
सूर्योदय भारत समाचार सेवा, नई दिल्ली : बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (एसआईआर) के पहले चरण के बाद 65 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं में से एक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने चुनाव आयोग से इन सभी नामों की सूची सार्वजनिक करने की अपील की थी !
चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि मौजूदा कानूनी ढांचे में न तो ऐसे मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने का प्रावधान है जिन्हें ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल नहीं किया गया है, और न ही उन्हें शामिल नहीं किए जाने के कारण बताने का.
चुनाव आयोग का यह जवाब सुप्रीम कोर्ट द्वारा 9 अगस्त तक प्रतिक्रिया देने के निर्देश के बाद दाखिल हलफनामे में आया.
हलफनामे में कहा गया है, ‘कानूनी प्रावधान के तहत यह अनिवार्य नहीं है कि उत्तरदाता ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल नहीं किए गए व्यक्तियों की अलग सूची तैयार करे या उनके नामों के न शामिल होने के कारण को प्रकाशित करे.’
चुनाव आयोग ने रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्ट्रर्स रूल्स, 1960 के नियम 10 और 11 का हवाला देते हुए कहा कि ड्राफ्ट मतदाता सूची निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) के कार्यालय के बाहर निरीक्षण के लिए उपलब्ध कराई जाती है. साथ ही, ईआरओ को सूची के प्रत्येक अलग हिस्से को संबंधित क्षेत्र में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना होता है, और प्रत्येक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल को सूची की दो-दो प्रतियां उपलब्ध करानी होती हैं.
आयोग ने कहा, ‘जब न तो कानून और न ही दिशानिर्देश इस बात का प्रावधान करते हैं कि एन्यूमरेशन फेज़ के दौरान जिन पूर्व मतदाताओं का एन्यूमरेशन फॉर्म किसी भी कारण से प्राप्त नहीं हुआ, उनकी सूची तैयार कर सार्वजनिक की जाए, तब याचिकाकर्ता इसे अधिकार के रूप में नहीं मांग सकता.’
ज्ञात हो कि चुनाव आयोग ने 1 अगस्त को संशोधित मतदाता सूची का पहला ड्राफ्ट जारी किया था, जिसमें लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं. इनमें से 22 लाख मतदाता मृत, 36 लाख स्थायी रूप से स्थानांतरित या अनुपलब्ध, और सात लाख के नाम कई जगहों पर डुप्लीकेट पाए गए.
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