार आने वाली बाढ़ें और सूखती छोटी नदियाँ’, हिमालय, भागीरथी आश्रम, उत्तरकाशी, उत्तराखंड के सुरेश भाई ने ‘ जलवायु परिवर्तन और आपदाओं का हिमालयी नदियों पर प्रभाव, AI4 वॉटर लिमिटेड, यूनाइटेड किंगडम के डॉ. सुदीप शुक्ला ने ‘नदी जलविज्ञान पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मॉडलिंग दृष्टिकोण: सिक्किम की तीस्ता बेसिन का एक अध्ययन विषय पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर नदी मित्रों एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सदस्यों के साथ बैठक का आयोजन किया गया।
अंत में आयोजन समिति की ओर से अतिथियों को स्मृति चिन्ह एवं शॉल भेंट करके उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया। साथ ही डॉ. एन.के.एस. मोरे ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
समस्त कार्यक्रम के दौरान विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, गैर शिक्षण कर्मचारी, विभिन्न जिलों से आये अधिकारी, प्रतिभागी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।
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